गर राजाओं वाली नीति अनुसार सिर्फ मुफ्त लेने की प्रवृति से भारत के विककित राष्ट्र का सपना देख रहे हैं तो यह सपना सिर्फ राजनीति की चादर में रात में देखा गया सपना है।  आजादी के इस अमृत काल में देश के समावेशी विकास  एवं सतत विकास लक्ष्य की ओर बढ़ाना है तो समुदाय को अपने मताधिकार के प्रयोग के साथ अपनी देश के प्रति जवाबदेही को भी समझना पड़ेगा. साथ ही हर दल की सरकार को भी सोचना पड़ेगा की वे किस दिशा में जा रहे हैं।

               बड़ा दुःख है कि आजादी 75 साल बाद भी हम गुलाम प्रवृति के पोषक बनते जा रहे हैं। राजनीति के मायाजाल में फंसते समुदाय को आत्मनिर्भरता की सीख तो मिल रही है लेकिन उसको लेकर अभी वातावरण ऐसा दिखता नहीं जो यह सच कहने के लिए पर्याप्त है कि हां देश समग्र विकास की दिशा में स्वयंप्रेरणा या स्वावलंबन के साथ आगे बढ़ रहा हो।

 बेसक वर्तमान सरकार इस को लेकर बेहतर माहौल बनाने का प्रयास कर रही है लेकिन तंत्र के ह्रदय में वह भाव नहीं दिखते हैं जो  समुदाय को एकात्मकता में पिरोकर समग्र कल्याण के लिए जीवंत उदाहरण पेश करे।

आजादी के अमृत काल में हमारी शक्ति को दुनिया देख रही है, सपेरों की भूमि के रूप में जाने जाने से लेकर दुनिया का आईटी पावरहाउस बनने तक, भारत आज विश्व स्तरीय डिजिटल सार्वजनिक सेवाओं और इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण कर रहा है। डिजिटल भुगतान और यूपीआई की सफलता ने कई विकसित देशों को चकित कर दिया है। कोविड रणनीति की सफलता ने आपदा को अवसर में बदलने की हमारी सामूहिक क्षमता को सामने लाया है। प्रौद्योगिकी के नेतृत्व में दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चलाते हुएए भारत ने इनोवेशन, दृढ़ संकल्प और सामूहिक इच्छाशक्ति की शक्ति को दिखाया है।  यह सब समुदाय के सहयोग से ही संभव हुआ है।

               इसके विपरित देखें तो अभी ग्राउंड जीरो पर बहुत कुछ बदलने की आवश्यकता नजर आ रही है। राजनीति के कुचक्र में फंसते युवा, राजनीति में वहीं राजाओं वाली परंपरा का चलन बढ़ना, समुदाय का सरकार के भरोसे हो जाना, समाज एक न होकर विभिन्न जातियों में फिर से राजनीति के मायाजाल के चलते टुकड़े-टुकड़ें में टूटते जाना,धर्म का आडंबर एवं धर्म के सहारे राजाओं जैसा राजनेताओं द्वारा इसका उपयोग  भारत की एकात्मकता एवं समावेशीकरण  में सबसे बड़ी बाधा बनता जा रहा है।

 इस आजादी के अमृतकाल के अमृत पान करने का अब समय आ गया है कि जो सिर्फ वर्तमान में चमकदार दिख रहा है, यह वैसा ही है जैसे आसुरी माया में हुआ करता था। पर  इन सब भ्रमजाल पर विश्वास  न करें, बगैर लोभ लालच एवं निष्पक्षता से अपने मताधिकार को उपयोग कर भारत को ज्ञान आधारित,प्रकृति संमत,  गुलामी के इतिहास को ध्यान में रखकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देश के प्रति और विष्वास का भाव पैदा कर मजबूत कार्ययोजना सामुदायिक रूप् से तैयार करें एवं आगे बढ़ें।

वो देंगे क्या देश को जिन्हें सिर्फ खुद को  दिखाना आता है

धंधे की राजनीति में  उन्हें तो सिर्फ धन कमाना आता

आजादी के इस अमृत काल में इस बार,तख्त और ताज बदल दो

युवा पीढ़ी  को जो अभिप्रेरित न  करे  ऐसा राज दरबार बदल दो

 

   

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