चुनावी सीजन में जिलों की गूंज
मध्यप्रदेश में दो नए जिला बनाने की घोषणा के साथ आधा दर्जन क्षेत्रों से भी उठी मांग
भोपाल। मप्र में जब भी विधानसभा चुनाव आते हैं नए जिलों की घोषणा की जाती है। प्रदेश में वर्तमान में 52 जिले हैं। वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस चुनावी साल में अभी तक 2 नए जिलों-मऊगंज और नागदा की घोषणा कर चुके हैं। संभावना जताई जा रही है कि प्रदेश में जिस तरह अलग-अलग जिलों की मांग की जा रही है, उससे इस चुनावी साल में कुछ और जिलों की घोषणा हो सकती है। वहीं दो और जिलों की घोषणा कमलनाथ सरकार के समय से फाइलों में दबी है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है की आगामी दिनों में मप्र में 56 से अधिक जिले हो सकते हैं।
गौरतलब है कि जब भी चुनाव आते है अलग-अलग जिलों की मांग होने लगती है। वर्तमान में 16 और जिलों की मांग हो रही है। ऐसे में विधानसभा चुनाव तक जिलों का गणित फिर करवट ले सकता है। 52 जिलों वाला मध्यप्रदेश 56 तक पहुंच सकता है। चुनावी साल में हर बार जिलों की सियासत वोटबैंक साधने के लिए होती है। मध्यप्रदेश के गठन के समय 1956 में 43 जिले थे। छत्तीसगढ़ बनने के समय 2000 में 45 जिले थे। 2003, 2008, 2013 और 2018 के चुनावी कनेक्शन ने हर बार जिले बढ़ा दिए।
चुनावी साल में बढ़ जाते हैं जिले
जब भी विधानसभा चुनाव आते हैं, नए जिलों की का गठन किया जाता है। इस बार मप्र में दो नए जिलों की घोषणा हो चुकी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने चार मार्च को मऊगंज को जिला गठन का ऐलान किया। फाइलें चल पड़ी हैं। रीवा जिले से अलग कर इसका गठन होगा। वहीं 20 जुलाई को नागदा को जिला बनाने की सीएम ने घोषणा की। जल्द गठन की फाइलें चलेंगी। यह उज्जैन से अलग होकर बनेगा। इन दोनों जिलों के गठन से मप्र में जिलों की संख्या 54 हो जाएगी। 2003 में भाजपा ने आते ही नए तीन जिले अनूपपुर, बुरहानपुर, अशोकनगर बनाए। सीएम उमा भारती थीं। कुल जिले 48 हुए। 2008 में चुनावी साल होने के कारण फिर दो जिले अलीराजपुर, सिंगरौली बनाए गए। सीएम शिवराज सिंह थे। इससे कुल जिले 50 हो गए। 2013 में अगस्त में शाजापुर से अलग कर आगर-मालवा गठित किया गया। सीएम शिवराज ही थे। तब जिले 51 हो गए। 2018 में ठीक चुनाव के एक महीने पहले अक्टूबर में टीकमगढ़ से अलग कर निवाड़ी जिला बनाया गया। सीएम शिवराज ही थे। कुल जिले 52 हो गए। चुनाव तक दो जिले और बन सकते हैं। सीएम शिवराज या तो मैहर व चाचौड़ा को जिला बनाने की घोषणा कर इनके गठन की बाजी पलट सकते हैं या अन्य मांगों को लेकर विचार हो सकता है। मैहर व चाचौड़ा को लेकर भी फाइलें सीमित तौर पर चल चुकी हैं इसलिए ये मसला आगे उलझेगा । तत्कालीन सीएम कमलनाथ ने नागदा, मैहर, चाचौड़ा को जिला बनाने की घोषणा की थी। फाइलें चलीं लेकिन, अधिसूचना जारी नहीं हो सकी। नागदा में कांग्रेस काबिज है। मैहर, चाचौड़ा का गणित उलझा है। मैहर को अलग जिला बनाने भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी ने मोर्चा खोल रखा है। पार्टी भी बना ली है। मैहर अभी सतना में है। चाचौड़ा को गुना से अलग कर जिला बनाने कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह मुहिम चलाए हैं। दोनों जिलों का गठन सियासी गणित में भाजपा के लिए मुफीद नहीं है।
अब इनको जिला बनाने की मांग
प्रदेश में कई अन्य जिलों का बंटवारा कर नए जिले बनाने की मांग हो रही है। ओंकारेश्वर, बड़वाह, सोनकच्छ, सिरोंज, बीना, कन्नौद, खातेगांव, बागली, लवकुश नगर, जावरा को जिला बनाने की मांग की जा रही है। देवास के बागली को जिला बनाने की मांग लगातार उठ रही है। दीपक जोशी ने इसे उठाया था। हाटपिपलिया उपचुनाव के समय सीएम ने सहमति दी थी। सिरोंज व गंजबासौदा को भी जिला बनाने की मांग हो रही है। 2013 में यह मुद्दा बना था। सागर जिले की खुरई तहसील को अलग जिला बनाने की मांग की जा रही है। नए जिले बनाने से जहां नफा है तो नुकसान भी कम नहीं है। नए जिले के लिए बजट, स्टाफ, प्लानिंग, विकास अलग होगा। कलेक्टर-एसपी सहित अन्य अफसर अलग से रखे जाएंगे। विकास पर फोकस योजनाओं में अलग पात्रता होगी। दूसरी ओर ताबड़तोड़ जिले बनने से लंबे समय तक कई जिलों को अमला नहीं मिलता है। कम स्टाफ, शुरुआत में कम संसाधन, पांच से दस साल एक जिले को अमला व अन्य सुविधाएं पाने में लग जाते हैं। पूर्व सीएस एससी बेहार का कहना है कि जिले का गठन प्रशासनिक और जनता की जरूरत से होना चाहिए, इसे राजनीति के लिए नहीं बनाना चाहिए। मप्र में ऐसा हुआ कि घोषणा कर दी गई, लेकिन आपत्तियां इतनी आईं कि जिले नहीं बन सके। मापदंड तय कर देखना चाहिए कि जिला बनाने पर पर्याप्त संसाधन व सुविधाएं तुरंत मिल सकें।