केंद्र सरकार तक पहुंचा जीएमसी का सुसाइड केस
भोपाल। गांधी मेडिकल कॉलेज भोपाल (जीएमसी) के ऑब्स एवं गायनी विभाग की पीजी स्टूडेंट डॉ बाला सरस्वती की आत्महत्या का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। इस मामले में जीएमसी के जूनियर डॉक्टर कार्रवाई की मांग को लेकर हड़ताल कर रहे हैं तो वहीं देशभर के जेडीए और आरडीए सहित तमाम मेडिकल स्टूडेंट्स और डॉक्टर्स यूनियन का समर्थन इस हड़ताल को मिल रहा है। अब इस मामले की शिकायत केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह और केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ मनसुख मांडविया से की गई है। केरल के चालाकुडी से कांग्रेस सांसद बेनी बहानन ने पत्र लिखकर जीएमसी भोपाल में डॉ बाला सरस्वती की आत्महत्या के मामले में ऑब्स गायनी विभाग की एचओडी डॉ अरुणा कुमार पर सख्त कार्रवाई की मांग की है।
केरल की चालाकुडी के सांसद बेनी बहानन ने अमित शाह और डॉ मनसुख मांडविया को लेटर में लिखा- आप इस तथ्य से अवगत हैं कि मेडिकल स्कूल के दौरान, छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य महत्वपूर्ण जोखिम में होता है। और शिक्षकों और फैकल्टी मेंबर्स का नकारात्मक दृष्टिकोण इन छात्रों के बीच अत्याधिक तनाव और चिंता के मुद्दे पैदा कर सकता है, जो अक्सर आत्महत्या का कारण बनते हैं।इस संदर्भ में, मैं विनम्रतापूर्वक गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) भोपाल में 27 वर्षीय गर्भवती पीजी रेजिडेंट डॉक्टर डॉ बाला सरस्वती के माता-पिता के अनुरोध को आगे बढ़ा रहा हूं, जिसमें आपके तत्काल हस्तक्षेप और न्याय प्रदान करने के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग की गई है। उनकी बेटी की मौत 31 जुलाई, सोमवार की तडक़े हुई। भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) में डॉ. बाला सरस्वती की आत्महत्या के बारे में आप सभी जानते हैं। वह मूल रूप से आंध्र प्रदेश की रहने वाली थी और स्त्री रोग विज्ञान में पीजी तृतीय वर्ष की छात्रा थी, उसकी उम्र 27 वर्ष थी और वह 14 सप्ताह की गर्भवती थी।बेनी ने अपने लेटर में आगे लिखा- अपने सुसाइड नोट में उसने आरोप लगाया कि वह अपने उत्पीडऩ होने के कारण यह कदम उठा रही है। कई छात्रों और छात्रों के समूहों द्वारा यह आरोप लगाया गया था कि युवा डॉक्टर की आत्महत्या में विभागाध्यक्ष डॉ. अरुणा कुमार की भूमिका थी। उन्होंने कथित तौर पर डॉ. सरस्वती को परेशान किया और उनकी उपस्थिति या थीसिस पर हस्ताक्षर नहीं किए और न ही डॉ. सरस्वती को मातृत्व अवकाश लेने की अनुमति दी।
सांसद ने लिखा- यहां तक कि जीएमसी में स्त्री रोग विज्ञान के छात्रों ने भी दावा किया है कि संकाय सदस्य उनके साथ शारीरिक और मौखिक रूप से दुव्र्यवहार करते हैं और ओटी उपकरणों से उनकी पिटाई भी करते हैं। वे छात्रों को बीमारी में छुट्टी लेने की भी अनुमति नहीं देते हैं और उनसे ओवरटाइम काम कराया जाता है। इसके कारण उन्हें ठीक से भोजन भी नहीं मिल पाता है। इसके अलावा यह पता चला है कि जब छात्र उपरोक्त मुद्दों के बारे में शिकायत करते हैं तो फेल करने, परीक्षा न दे पाने आदि के परिणाम भुगतने की धमकी दी गई। विषाक्तता एक दुष्चक्र है क्योंकि ईमानदार और सभ्य एचओडी या डीन अपने सहयोगियों के समर्थन में सामने नहीं आते हैं जबकि जहरीले प्रोफेसर, एचओडी चुपचाप अपने छात्रों को अत्याधिक यातना देते हैं और दबाव डालते रहते हैं।
संबंधित विभाग और स्त्री रोग विशेषज्ञ की एचओडी डॉ. अरुणा कुमार से विस्तृत पूछताछ की जाए। घटना के लिए जो भी जिम्मेदार हैं जब तक उनके खिलाफ जांच चल रही है उन्हें तब तक निलंबित किया जाए। स्वस्थ कार्य वातावरण सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने चाहिए। और जीएमसी कॉलेज विभागों में दुरुपयोग और विषाक्तता की जांच की जाए। छात्रों के साथ व्यवहार करने के उनके रिकॉर्ड और ऐसे विषाक्त विभागों के लिए उत्पीडऩ सेल के साथ इसकी समीक्षा के आधार पर विभागाध्यक्षों की नियुक्ति के लिए नए सुधारों की आवश्यकता है। आशा है आप उपरोक्त मामले पर विचार कर पीडि़ता एवं उसके परिवार को न्याय दिलाना सुनिश्चित करेंगे।