मप्र देश की रजनीति में पदम विभूषण स्वयं सुन्दरलाल पटवा का कद जितना  उंचा रहा उससे अधिक मप्र की राजनीति में जन-जन के साथ लगाव एवं भोजपुर की जनता के कल्याण के लिए बड़े साहब का दिल हमेंशा बड़ा रहा ।

वरिष्ठ पत्रकार ऋषभ जैन पटवा साहब के समय के अपने अनुभव सांझा करते हुए बताते हैं- बड़े साहब को भोजपुर की जनता के प्रति अथाह लगाव था,कई ऐसे घटनाक्रम हुए जिन्हें याद कर अभी भी लगता है कि बड़े साहब हमारे बीच हैं ओर हमें मूर्त रूप में मार्गदर्शन कर रहे हैं। स्वं पटवा भारतीय जनता पार्टी   के उन नेताओं की पहली पीढ़ी में से थे, जिन्होंने 1975 के आपातकाल के बाद कांग्रेस पार्टी के कमज़ोर होने पर भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने में अपनी अहम भूमिका निभाई । इस पीढ़ी के कई अन्य लोगों की तरह, पटवा जी ने भी सरकार चलाने के गुर सीखे। विपक्ष में रहते हुए निर्धारित उच्च मानकों बनाते हुए विपक्ष का भी सम्मान किया। एक वाक्या तब का है जब  कांग्रेस नेता अजय सिंह राहुल भोजपुर क्षेत्र में अपने चुनाव कार्यालय का शुभारंभ कर रहे थे पटवा जी स्वयं उनके कार्यालय के शुभारंभ कार्यक्रम में पहुंच गए। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पटवा जी विरोधियों का सम्मान कितने सहज भाव से करते थे।

अपने मुख्यमंत्री काल में वे कितने संवेदनशील थे इसका एक उदाहरण क्षेत्र की एक क्रेसर खदान पर मजदूरी न मिलने से 5 बच्चों की मौत हो जाने के बाद देखा गया। अपने किसी जरूरी कार्य के चलते बाहर रहने के बाद भी वे इस घटना की पल-पल की जानकारी लेते रहे एवं सीधे घटना स्थल पर पहुंचकर 2-2 लाख रूपये की तत्काल व्यवस्था की एवं बच्चों को उनके ग्रह ग्राम छत्तीगढ़ भिजवाने की भी व्यवस्था की।

मुख्तार मलिक के आतंक पर लगाया लगाम

भोजपुर में मुख्तार का आतंक इतना था कि पुलिस भी उसे गिरफ्तार करने से घबराती थी। एक बार अमरथोन में मुख्तार गैंग ने पांच बच्चों का किडनैप कर लिया था,इस घटना के बाद स्वं पटवा जी गौरीशंकर शेजवार के साथ घटना स्थल पर सुबह से ही पुलिस टीम के साथ पहुंच गए,पुलिस के साथ मिलकर पांच बच्चों को पुलिया के नीचे से मुक्त कराया।  चिकलोद के जंगलों में मुख्तार का आतंक था, इस क्षेत्र में महिलाओं से लूट एवं छेड़खानी की घटनाएं आम थी। स्वं पटना ने स्वयं इस क्षेत्र में मुख्तार गैंग को समाप्त करने बड़ा प्रयास किया जिससे अब तक महिलाएं अपने आप को सुरक्षित महसूस कर रहीं हैं।

युवा नेतृत्व मे बहुत भरोसा

पटवा जी युवा नेतृत्व मे बहुत भरोसा करते थे, उनका विश्वास था कि युवा ही देश और राज्य को विकसित बना सकता है। इसी वजह से 1990 के चुनाव में 22  युवा कार्यकर्ताओं को टिकट दिलवा, जिसमें से बीस को विजय भी हासिल हुई। इन युवा नेताओं में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान, भारतीय जनता पार्टी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, केन्द्रीय इस्पात मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर, छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और उच्च शिक्षा मंत्री प्रेम प्रकाश पांडे शामिल थे।  इन नेताओं की प्रगति और संगठन के प्रति इन लोगों के भाव को देखकर ही लगता है कि सुंदरलाल पटवा कितने पारखी व्यक्ति थे।

तबादला उद्योग पर लगाया लगाम

सुंदरलाल पटवा परिस्थितियों को अपने वश में करना जानते थे। उनके राजनीतिक जीवन में ऐसे कई मौके आए जब उन्होने अपनी कुशल सांगठनिक क्षमता का परिचय दिया। सत्ता में रहने के दौरान वे अपने लिए एक लकीर खींच लिए थे, जिसको वह खुद भी नहीं लांघना चाहते थे, और न कभी लांघे। उनकी यही कार्यप्रणाली संगठन में भी रहने के दौरान थी। अनुशासन ही उनके लिए सब कुछ था। जब वे पहली बार मुख्यमंत्री बने तब राज्य में तबादला और पोस्टिंग एक उद्योग के रूप् में कार्य करता था, यह पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों के कुकर्मों का परिणाम था। पटवा ने मुख्यमंत्री बनते ही सबसे पहले इस पर रोक लगायी और स्थानांतरण का अधिकार मंत्रियों से लेकर सचिवालय के अधिकारियों के जिम्मे कर दिया। पटवा सरकार के इस कदम ने वर्षों से चल रहे इस नाजायज उद्योग पर विराम लगा।

  कार्यकर्ता को मानते थे अहम

स्वयं पटवा मानते थे की कार्य की नहीं कार्यकर्ता की चिंता करो,कार्य अपने आप हो जाएंगे। ऐसा ही एक उदाहरण तब देखा गया जब स्वं पटवा ने अपने हे हेलीकाप्टर से कई कार्यकर्ताओं का विधानसभा भ्रमण करवा दिया था। आम आदमी को वे उतने ही सम्मान से देखते थे जितना की उच्च स्तर के नागरिक क। वह हमेशा संगठन और राज्य के हित के लिए तत्पर रहते थे। वह उन बातो को लेकर अपने वरिष्ठों से भी बहस करने लगते थे, जो विषय संगठन और राज्य के हित में नहीं थे। लेकिन उनकी बहस तर्कों की चाशनी में ऐसी घुली होती थी कि उनके वरिष्ठ भी उनसे असहमत नहीं होते थे। किसी को नाराज किए बिना अपनी बात मनवा लेने की एक अद्भुत क्षमता थी उनके अंदर।

राजनीति को कभी साधन नहीं समझे

अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय उन्होंने 1997 के उपचुनाव मे छिंदवाड़ा से कमलनाथ जैसे दिग्गज को हराकर दिया। अपने जनकल्याकारी निर्णय और सख्त फैसले के लिए उनको हमेशा याद किया जाएगा, अपने पूरे जीवन में वह संगठन के अनुशासन को जिए, गांव गरीब और किसानों की व्यथा को समझे और उनके दुःखों को अनुभव करने की कोशिश करते रहे। वह पंडित दीनदयाल उपाध्याय के परंपरा के नेता थे, राजनीति उनके लिए साध्य था, ऐसा साध्य जिससे गरीबों का कल्याण हो, देश की प्रगति हो और समाज में समरसता का वातावरण हो। वह राजनीति को कभी साधन नहीं समझे। उनके ऊपर जो भी जिम्मेदारी आयी उसे पूरे मनोयोग से पूरा किया। अपने कार्यशैली में पारदर्शिता स्थापित की तथा समाज, सरकार और संगठन के प्रति अपनी जवाबदेही तय किये। 

1990 के दसक में ही भोजपुर को कांग्रेस मुक्त करने की घोषणा

1990 के दसक में ही पटवा जी ने ऐसा कार्य किया एवं संगठन को इतना मजबूत किया की अब उसका एहसास होने लगा है। आज जिस तरह के भोजपुर विधानसभा में कांग्रेस की स्थिति है उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पटवा जी किस दूरदर्शिता से कार्य करते थे एवं भविष्य का अंदाज लगा सकते थे। वर्तमान में भोजपुर क्षेत्र में उनके नक्शे कदम पर ही कार्य हो रहे हैं जिससे भोजपुर क्षेत्र में आज कांग्रेस को ढूढ़ने से कार्यकर्ता नहीं मिल रहे है।

पत्रकारों का करते थे बड़ा सम्मान

स्वं पटवा पत्रकारों का सम्मान करते थे। उनका मानना थ कि पत्रकार किसी भी राजनेता की आंख कान होती है,विकास गतिविधियों का सही आकलन करने एवं व्यवस्था में सुधार हेतु पत्रकार को अपनी कलम पैनी रखनी चाहिए। एक बार मण्डीदीप में एक पत्रकार सम्मेलन में के दौरान वे दिल्ली में थे। पत्रकारों द्वारा उन्हे आमंत्रित किया गया था। स्वं पटवा दिल्ली से बगैर बंगले गए सीधे मण्डीदीप पहुंच गए । वहीं कार्यकर्ताओं के हाथों से बनी रोटी खायी एवं पत्रकारों की कार्यशाला में शामिल हो गए। सौम्य व्यक्तित्व, शालीन व्यवहार, कुशल संगठन क्षमता, ओजस्वी वक्ता और विभिन्न जन समस्याओं को उठाने वाले  जुझारू नेता के रूप में सुन्दरलाल पटवा ने सार्वजनिक ओर राजनीतिक जीवन में अपनी एक अलग  पहचान बनाने वाले सच्चे समाजसेवी स्वं सुन्दरलाल पटवा को दिल से श्रद्धांजलि ।

 

 

 

 

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