आदेश निकालने में देरी, पीओपी की बन गई मूर्तियां
भोपाल । गणेश चतुर्थी के लिए शहर में एक हजार से ज्यादा छह से बारह फीट की प्रतिमाएं बनकर तैयार हो चुकी हैं। वहीं छोटी प्रतिमाओं की संख्या भी अब पांच से सात हजार तक पहुंच गई है। ऐसे में पीओपी की प्रतिमाओं और उनकी ऊंचाई को लेकर कलेक्टर की तरफ से निकाला गया धारा-144 का आदेश प्रभावी होता नहीं दिख रहा। न ही इस बार एसडीएम मूर्तियों को लेकर कार्रवाई नहीं कर रहे। इसी का नतीजा है कि लिंक रोड नंबर तीन पर पीओपी की प्रतिमाएं खुले आम बन रही हैं। इधर मूर्तिकारों से जुड़े और हिउस के पूर्व अध्यक्ष नारायण सिंह कुशवाह का कहना है कि मई माह से मूर्तियां बनना शुरू हो जाती हैं। इस बार प्रशासन आदेश जारी करने में लेट हो गया। एक हजार प्रतिमाएं तो छह से बारह फीट की बनकर तैयार हैं।
कलकत्ता से आकर यहां कई माह पूर्व मूर्तियां बनाने का काम करने वाले मूर्तिकार अनूप डे बताते हैं कि प्रशासन की बैठक के बाद वे और अन्य मूर्तिकार बड़े मूर्तियां नहीं बना रहे हैं। वे प्रशासन से अनुमति लाने के लिए कह देते हैं। इधर एडीएम हरेंद्र नारायण ने कलेक्टर की तरफ से एनजीटी के नियमों को ध्यान में रख निकाले गए धारा-144 का आदेश को लेकर मूर्तिकारों के साथ बैठक कर उन्हें पीओपी की मूर्तियां नहीं बनाने और खतरनाक कलर नहीं करने के लिए निर्देशित किया है। इसके बाद भी पीओपी की मूर्तियां बनाई जा रही हैं। करीब 22 से 24 हजार छोड़ी बड़ी प्रतिमाओं का विसर्जनगणेश चतुर्थी के बाद राजधानी में हर साल 22 से 24 हजार प्रतिमाओं का विसर्जन कर साल होता है। ये तो वो आंकड़ा है जो प्रशासन की तरफ से तए किए गए घाटों पर मूर्तियां विसर्जित होती हैं। इसके अलावा गांव, देहात में भी काफी मूर्तियां शहर से बनकर जाती हैं। इसके अलावा काफी मूर्तियों को घरों में विसर्जित किया जाता है। अनुमान के तहत गणेश चतुर्थी पर ही करीब 30 हजार से ज्यादा छोटी बड़ी प्रतिमाओं को बिक्री होती है। 800 से ज्यादा पांडाल लगाए जाते हैं, जिसमें 400 से ज्यादा तो बड़ी प्रतिमाओं के होते हैं।
महिलाएं गोबर की खास ईको फ्रेंडली गणेश प्रतिमाओं का निर्माण करती हैं। मान्यताओं के अनुसार ये प्रतिमाएं पवित्र तो हैं ही, साथ ही विसर्जन के बाद भी हमेशा आपके साथ ही रहेती हैं। इन प्रतिमाओं को देसी गाय के गोबर, लकड़ी के बुरादे से तैयार किया जाता है। जो पूरी तरह से प्राकृतिक है। इतना ही नहीं भगवान का खूबसूरत श्रृंगार भी प्राकृतिक रंगों से ही किया जाता है। उत्सव के बाद आप इन प्रतिमाओं का विसर्जन बड़ी आसानी से घर के गमलों में कर सकते हैं. इसके बाद वे पौधे के लिए खाद का काम भी करेंगे।
रंग पानी को करता है जहरीला
पीओपी की मर्तियों में विषाक्त रंगों से निर्मित मूर्ति एवं उनके विसर्जन से प्रदूषण बढ़ जाता है। कलेक्टर ने आने आदेश में प्राकृतिक रंगों का उपयोग करने के निर्देश दिए हैं। इसके बाद भी काफी जगह केमिकल व रासायनिक वस्तुओं का उपयोग प्रतिमा, मूर्ति निर्माण में किया जा रहा है।