मप्र के लगभग 6 से 8 जिलों में जलसंकट गहराता जा रहा है। हाल ही में जारी एक सरकारी रिपोर्ट ने ने जहां पानी के दोहन पर चिंता की लकीर डाल दी है वहीं, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार मप्र के आठ जिले मई-जून तक भीषण जलसंकट से गुजर सकते हैं। दरअसल मध्य प्रदेश के 52 जिलों के 317 ब्लॉक्स में वाटर असेसमेंट यूनिट लगे हुए हैं। ये बारिश के पानी, भूजल और उसके दोहन से जुड़ी सारी जानकारी इकट्ठा करते हैं। इन 317 यूनिट्स में पानी की स्थिति के आधार पर अलग-अलग चार श्रेणियां बनाई हैं। इनमें 225 यूनिट्स सुरक्षित श्रेणी (Safe), 61 अर्ध गंभीर (Semi Critical), 5 गंभीर (Critical) और 26 अत्यधिक शोषित (Over Exploited) श्रेणी में शामिल हैं।

भूजल के दोहन के आधार पर जिन यूनिट्स में 70 प्रतिशत के बराबर या उससे कम भूजल का दोहन किया जाता है उसे सुरक्षिण श्रेणी में रखा जाता है। दूसरी श्रेणी जहां 70 से 90 प्रतिशत के बीच भूजल दोहन होता है उसे अर्ध गंभीर कहते हैं। तीसरी श्रेणी में 90 से 100 प्रतिशत तक भूजल का शोषण हो चुका होता है ऐसी यूनिट्स को गंभीर श्रेणी में रखा जाता है। आखिरी श्रेणी 100 प्रतिशत से अधिक जल दोहन को बतलाती है, इसे अत्यधिक शोषित श्रेणी कहते हैं।

इंदौर, मंदसौर, नीमच, रतलाम, शाजापुर और उज्जैन मध्य प्रदेश के वे जिले हैं, जो अपने भूजल रीचार्ज (ground water recharge) की तुलना में 100 प्रतिशत से अधिक भूजल का दोहन कर रहे हैं। साल 2023 और 2024 में इन जिलों में भूजल का दोहन अत्यधिक रहा है, जो भविष्य के संकट की ओर इशारा करता है।

इन जिलों के अलावा प्रदेश की कुल 26 यूनिट्स हैं जहां भूजल रीचार्ज का 100 प्रतिशत से अधिक दोहन किया जा रहा है। गौरतलब है कि राज्य का कुल वार्षिक भूजल रीचार्ज 35.90 बीसीएम है, जिसमें से निकालने योग्य जल 33.99 बीसीएम है लेकिन 19.85 बीसीएम निकाला गया। इसे और आसान भाषा में समझें तो प्रदेश में कुल भूजल का 58.4 प्रतिशत हिस्सा निकाला जा चुका है।

केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) की डायनामिक ग्राउंड वाटर रिसोर्स ऑफ इंडिया 2024 की रिपोर्ट के हिसाब से साल 2024 में 1051.9 मिमी की औसत वर्षा दर आंकी गयी है। वहीं साल 2023 की वार्षिक औसत वर्षा दर 1077.5 मिमी रही थी। जबकि मध्य प्रदेश की समान्य वर्षा दर 1040.4 मिमी है यानि भूजल दोहन की क्षतिपूर्ति के मौके भी प्रदेश के पास कम ही हैं।

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न्यूज़ सोर्स : ipm