सामुदायिक जल प्रबंधन से आदर्श ग्राम बनने की ओर बुंदेलखण्ड का यह गांव
पल्थरा एक छोटा सा आदिवासी गांव है, जो मध्यप्रदेश के पन्ना जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर जंगल में है। यहां समुदाय ने आगे बढ़कर जल प्रबंधन का काम अपने हाथ में ले लिया है और यहां न केवल वर्तमान में नल-जल योजना का सुचारू संचालन हो रहा है, बल्कि भविष्य में पानी की दिक्कत न हो, इस पर भी ध्यान दिया जा रहा है। यहां हर घर में नल कनेक्शन है। ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति के माध्यम से ग्रामीण हर महीने 100 रुपए जल कर देते हैं। यहां निस्तार के पानी का उपयोग किचेन गार्डन में किया जा रहा है। गांव में ग्रे वाटर प्रबंधन पर भी काम चल रहा है। गांव में पुराने जल स्रोतों के बेहतर रखरखाव के साथ गांव में सघन स्तर पर पेड़ लगाने का अभियान चलाया गया है, ताकि गांव में भविष्य में भी जल संकट और सूखे जैसी स्थिति नहीं आए।
गर्मी के महीने में मध्यप्रदेश के ग्रामीण इलाकों में, खासतौर से बुंदेलखंड-बघेलखंड में जल संकट एक बड़ी समस्या है। पिछले कई सालों से अलग-अलग योजनाओं और अभियानों के माध्यम से इस समस्या से निजात पाने की कोशिशें की जा रही हैं। जल जीवन मिशन के माध्यम से गांवों में हर घर पानी पहुंचाने के लिए नल कनेक्शन दिए जा रहे हैं और ओवरहेड टैंक के माध्यम से पानी की सप्लाई की जा रही है। इसके बावजूद गांवों में पर्याप्त भूजल नहीं होने और समुदाय की सक्रियता के अभाव में जल संकट को पूरी तरह से दूर नहीं किया जा सका है। लेकिन पल्थरा में समुदाय की जागरूकता ने काफी हद तक इस समस्या का समाधान कर लिया है।
77 वर्षीय जनक सिंह कहते हैं, ‘‘गांव में एक दर्जन से ज्यादा कुएं थे, लेकिन 2 कुएं का उपयोग पेयजल के लिए हो पाता था। आसपास का घना जंगल भी धीरे-धीरे खत्म हो गया। ऐसे में गांव में गर्मी के दिनों में पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता था। फिर यहां सभी घरों में नल कनेक्शन दिया गया। इसके बाद भी एक साल पहले तक कोई व्यवस्था नहीं होने से नल से पानी की नियमित सप्लाई नहीं हो पा रही थी। लेकिन अब पिछले एक साल में हमारे घरों में नियमित पेयजल आ रहा है।’’
कुएं का उपयोग पेयजल के लिए
समर्थन संस्था से जुड़े जल प्रबंधन विशेषज्ञ राजकुमार मिश्रा बताते हैं, ‘‘गांव में ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति गठित नहीं होने और समुदाय की उदासीनता से हर घर में पानी की सप्लाई नहीं हो पा रही थी। संस्था के सहयोग से यहां जन चौपाल का आयोजन किया गया, जिसमें जल प्रबंधन से जुड़ी समस्याओं और उसके समाधान पर चर्चा किया गया। पंचायत सचिव एवं पंचायत प्रतिनिधियों की उपस्थिति में आम सभा का आयोजन किया गया और महिलाओं की अगुवाई में ग्राम जल एवं स्वच्छता समिति का गठन किया गया। समिति सदस्यों को उनकी भूमिका और जिम्मेदारियों को लेकर प्रशिक्षित किया गया और इन्हें वाटर सप्लाई की जिम्मेदारी दी गई। इसके बाद गांव में नियमित पेयजल की सप्लाई शुरू हो पाई।’’ उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि गांव के बाहर की तरफ बने कुछ घरों तक पानी की सप्लाई नहीं हो पा रही है, जिसका समाधान पीएचई के साथ मिलकर किया जाएगा।
किचेन गार्डेन
गांव के बुजुर्ग जालम सिंह का कहना है, ‘‘घर में पानी की सप्लाई होने से हम सभी किचेन गार्डेन बनाया है, जहां से हमें कई सब्जियां मिल जाती हैं। इससे हमें अब सब्जी-भाजी खरीदने में पैसा नहीं खर्च करना पड़ता है।’’ वीडब्लयूएससी की सदस्य बृजेश रानी कहती हैं, ‘‘पहले हमें कुएं से दिन में दो बार 3-4 चक्कर में पानी लाना पड़ता था। एक साथ दो-दो घड़े पानी लाते थे। पानी लाने में दिन के 3-4 घंटे चले जाते थे। हमारे लिए आराम करना मुश्किल था। अब हमें न केवल आराम मिलता है, बल्कि अन्य दूसरे काम भी हम कर पाते हैं।’’ राजा बाई का कहना है, ‘‘खुले का पानी बारिश में गंदा हो जाता था, जिससे हम बीमार पड़ जाते थे। बीमारी में ही ग्रामीणों को काफी पैसा खर्च करना पड़ता था। दो साल पहले मुझे उल्टी-दस्त हो गया था, जिसमें 2 हजार रुपए खर्च हो गए थे। अब नल से साफ पानी आने से हम बीमार नहीं पड़ते।’’ 12वीं की छात्रा शशि सिंह बताती हैं कि वे बहुत छोटी थी, तभी से वह कुएं से पानी लाती थी। खेलने के बजाए पानी लाने की जिम्मेदारी उन पर थी। कई बार पढ़ाई के समय भी जरूरत पड़ने पर पानी लाने जाना पड़ता था। आगे की पढ़ाई के लिए गांव से बाहर गई, लेकिन छुट्टियों में घर आने पर पानी लाने की जिम्मेदारी मिल जाती थी। अब ऐसा नहीं है। वह बहुत खुश हैं कि कुएं पर जाकर नहाने या पानी लाने की जिम्मेदारी नहीं है।
आदर्श गांव पल्थरा
समर्थन के क्षेत्रीय समन्वयक ज्ञानेन्द्र तिवारी बताते हैं, ‘‘जल जीवन मिशन से कई गांवों में काम हो रहा है, लेकिन पल्थरा के ग्रामीणों में जल प्रबंधन एवं संरक्षण को लेकर उत्साह है। इस गांव में चारों ओर सफाई दिखाई देती है। इस गांव में सामुदायिक ग्रे वाटर प्रबंधन के लिए काम किया जा रहा है। गांव में समुदाय के बीच रहकर रात-दिन ग्रामीणों को लामबंद किया जा रहा है, जिससे ग्रामीण भी इस काम में बढ़-चढ़कर अपना सहयोग दे रहे हैं।’’
ग्रामीणों ने तय किया है कि इस साल कई जंगली पौधों के साथ-साथ फलदार पेड़ भी गांव में लगाएंगे। ग्रामीण अपने द्वारा लगाए गए पौधों की जिम्मेदारी ले रहे हैं, जिसमें वे उसकी नियमित देखभाल करेंगे और पानी डालेंगे। यह एक अनूठा प्रयास है। इसे लेकर बुजुर्ग ग्रामीण कहते हैं कि उनके बचपन में गांव जैसा हरा-भरा था, उसी तरह गांव को फिर से हरा-भरा करना है। ग्रामीणों को भले ही घरों में पानी मिल जा रहा है, लेकिन वे कुओं की भी नियमित सफाई कर रहे हैं, ताकि जरूरत पड़ने पर उसका उपयोग किया जा सके। ग्रामीण इस बात को समझने लगे हैं कि नल कनेक्शन मिल जाना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि जल संरक्षण और उसके बेहतर प्रबंधन से ही जल सुरक्षा संभव है। वे अपने गांव को जल प्रबंधन में एक आदर्श गांव बना रहे हैं, ताकि दूसरे गांव भी प्रेरित होकर इस दिशा में आगे बढ़ सकें।