शिवराज कैबिनेट का विस्तार जल्द, कई नए चेहरों को मिल सकती है जगह
भोपाल/ गुजरात चुनाव में अपनाए गए फार्मूले से मिली आश्चर्यजनक जीत से भाजपा में इन दिनों बेहद उत्साह है। अब मध्यप्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भी पार्टी का राष्ट्रीय संगठन इसी फार्मूले को लागू करने के लिए कई कड़े निर्णय कर सकती है। इसकी शुरूआत शिव सरकार के मंत्रि मंडल से संभावित है। दरअसल माना जा रहा है कि बहुप्रतीक्षित मंत्रिमंडल का अब विस्तार की जगह पुर्नगठन किया जा सकता है। इसमें मौजूदा मंत्रियों में से नकारा व उम्रदराज हो चुके चेहरों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। कहा जा रहा है कि यह पुर्नगठन विधानसभा का शीतकालीन सत्र समाप्त होते ही कर दिया जाएगा। इसमें चुनावी दृष्टि से जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों का भी पूरा ध्यान रखा जाएगा। इस हिसाब से करीब आधा दर्जन से अधिक चेहरों को मंत्री बनाया जाना संभावित है।
पुराने चेहरों को हटाकर नए चेहरों को मौका
फिलहाल प्रदेश में चार मंत्रियों की ही जगह है। ऐसे में पुराने चेहरों को हटाकर नए चेहरों को मौका दिया जाएगा। यही नहीं बताया जा रहा है कि इस पुर्नगठन में दो मंत्रियों को पदोन्नत भी किया जाएगा। इनमें स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री रामकिशोर कांवरे और भारत सिंह कुशवाहा को पदोन्नत कर कैबिनेट मंत्री बनाया जा सकता है। प्रदेश में भाजपा की सत्ता में वापसी के बाद करीब एक माह तक अकेले शिवराज सिंह चौहान ने ही सरकार सम्हाली थी उसके करीब एक माह बाद मंत्रिमंडल का गठन किया गया था , जिसमें महज पांच चेहरों को अपनी कैबिनेट में शामिल किया गया था। इसके बाद जुलाई 2020 में उन्होंने अपनी कैबिनेट का विस्तार करते हुए इसमें 19 कैबिनेट और सात राज्य मंत्रियों को शामिल किया था। फिलवक्त शिवराज की कैबिनेट में 23 कैबिनेट और सात राज्यमंत्री हैं। तब इस विस्तार में राजनीतिक समझौते की मजबूरी के चलते श्रीमंत समर्थक विधायकों और उस समय कांग्रेस छोड़ भाजपा में आने वाले कई नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह देनी पड़ी थी। इस राजनैतिक मजबूरी के चलते भाजपा के कई दिग्गज नेताओं को मंत्री पद से बाहर रखने को मजबूर होना पड़ा था। इसकी वजह से मंत्रिमंडल में क्षेत्रीय और जातिगत समीकरण पूरी तरह से बिगड़ गए थे। इसकी वजह से पार्टी के पक्ष में बड़ी सफलता दिलाने वाले अंचलों को भी र्प्याप्त जगह नहीं मिल सकी थी। अब प्रदेश में आम विधानसभा चुनाव में महज एक साल का ही समय रह गया है , ऐसे में संगठन को अब जातीय और क्षेत्रीय संतुलन की चिंता सताने लगी है। यही वजह है कि अब होने वाले शिव के अंतिम मंत्रिमंडल पुर्नगठन में इसका पूरा ख्याल रखा जाएगा। ऐसे में पार्टी और सरकार के मुखिया द्वारा कई बार में की गई कामकाज की समीक्षा में कई मौजूदा सदस्य संगठन व सरकार की मंशा के अनुरूप कामकाज और जनता की आंकाक्षों पर खरा नहीं उतर सके हैं। ऐसे मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाना भी तय माना जा रहा है। दरअसल प्रदेश मंत्रिमंडल में कई चेहरे ऐसे हैं, जो अब तक अपने विभाग पर पकड़ तक नहीं बना सके हैं। इनमें से कई तो पार्टी व सरकार के सर्वे तक में दयनीय स्थिति में पाए गए हैं। यही वजह है कि समय-समय पर संगठन व सीएम द्वारा किए गए वन टू वन में ऐसे मंत्रियों को कामकाज में सुधार की नसीहत के बहाने उन्हें हटाने के संकेत भी दिए जा चुके हैं। यह बात अलग है कि चुनावी साल होने की वजह से प्रदेश संगठन व मुख्यमंत्री स्वयं मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाकर कोई नया विवाद खड़ा नहीं करना चाहते हैं, लेकिन केन्द्रीय नेतृत्व इस मामले में बेहद कड़ा फैसला कर सकता है। इसकी बानगी गुजरात में सामने आ चुकी है। यही वजह है कि गुजरात चुनाव के बाद से अब प्रदेश के कई मंत्रियों की धड़कने बड़ी हुई हैं।
इन चेहरों को मिल सकता है मौका
पार्टी सूत्रों की माने तो दावेदारों में उपचुनाव के समय कांग्रेस छोड़कर भाजपा के टिकट पर विधायक बनी सुलोचना का नाम पहले स्थान पर है। वे जोबट से विधायक हैं। आदिवासी वर्ग से आने वाली सुलोचना कांग्रेस सरकार में भी मंत्री रह चुकी है। संगठन सूत्रों की माने तो उन्हें उस समय चुनाव जीतने के बाद मंत्री बनाने का वादा भी किया गया था। इसी तरह से टीकमगढ़ जिले के जतारा से तीसरी बार विधायक बने पूर्व मंत्री रह चुके हरीशंकर खटीक की दावेदारी भी बेहद मजबूत बनी हुई है। वे फिलहाल भाजपा के प्रदेश महामंत्री हैं और अनुसूचित जाति वर्ग से आते हैं। उधर, रीवा से लगातार चार बार से विधायक बन रहे राजेन्द्र शुक्ला शिवराज की हर कैबिनेट में मंत्री रहे हैं, लेकिन इस बार अब तक उन्हें मौका नही मिला है। उन्हें मुख्यमंत्री का बेहद करीबी माना जाता है।
विंध्य अंचल का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की मंशा से उन्हें भी मंत्री बनाया जा सकता है। इसी तरह से जबलपुर जिले के सीहोरा से तीसरी बार विधायक बनी नंदिनी मरावी का भी नाम इसमें शामिल है। वे आदिवासी वर्ग से आती हैं। कटनी जिले के विजयराघोगढ़ से तीसरी बार विधायक बने संजय पाठक पूर्व में भी मंत्री रह चुके हैं। उन्हें भी महाकौशल में पार्टी को मजबूत करने का इनाम मिल सकता है। अन्य दावेदारों में रीवा राजपरिवार से ताल्लुक रखने वाले सिरमौर विधानसभा क्षेत्र से दूसरी बार विधायक बने दिव्यराज सिंह का भी नाम है। इसके अलावा मुख्यमंत्री के विश्वसनीय साथी और पांच बार के विधायक रामपाल सिंह की भी बेहद मजबूत दावेदारी है। वे भी पूर्व में मंत्री रह चुके हैं।
ग्वालियर-चंबल से सर्वाधिक मंत्री
शिवराज कैबिन्ेट में अभी ग्वालियर-चंबल क्षेत्र से सर्वाधिक नौ मंत्री शामिल है। इससे बड़े क्षेत्र मालवा से महज आधा दर्जन ही मंत्री हैं। इनमें इंदौर जैसे बड़े जिले से तो महज एक मात्र ऊषा ठाकुर को ही मंत्री बनाया गया है। इसी तरह बुंदेलखंड से चार मंत्री है इनमें तीन गोविंद राजपूत, गोपाल भार्गव और भूपेन्द्र सिंह एक ही जिले सागर से हैं। पन्ना से बृजेन्द्र प्रताप सिंह के अलावा छतरपुर, टीकमगढ़ और दमोह से कोई विधायक मंत्री नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक सीटों पर भाजपा को विजय दिलाने वाले विंध्य का भी प्रतिनिधित्व बेहद कम है। यहां से रामखेलावन पटेल, बिसाहूलाल सिंह और मीना सिंह मंत्री है। हालांकि यहां कमी पूरी करने के लिए गिरीश गौतम को विधानसभा का अध्यक्ष जरुर बनाया गया है, लेकिन इसके बाद से लगातार इस अंचल से और मंत्री बनाए जाने की मांग उठती रही है।
आधा दर्जन मंत्री डेंजर जोन में
दरअसल भाजपा संगठन अब तक अपने स्तर पर मंत्रियों और विधायकों के कामकाज पर दो बार सर्वे करा चुकी है। इसमें करीब आधा दर्जन मंत्रियों की रिपोर्ट खराब पाई गई है। जिसमें विंध्य , मालवा और ग्वालियर- चंबल के दो-दो और एक मध्य भारत क्षेत्र के भी मंत्री हैं। पार्टी अगर गुजरात की ही तरह यहां पर भी अगर सख्त फैसला लेती है तो इन मंत्रियों का कैबिनेट से बाहर होना तय है। खास बात यह है कि इनमे भी कई मंत्री ऐसे हैं जो सत्तर की उम्र पार कर रहे हैं। दरअसल दोनों ही सर्वे की रिपोर्ट पार्टी आलाकमान के पास दिल्ली पहुंच चुकी है और उस पर हाल ही में मंथन का एक दौर भी हो चुका है।