एक शोध में दावा किया गया है कि भारत में वन्यजीवों जैसे बाघों की निगरानी के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कैमरा ट्रैप और ड्रोन जैसी तकनीकों का इस्तेमाल ग्रामीण महिलाओं को परेशान करने और उनकी जासूसी करने के लिए हो रहा है.

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ता त्रिशांत सिमलाई ने 14 महीनों तक उत्तर भारत के कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के पास 270 लोगों से बात की. उन्होंने पाया कि ये तकनीकें महिलाओं की आजादी पर गहरा असर डाल रही हैं.

कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के आसपास रहने वाली महिलाओं के लिए जंगल एक ऐसा स्थान है जहां वे पारंपरिक और पितृसत्तात्मक समाज से दूर अपनी आजादी महसूस करती थीं. वे वहां गीत गातीं, वर्जित विषयों पर चर्चा करतीं और कभी-कभी धूम्रपान और शराब का सेवन भी करती थीं.

लेकिन अब जंगलों में लगे कैमरा ट्रैप और ड्रोन ने महिलाओं की आजादी और निजता में सेंध लगा दी है. सिमलाई ने कहा, "इन तकनीकों ने पुरुष प्रधान समाज की निगाहों को जंगल तक बढ़ा दिया है." 

2017 में एक कैमरा ट्रैप ने एक ऑटिस्टिक महिला की तस्वीर खींच ली, जब वह जंगल में शौच कर रही थी. इस तस्वीर को अस्थायी वन कर्मचारियों ने सोशल मीडिया पर साझा कर दिया. इससे नाराज ग्रामीणों ने कैमरा ट्रैप तोड़ डाले. त्रिशांत सिमलाई ने बताया कि अस्थायी वन कर्मियों के रूप में नियुक्त युवकों ने इस फोटो को स्थानीय व्हाट्सएप और फेसबुक ग्रुप्स पर साझा किया ताकि "महिला को शर्मिंदा किया जा सके."
एक स्थानीय निवासी ने शोधकर्ताओं से कहा, "जब हमारे गांव की बेटी को इस तरह बेशर्मी से अपमानित किया गया, तो हमने हर कैमरा ट्रैप को तोड़ दिया और जला दिया."

एक स्थानीय महिला ने शोध में बताया, "हम कैमरों के सामने नहीं चल सकते या ऐसे बैठ नहीं सकते, जिससे हमारी तस्वीरें गलत तरीके से खींची जा सकें." सिमलाई ने अपने शोध में कहा है कि ड्रोन का भी महिलाओं को डराने के लिए दुरुपयोग किया गया. कई बार ड्रोन महिलाओं के ऊपर उड़ाए गए, जिससे वे डरकर अपने काम को छोड़कर भाग गईं.

महिलाओं ने कैमरों से बचने के लिए जंगल के गहरे हिस्सों में जाना शुरू किया है, जो बाघों के लिए जाना जाता है. इस बदलाव के चलते एक महिला इस साल बाघ के हमले में मारी गई. इस महिला ने 2019 में चिंता भी जाहिर की थी.

शोध कहता है कि कुछ महिलाओं ने इन तकनीकों का फायदा भी उठाया है. जैसे कि एक महिला ने बताया कि जब उसका पति उसे पीटता था, तो वह कैमरे के सामने भाग जाती थी ताकि उसका पति उसका पीछा न करे. 

सिमलाई ने कहा कि ये तकनीकें वन्यजीव संरक्षण के लिए बहुत प्रभावी हैं, लेकिन इनका उपयोग स्थानीय समुदायों के साथ परामर्श करके और अधिक पारदर्शिता के साथ किया जाना चाहिए. उन्होंने वन अधिकारियों को स्थानीय कर्मचारियों को संवेदनशील प्रशिक्षण देने की सलाह दी.

शेफील्ड यूनिवर्सिटी की संरक्षण विशेषज्ञ रोसलीन डफी ने कहा, "यह आश्चर्यजनक नहीं है कि ये तकनीकें महिलाओं को परेशान करने के लिए इस्तेमाल हो रही हैं. मुझे हैरानी इस बात पर है कि संरक्षणकर्ता यह कल्पना करते हैं कि तकनीकों को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक शून्य में पेश और इस्तेमाल किया जा सकता है."

डफी ने कहा, "इस शोध में जो मामले हैं, वे संयोग नहीं हैं. वे सक्रिय रूप से ड्रोन का इस्तेमाल महिलाओं को परेशान करने के नए तरीके देने के लिए कर रहे थे." उन्होंने यह भी कहा कि तकनीक के उपयोग के लिए स्पष्ट नियम और दुरुपयोग के लिए कड़ी सजा होनी चाहिए.

न्यूज़ सोर्स : ipm