सामुदायिक खेती से मण्डी के भरोषे न रहकर ग्लोबल हो जाएंगे किसान
विकसित भारत की दिशा में सामुदायिक खेती एक बेहत विकल्प हो सकता है। सरकार को किसान उत्पाद संगठनों के सिर्फ प्रशिक्षण पर धन की बंदरबाट करने के साथ जमीन पर प्रायोगिक प्रयास से इस ओर कार्य किये जाने चाहिए। जानते हैं क्या होती है सामुदायिक खेती एवं उसके कुछ उदाहरण
सामुदायिक खेती किसानों का एक समुह के रूप में कार्य करता है। यह समूह अपने क्षेत्र की बंजर भूमि को भी उपजाउ बना सकता है। समुदाय के सहयोग से अनेकों प्रकार की खेती की जा सकती है। सामुदायिक खेती से बाजार तक सीधे पहुंच भी बढ़ाई जा सकती है। अलग अलग विंग बनाकर खेती को सुपर माडल के रूप में किया जा सकता है।
उदाहरण के तोर पर बस्तर के इस किसान को देखा जा सकता है इन्होने सफेद मूसली एवं काली मिर्च के लिए हेलीकाप्टर खरीदा है। यह ऐसे किसान है जो समुदाय के सहयोग से खेती कर रहे हैं।
डॉ राजाराम त्रिपाठी चार बार के सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार सम्मानित हैं, वे बस्तर के कोंडागांव और जगदलपुर में सफेद मूसली, काली मिर्च और स्ट्रोविया की खेती कर रहे हैं। डॉण् राजाराम त्रिपाठी वर्तमान में 25 करोड़ रुपये वार्षिक टर्नओवर वाले मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के सीईओ हैं और 400 आदिवासी परिवार के साथ एक हजार एकड़ मे, सामूहिक खेती कर रहे हैं, यह समूह यूरोपीय और अमेरिकी देशों में काली मिर्च का निर्यात कर रहा है ।
सवाल यह कि जब राजाराम जैसे समाजसेवी कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं और जब राजाराम कर सकते हैं तो सरकारें ऐसे प्रयास क्यों नहीं करवा रही है। ऐसी खेती की ओर सामुदायिक संगठनों को जाना चाहिए साथ सरकार को सामुदायिक खेती के लिए बड़ें ठोस अभियान जमीनी स्तर पर चलाना चाहिए।