भोपाल । मध्य प्रदेश के कान्हा टाइगर रिजर्व में राज्य सरकार जंगली भैंसे बसाएगी। मध्य प्रदेश सरकार का वन विभाग आसाम सरकार को पत्र लिखकर जंगली भैंसों की मांग करेगा। अगर सब कुछ ठीक रहा तो कान्हा टाइगर रिजर्व में पर्यटक जंगली भैंसों का दीदार कर सकेंगे। कान्हा में जंगली भैंसों के अनुकूल वातावरण है या नहीं, वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया ने इसका अध्ययन भी कराया है। वन विभाग ने अध्ययन रिपोर्ट के आधार पर वन मंत्री को प्रस्ताव भेजा है। बता दें कि प्रदेश में 40 साल पहले जंगली भैंसें कान्हा के जंगलों में पाए जाते थे। अब राज्य सरकार एक बार फिर प्रदेश के जंगल को जंगली भैंसों से आबाद करने का प्रयास कर रही है।

 एशियाई जंगली भैंसों की संख्या वर्तमान में 4000 से भी कम रह गई है। एक सदी पहले तक पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में बड़ी तादाद में पाए जाने वाला जंगली भैंसें आज केवल भारत, नेपाल, बर्मा और थाईलैंड में ही पाए जाते हैं। भारत में आसाम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में यह पाए जाते हैं। मध्य भारत में यह छत्तीसगढ़ में रायपुर संभाग और बस्तर में पाया जाता है। जंगली भैंसों की एक प्रजाति जिसके मस्तक पर सफेद निशान होता है, पहले मध्य प्रदेश के वनों में भी पाई जाती थी, लेकिन अब विलुप्त है।

 मादा जंगली भैंस अपने जीवन काल में पांच बच्चों को जन्म देती है, इनकी जीवन अवधि नौ वर्ष की होती है। नर बच्चें दो वर्ष की उम्र में झुंड छोड़ देते हैं। जंगली भैंसा का जन्म अक्सर बारिश के मौसम के अंत में होता है। आम तौर पर मादा जंगली भैंसें और उनके बच्चे झुंड बना कर रहती हैं और नर झुंड से अलग रहते हैं, लेकिन यदि झुंड की कोई मादा गर्भ धारण के लिए तैयार होती है तो सबसे ताकतवर नर उसके पास किसी और नर को नहीं आने देता। यह नर आम तौर पर झुंड के आसपास ही बना रहता है। यदि किसी बच्चेकी मां मर जाए तो दूसरी मादाएं उसे अपना लेती हैं। जंगली भैंसों को सबसे बड़ा खतरा पालतू मवेशियों की संक्रमित बीमारियों से ही है, इनमें प्रमुख बीमारी फुट एंड माउथ है। रिडंर्पेस्ट नाम की बीमारी ने एक समय इनकी संख्या में बहुत कमी ला दी थी।

न्यूज़ सोर्स : ipm