भारत के रेलवे विभाग में अधिकारियों की नियुक्ति परीक्षा में इंजीनियरिंग, अकाउंट्स और अर्थशास्त्र की पृष्ठभूमि वाले ही बैठ सकते हैं. अब तक यहां कुछ अधिकारी सिविल सेवा से भी चुने जाते थे और कुछ इंजीनियरिंग सर्विस से. प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों के साथ रेलवे के अधिकारी भी इस व्यवस्था को उपयुक्त नहीं बता रहे हैं. पिछले दो तीन साल से रेलवे विभाग में अधिकारी स्तर की नौकरियां का इंतजार कर रहे बड़ी संख्या में छात्र मायूस हो गए हैं. दरअसल, नवगठित इंडियन रेलवे मैनेजमेंट सर्विसेज यानी आईआरएमएस की अगले साल होने वाली परीक्षा सिर्फ उन्हीं छात्रों के लिए सीमित कर दी गई है जो या तो इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि के हैं या फिर कॉमर्स और अर्थशास्त्र की.रेल मंत्रालय ने कहा है कि इंडियन रेलवे मैनेजमेंट सर्विसेज के लिए भर्ती विशेष रूप से तैयार की गई परीक्षा के माध्यम से की जाएगी और परीक्षा कराने की जिम्मेदारी संघ लोकसेवा आयोग यानी यूपीएससी को दी गई है. यूपीएससी 2023 से यह भर्ती परीक्षा आयोजित करेगी.

भंग की जा रही है भारतीय रेल की अपनी सेना

इससे पहले रेलवे में अफसरों की भर्ती के लिए यूपीएससी दो तरह की परीक्षाएं आयोजित करता था. तकनीकी क्षेत्रों की भर्ती के लिए इंजीनियरिंग सर्विसेज परीक्षा आयोजित की जाती थी जबकि लॉजिस्टिक क्षेत्र की तीन सेवाओं यानी यातायात, लेखा, कार्मिक के लिए अफसरों का चयन सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से किया जाता था. तीन साल पहले सिविल सेवा परीक्षा से जुड़े विभागों को अलग कर दिया गया और इंजीनियरिंग सर्विसेज की परीक्षाएं हुई ही नहीं. बताया गया कि आईआरएमस के तहत ये परीक्षाएं आयोजित की जाएंगी.

रेल विभाग में करीब 12 लाख कर्मचारी काम करते हैं जिनमें आठ हजार अधिकारी स्तर के हैं. बड़ी संख्या में युवा रेलवे की विभिन्न नौकरियों में जाने के लिए लालायित रहते हैं लेकिन सरकार के इस फैसले से उन्हें निराशा हुई है.

बदलावों का मकसद क्या है

रेल मंत्रालय में संयुक्त सचिव रह चुके रिटायर्ड अधिकारी प्रेमपाल शर्मा कहते हैं कि रेलवे सेवा में बदलाव की काफी जरूरतें हैं, लंबे समय से इनकी मांगें भी हो रही हैं और इस बारे में कई समितियां भी बन चुकी हैं, लेकिन मंत्रालय ने जिस तरह के बदलाव का फॉर्मैट तैयार किया है, उससे समझना मुश्किल है कि आखिर उसका उद्देश्य क्या है.डीडब्ल्यू से बातचीत में प्रेमपाल शर्मा ने कहा, "बदलाव का स्वागत तो होना चाहिए लेकिन जिस तरह का बदलाव किया गया है, उससे कुछ हासिल होने वाला नहीं है. केवल एक कैडर बनाने की बजाय बेहतर होता कि तकनीकी और गैर तकनीकी दो कैडर बनाए जाएं. सिविल सेवा परीक्षा से आने वाले एक समूह में और इंजीनियरिंग सेवा वाले दूसरे समूह में. यह जरूर सुनिश्चित किया जाए कि प्रमोशन और सुविधाओं के मामले में वे सब एक समान हों. मौजूदा व्यवस्था की तरह उनमें अंतर ना हो और ना ही कोई भेदभाव हो.”

परीक्षा के विषय को लेकर आपत्ति

इस परीक्षा को प्रारंभिक, मुख्य परीक्षा और इंटरव्यू- तीन खंडों में बांटा गया है लेकिन परीक्षा में शामिल किए गए विषय को लेकर सबसे ज्यादा विवाद हो रहा है. प्रारंभिक परीक्षा पास करने के बाद मुख्य परीक्षा के लिए छात्रों के पास सिर्फ मेकैनिकल इंजीनियरिंग, सिविल इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और अकाउंट्स और कॉमर्स विषयों के विकल्प रहेंगे. इसका मतलब यह होगा कि अब इन्हीं चार विषयों के छात्र रेलवे में अधिकारी बन सकेंगे. मानविकी, प्रबंधन, मेडिकल और यहां तक कि इंजीनियरिंग क्षेत्र में भी अन्य विषयों के छात्र रेलवे में अफसर बनने का ख्वाब नहीं देख पाएंगे.

 

 

न्यूज़ सोर्स : AGENCY