देश में संविधान के चारो स्तंभों में तालमेल सही नहीं, पैसों में बिक रहे नीति निर्देशन
"आजादी के इतने दिनों बाद भी समान नागरिक संहिता सभी राज्यों में लागू क्यों नहीं, क्यों फिर जातिगत समूहों में टूट रहे हैं लोग , क्या यह धर्म और जाति के दम पर जीतने वाले नेताओं की चाल है """"मनन करे आज आपका दिन है।"
आज के ही दिन 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने भारतीय संविधान को अंगीकृत किया था, इसलिए प्रतिवर्ष 26 नवंबर को देश में संविधान दिवस मनाया जाता है। भारतीय संविधान आज अपने 73 वर्ष पूरे कर चुका है और इन बीते सात दशकों में संविधान में अब तक संशोधनों का शतक लग चुका है। संविधान में संसदीय प्रणाली को अपनाया गया है। संसद कानून बनाती है। कार्यपालिका उसका अनुपालन कराती है। इसके बाद भी समाज में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, अपराध, गरीबी, अशिक्षा जैसे मसले विकराल होते जा रहे हैं ।
देश में विश्व का सबसे विशाल लिखित संविधान है, लेकिन आम आदमी की समस्याएं कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। गरीबों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं, व्यक्ति की सुरक्षा के लिए, अपराधों पर नियंत्रण के लिए, भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के लिए कानून होने के बावजूद समस्याएं घटने का नाम नहीं ले रही हैं। इसे लेकर कानूनविदों की अलग-अलग राय है। कानूनविदों का कहना है कि समस्याओं का समाधान हो सकता है और संविधान के प्राविधानों का शत-प्रतिशत पालन हो सकता है, लेकिन देश में संविधान के चारो स्तंभों में तालमेल सही नहीं है।
संविधान किसी भी देश का मौलिक कानून होता है, जो सरकार के विभिन्न अंगों की रूपरेखा एवं कार्यों का निर्धारण करता है। भारत में संघ और राज्यों के लिए एक ही संविधान है। हमारा संविधान संघवाद, एकतावाद, लचीलापन तथा कठोरता का मिश्रण है। इसके आदर्शों में लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता, स्वतंत्र न्यायपालिका, पंथनिरपेक्ष, समाजवादी गणराज्य, मूल अधिकार ,मौलिक कर्तव्य, एकल नागरिकता समाहित है। सभी को दृढ़ इच्छाशक्ति से संवैधानिक आदर्शों का अनुपालन करने की आवश्यकता है।
-अमरेंद्र निरंजन, वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी हाथरस
भारतीय संविधान में अनेकता में एकता का समावेश किया गया है। सभी जाति, धर्म समुदाय के व्यक्तियों के हितों का ध्यान रखा गया है। भारतीय संविधान में नागरिकों के अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों का भी समावेश किया गया है। नागरिकों के कर्तव्य में 11 मौलिक कर्तव्य हैं। संविधान की प्रस्तावना अतिशय महत्वपूर्ण है, जिसमें वर्तमान समय में किसी भी संशोधन की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है।
-प्रमोद कुमार शर्मा, जिला शासकीय अधिवक्ता (सिविल)
भारत में बहुत सी भाषाएं बोली जाती हैं। प्रत्येक प्रांत की अपनी संस्कृति और रीति रिवाज हैं। संविधान में विविधिताओं से भरे अपने देश भारत को एकता के सूत्र में पिरोए रखने की क्षमता विद्यमान है। 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अंगीकार किया, तब से लेकर आज तक स्थितियां बहुत बदली हैं, इसलिए संविधान में समय-समय पर जो भी संशोधन हुए, वह जनहित के लिए ही हैं। कल्याणकारी राज्य की स्थापना संवैधानिक आदर्श है। वह तभी पूरा हो सकता है, जब प्रत्येक व्यक्ति अपने दायित्व निर्वहन के लिए कृत संकल्पित हो।
-हरिओम शर्मा, जिला शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी)
44 वें संशोधन विधेयक के अंतर्गत यह व्यवस्था की गई है कि संविधान की मूल विशेषताओं को जनमत संग्रह द्वारा ही बदला जा सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह संविधान में किए जाने वाले संशोधन को राज्य द्वारा समर्थन अथवा अस्वीकृत के लिए भारतीय संविधान में कोई भी समय निश्चित नहीं किया गया है। इसमें अब तक 103 संशोधन हो चुके हैं, परंतु देश की जनता को इसका सीधा लाभ नहीं मिल पा रहा है।
-बालकृष्ण उपाध्याय, वरिष्ठ अधिवक्ता।
दुर्भाग्यपूर्ण देश के संविधान में विभिन्न लोक कल्याणकारी नियम और कानून तो बने हैं, लेकिन इनका धरातलीय क्रियान्वयन के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। सत्तारूढ़ और विपक्ष के नेता और विधि क्षेत्र में कार्यरत लोगों को संगठित रूप से संविधान द्वारा प्रदत्त दिशा निर्देशों की धरातलीय क्रियान्वयन के लिए विशिष्ट प्रयास करने चाहिए। देश में संवैधानिक प्रावधान क्रियान्वयन आयोग की आवश्यकता है।
-हरीश शर्मा, वरिष्ठ अधिवक्ता
हमारे देश में लोक कल्याणकारी राज्य के लिए संविधान में प्राविधान व्यापक रूप में हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि उन प्रावधानों को दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ लागू किया जाए। यदि देश का प्रत्येक नागरिक अधिकारों के साथ कर्तव्यों के निर्वहन के लिए प्रतिबद्धता जताए तो काफी समस्याओं का समाधान हो सकता है। संविधान में मौलिक अधिकारों के साथ साथ कर्तव्यों का भी विधान है। इनका अनुपालन होना चाहिए।
-दिगंबर सिंह सिसौदिया, वरिष्ठ अधिवक्ता
देश के प्रत्येक नागरिक के लिए 26 नवंबर संविधान दिवस बहुत ही गर्व का दिन है। कोई भी देश बिना संविधान के नहीं चल सकता। अगर देश के चलाने वालों की नीयत साफ सुधरी होंगी, तब हीं संविधान सभा एव बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के सपनों के राष्ट्र का निर्माण होगा। सबसे अहम समस्या यह है कि संविधान के प्रावधान का अभी भी निचले स्तर पर पालन नहीं हो रहा। मौलिक अधिकारों की जमकर धज्जियां उड़ाई जाती हैं।
-जालिम सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता।
संविधान के आदर्शों के अनुरूप प्रत्येक व्यक्ति पूरी निष्ठा के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करें तो काफी समस्याओं का समाधान हो सकता है। संविधान निर्माताओं ने लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना पर बल दिया। इसके लिए जिम्मेदार लोगों को अपनी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के आदेशों का अक्सर पुलिस पालन नहीं करती। मानवाधिकारों का तो पग-पग पर हनन होता है।
- यज्ञदत्त गौतम, अध्यक्ष डिस्ट्रिक्ट बार एसोसिएशन
संविधान में प्राविधान तो बहुत हैं और समय-समय पर इसमें संशोधन भी हुए हैं, लेकिन कितने फीसदी इसका पालन हुआ है, यह सभी जानते हैं। कोर्ट ने पॉलीथिन पर पाबंदी लगा रखी है, लेकिन इसका कितना क्रियान्वयन हो रहा है। सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान पर पाबंदी है, कौन इस नियम को मानता है। पुलिस यदि किसी व्यक्ति को अभिरक्षा में लेती है तो तमाम नियम कानून हैं, लेकिन इनका पालन होता है क्या।
-अमर सिंह चंदेल, वरिष्ठ अधिवक्ता
भारत के संविधान में प्रत्येक नागरिक के लिए न्याय, विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की व्यवस्था है। भारत का संविधान दुनिया के किसी भी देश द्वारा लिखा जाने वाला अब तक का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। यह प्रत्येक व्यक्ति को मौलिक अधिकार प्रदान किए गए है। मौलिक अधिकारों और कर्तव्यों के विधान से मानव को गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार मिला है। हमारे देश में संविधान सबसे ऊपर हैं। -कुमुद उपाध्याय, सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, हाथरस।