चलित लेख. पेंट की भूख के बीच उम्मीद की हंसी
ऋषभ यादव औबेदुल्लागंज
नन्ही बच्ची! बोल भी बड़े मीठे,जबर्दस्ती थोड़ी कह रही की आप सामान लो! ....यह नन्ही बच्ची भोपाल में यह जो हंसती हुई महिला है उनके साथ हाथों में कीरिंग और पेन लेकर मार्ग से निकल रहे लोगों को समान बेच रही थे।शायद यह महिला इस बच्ची की माँ,दादी,या नानी हो सकती है।थोड़ी ही देर बात हुई थी जब मैं चाय पीने को रुका।महिला भी काफी हँसमुख थी और बच्ची इस नादान उम्र में जब उसे पढ़ना लिखना था तब दुनियादारी ओर व्यापार के गणित सीख रही है।सब पेट की भूख के कारण।लेकिन उन्होंने एक सम्मानजनक कार्य चुना,व्यापार का वस्तुओं को बेचने का।बच्ची काफी कह रही थी की कीरिंग ले लो मैंने कहा है मेरे पास वह चुप हो गई उसके साथ वाली महिला से मैं बाते करने लगा।वह भी अच्छे से बात करने लगी कह रही थी कोई बात नहीं आपके पास है तो बच्ची से पूछ हाल चाल जाने।अंत मे बच्ची ने मुस्कुराते हुए कहा ,जबर्दस्ती थोड़ी कर रही की आप लो मेरा काम है कह रही थी।दिल छू लिया इस बात ने।
नोट:-हम कितने ही विकास का कार्य करे जब तक देश के हर एक बच्चे और परिवार को कोई स्थायी या सम्मानजनक कार्य नहीं मिल जाता तब तक वह विकास नहीं अभी भी भारत देश मे करोड़ आबादी ऐसे ही जीवनयापन कर रही है सड़को पर वस्तुओं को बेचकर।लेकिन इस सब में बच्चे भी शामिल रहते है केवल पेट की भूख के लिए जो उम्मीद नहीं हारते जीवन जीने की भले कितने कष्ट हो उन्हें नही पता भविष्य क्या होता है जीवन क्या होता है।बस यह पता है कि,यह करेंगे तो थोड़ा पैसा आएगा और रोटी की व्यवस्था होगी।बस वह इसी उम्मीद में जिये जाते है। कितनी प्यारी बच्ची थी उसकी बुद्धि भी तेज थी लेकिन कर भी क्या सकते है।मन मैं कई विचार होते है लेकिन एक सार्थक पहल कोई करे तो बेहतर है।