महिलाओं काे आत्मनिर्भर बना रहा देवदार का पेड़
उत्तराखंड: नौ साल की छोटी सी उम्र में अपने पिता को खो देने वाली और फिर अपनी मेहनत और सूझबूझ से सफलता हासिल करने वाली मंजू शाह महिला स्व-सहायता और हस्तशिल्प के क्षेत्र में किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। ‘पिरूल वूमन’ के नाम से मशहूर मंजू शाह ने पहाड़ों में वायु प्रदूषण के लिए प्रतिकूल माने जाने वाले चीड़ के पेड़ को कई महिलाओं की स्व-सहायता कहानी में अपना अभिन्न मित्र बना लिया है।
उत्तराखंड में चीड़ के पत्तों (पिरूल) से बनी हस्तशिल्प वस्तुएं आज महिलाओं के लिए रोजगार का जरिया बन गई हैं। पिरूल एकत्र कर उनसे टोकरी, टेबल मेट, राखियां, सजावटी सामान और गुलदस्ते जैसी कई तरह की हस्तशिल्प वस्तुएं बनाकर मंजू के इस छोटे से उद्यम का उत्तराखंड में बड़ा सामाजिक प्रभाव पड़ा है।
भिकियासैंण की गीता पंत ने पिछले रक्षाबंधन पर 10 हजार रुपये की पिरूल राखियां बनाकर मुनाफा कमाया। शिमला की अंजू ने गूगल मीट के माध्यम से ऑनलाइन प्रशिक्षण लिया, वहीं मेघा शाह (जिनके कान में दिक्कत है) ने भी हमसे सीखकर कमाई शुरू कर दी। आज मंजू के मार्गदर्शन में 45 स्वयं सहायता समूहों और 2,000 से अधिक बेरोजगार महिलाओं को स्वरोजगार की राह दिखाने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। सफलता के इस मुकाम तक पहुंचने की उनकी कहानी आसान नहीं थी। मूल रूप से पिथौनी (अल्मोड़ा) की रहने वाली मंजू का जन्म बागेश्वर के कपकोट तहसील के असों में हुआ था। जब वह केवल 9 वर्ष की थीं, तब उनके पिता किशन सिंह रौतेला, जो राजकीय इंटर कॉलेज असों के प्रधानाचार्य थे, का निधन हो गया। हालांकि, उनकी मां देवकी कभी स्कूल नहीं गईं, ताकि उन्हें अच्छी नौकरी मिल सके और चार भाई-बहनों सहित परिवार को खुद की देखभाल करनी पड़ी। जीवन की वास्तविकताएं जब प्रतिकूलताओं में बदल गईं, तो मां को कॉलेज में चपरासी की नौकरी करनी पड़ी, जहां उनके पति प्रधानाचार्य थे। यह बच्चों, खासकर मंजू के लिए बहुत दर्दनाक समय था। अपने जीवन के संघर्ष के बारे में बताते हुए मंजू ने बताया, "पिता की मृत्यु के बाद हमने जो मंत्र अपनाया, वह था अपनी जरूरतों को कम करना और कभी कर्ज न लेना।
इस सूत्र ने हमें इस मुश्किल समय से बाहर निकलने में मदद की।" मंजू ने उद्यमी के रूप में अपना पहला कदम तब उठाया, जब उन्होंने अपनी मां की मदद के लिए मुर्गीपालन और रेशमकीट पालन इकाई खोली। स्थानीय समुदाय के साथ काम करने में 30 साल का अनुभव रखने वाली मंजू 39 साल की हैं। मंजू ने कहा, "मैंने अपना बचपन बेहद अभावों में बिताया है। मैं हमेशा से अनाथ और बुजुर्ग महिलाओं को अवसर देना चाहती थी।" आज मंजू शाह अपने प्रयासों का श्रेय अनगिनत लोगों को देना चाहती हैं। उन्होंने उनमें से कुछ का नाम भी लिया। उन्होंने कहा, "मेरे प्रेरणास्रोत मेरे भाई कैलाश गादिया, जन शिक्षण संस्थान के निदेशक डॉ. जितेंद्र तिवारी, डॉ. विनीता चौधरी, प्रसिद्ध लेखक अशोक पांडे, गौरीशंकर कांडपाल, आईसीआर पंतनगर के वैज्ञानिक डॉ. राजेंद्र पडालिया, पत्रकार विपिन पुजारी हैं।" उन्होंने कहा, ‘‘डिमरी, अर्जुन सिंह रावत जैसे कई व्यक्तित्व हैं, जिनसे मुझे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हमेशा नैतिक समर्थन मिला है।’’