छत्तीसगढ़ की इस जनजाति में बगैर लिव-इन रिलेशनशिप में रहे नहीं होता विवाह
भारत का आदिवासी समुदाय ही एक ऐसा समुदाय है जो प्रकृति के अनुरूप चलता है । उनके रीति रिवाज उनके कामकाज उनके परंपराएं सभी प्रकृति से जुड़े हुए हैं । आज हम आपको बता रहे हैं की प्रकृति से जुड़े ऐसे ही समुदायों के बारे में जो अपने दैनिक जीवन की डोर भी कैसे विश्वास पर टिका के रखते है। आज हम ऐसे ही एक परंपरा को बता रहे हैं जो छत्तीसगढ़ के बस्तर में रहने वाली मोरिया जनजाति की एक अजीबोगरीब परंपरा है। जो सदियों से चले आ रही है । इस जनजाति के युवक और युवतियां लिविंग में रहते हैं और एक दूसरे को मनचाहा साथी चुनने के लिए वह इस परंपरा का निर्वाहन कर रहे हैं । इस परंपरा को "घोटुल" नाम की परंपरा से भी जाना जाता है इस परंपरा में आदिवासी मिट्टी की झोपड़ी बनाते हैं और उसमें लड़के लड़कियां जाकर नाच गाना करते हैं इस दौरान ही लड़की लड़कियों को एक दूसरे के करीब लाने का प्रयास किया जाता है। साथ ही इस परंपरा के अंतर्गत लड़के बांस की कंगी बनाते हैं और जिस लड़की को वह लड़का पसंद आता है उसे कंगी को चुरा लेती है फिर वह उस लड़के से प्यार का इजहार कर देती और दोनों इस झोपड़ी में साथ रहकर मानसिक और शारीरिक रूप से एक दूसरे के हो जाते हैं । बाद में दोनों की शादी उनके परिवार वाले कर देते हैं। ऐसे ही कुछ परंपरा राजस्थान और गुजरात में गरासिया जनजातियों में भी देखी जाती है। यहां पर भी लिविंग रिलेशनशिप आम बात है । यही नहीं इस जनजाति में औरतें शादी के बाद भी दूसरे मर्द से संबंध बना सकती है वह अपने पति को भी खुद ही चुनती है ।
इस जनजाति के लोगों में एक मेले का आयोजन भी होता है जिसमें मनचाहे साथी को चुनने की आजादी होती है । झारखंड में भी इस तरह की परंपरा है व्याप्त है, कहा जाता है कि झारखंड में यह परंपरा वहां के लोगों के पास पैसा नहीं होने के कारण शादी न होने के चलते निभाई गई थी।