चीन की चालबाजी को नाकाम करने लद्दाख में तैयार हो रहा तीसरा फाइटर एयरबेस
नई दिल्ली । लद्दाख में तीसरा एयरबेस तैयार हो रहा है, जो चीन की हर चाल को नाकाम करने में पर्याप्त होगा। बता दें कि तीन साल पहले पूर्वी लद्दाख में भारतीय वायुसेना ने अपने ऑपरेशन से चीन को बैकफुट पर डाल दिया था। इसकी वजह कम समय में तेजी से भारतीय सेना को पूरे साजो सामानों हथियारों के साथ एलएसी तक पहुंचना है। अब जल्द ही भारतीय वायुसेना की ताकत में जबरदस्त इजाफा होने जा रहा है। भारतीय वायुसेना को अब लद्दाख से फाइटर जेट ऑपरेशन के लिए तीसरा एयरबेस मिलने जा रहा है। प्राप्त जानकारी के अनुसार 13,700 फीट की उंचाई पर भारतीय वायुसेना के न्योमा एडवांस लैंडिंग ग्राउंड को अपग्रेड कर के नया फाइटर बेस तैयार किया जा रहा है। रक्षा सूत्रों के मुताबिक पिछले हफ्ते ही इसका काम शुरु किया जा चुका है। जानकारी के अनुसार जल्द ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी न्योमा का दौरा करने जा सकते है। जहां पर वो नए एयरबेस के नवीनीकरण के काम के साथ साथ सुरक्षा हालातों और तैयारियों की समीक्षा भी करेंगे। लगभग 2.7 किलोमीटर लंबा रनवे पूरी तरह के कंक्रीट का होगा और रनवे के साथ बाकी काम भी अगले 20 से 22 महीने के अंदर पूरा कर लिया जाएगा।
अगर लद्दाख में एयरबेस की बात करें तो यहां से पूरी तरह से फाइटर ऑपरेशन को चलाया जा सकता है। इसमें सिर्फ लेह और थौएस ही एसे एयरबेस हैं। इसके अलावा स्पेशल ऑपरेशन ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट और हेलीकॉप्टर ऑपरेशन के लिए 3 एडवांस लैंडिंग ग्राउंड है जिसमें न्योमा, दौलत बेग ओल्डी, फुक्चे शामिल है। न्योमा एएलजी ने पिछले तीन साल के दौरान भारतीय वायुसेना की ताकत को एलएसी के पास बढ़ाने में बहुत कारगर साबित हुआ। लेह तक बडे हैवि लिफ्ट ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट के जरिए सैनिकों को लाने फिर हाई एल्टीट्यूड में तैनाती के लिए सी-130 जे, चिनूक हेलिकॉप्टर के जरिए इसी एएलजी का इस्तेमाल किया गया था।
न्योमा एएलजी पहली बार साल 1962 में अस्तित्व में आया था। लेकिन उसके बाद कभी इस्तेमाल ही नहीं किया गया। भारत सरकार में चीन की भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए चीन सीमा के साथ लगने वाले सभी एडवांस लैंडिंग ग्राउंड को अपग्रेड करने के प्लान को एक्टिव किया। साल 2009 में एएन-32 ने लैंडिंग की थी। वहीं पिछले तीन साल के दौरान इस एएलजी में सैकड़ों बार हेलिकॉप्टर और एयर ऑपरेशन को अंजाम दिया गया है। इसमें भारी भरकम टैंक से लेकर हथियारों को वॉर फ्रंट तक पहुंचाए गया।