'सुनो जोगी' की कविताएं अपने संसार को आत्म से लपेटने वाली कविताएं हैं। ये कविताएं मन को रोशन करने वाली कविताएं हैं। हमारे जीवन में जो अंधेरा फैला हुआ है, इन कविताओं को पढ़ने से हम उस अंधेरे को काफी हद तक कम कर पाते हैं। इन कविताओं में कवि का आत्म अपने को विस्तारित करता हुआ समूची धरती का आत्म बन जाता है। प्रेम, प्रकृति और प्रतिरोध यहां इस तरह से घुल-मिल कर आते हैं कि एक दूसरे से बिलगाकर देख पाना संभव नहीं होता।

उक्त उद्गार प्रियदर्शिनी अपार्टमेंट के लान में आयोजित कवयित्री संध्या नवोदिता के पहले कविता संग्रह ' सुनो जोगी और अन्य कविताएं ' पर बातचीत कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर बोलते हुए वरिष्ठ कथाकार अलका सरावगी ने व्यक्त किये।कार्य्रकम की मुख्य अतिथि और वक्ता अलका सरावगी ने कहा कि संध्या की कविताओं से उनका पहला परिचय फेसबुक पर हुआ था जिसमें जोगी शब्द ने उन्हें अपनी तरफ बहुत खींचा और उस शब्द में छिपे कई सारे रहस्यों को समझने के लिये उत्सुक किया ।

उन्होंने आगे कहा कि 'सुनो जोगी' की जो कविताएँ है वो संसार को अपने आत्म से लपेटने वाली कविताएँ हैं । ये कविताएँ मन को रोशन करने वाली कविता हैं हमारे जीवन में जो अंधेरा फैला हुआ है इन कविताओं को पढ़ने से हम उस अंधेरे को काफी हद तक कम कर पाते हैं ।

आज शाम 11 नवम्बर को प्रगतिशील लेखक संघ की इलाहाबाद इकाई के द्वारा समकालीन कवयित्री संध्या नवोदिता के प्रथम काव्य संग्रह 'सुनो जोगी और अन्य कविताएँ' पर चर्चा का आयोजन हुआ । यह आयोजन प्रियदर्शिनी अपार्टमेंट के लॉन में किया गया । इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रुप में साहित्य अकादमी पुरस्कार से अलंकृत कथाकार अलका सरावगी थीं तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो० प्रणय कृष्ण ने की.

कार्यक्रम का अध्यक्षीय वक्तव्य प्रो० प्रणय कृष्ण ने दिया । उन्होंने कहा कि पहले भाग की कविताएं ' सुनो जोगी' कविताओं को लिखने का पूर्वाभ्यास दिखाई पड़ता है । संध्या जी की कविताओं में प्रयुक्त 'जोगी' शब्द अत्यंत प्राचीन है लेकिन उस शब्द के नये अर्थ संध्या जी की कविताओं में दिखाई पड़ता है । उन्होंने आगे कहा कि हमेशा कवि ही कविता का निमार्ण करता कई बार कविता भी कवि को बनाती है । संध्या जी की प्रेम कविताएँ पीड़ा से भरी हुई है जो होना स्वाभाविक भी है । ज्ञान और प्रेम के समन्वय को इन कविताओं में रखा गया है ।

उन्होंने आगे कहा कि कवि की खासियत यही है कि वह बहुत सारी पीड़ाओं को समेटकर उनसे सर्जन का निर्माण करता है और उन भावों को उदात्त तक पहुंचाता है

इस संकलन की कविताओं में इच्छाएं बात के रूप में शुरू तो होती हैं लेकिन वह कहीं ख़त्म होती नही दिखाई देती । इसका कारण यह है कि इच्छाएँ हमेशा अपूर्ण रह जाती हैं ।

संध्या नवोदिता की कविताओं पर प्रो० बसंत त्रिपाठी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि इस साल दो काव्य -संग्रह ऐसे आये जिनका इंतजार पिछले कई सालों से था जिनमें से एक संग्रह संध्या नवोदिता का ही है । उन्होंने एक कविता पढ़ी -

'यदि आपको जीवन में धोखा नही मिला

तो यह आपका गुण नही है

बल्कि उन लोगों की कृपा है

जिन्होंने आपको बख़्श दिया'

कविता को पढ़कर उन्होंने बताया कि आज के समय में धोखा मिलना आम हो गया है लोग अक्सर ताक में रहते हैं कि वो धोखा दे सके ।संध्या जी की कविताओं में महादेवी की कविताओं जैसा ताप देखने को मिलता है ।

उन्होंने आगे कहा कि 'सुनो जोगी 'कविताओं के आधार पर कवयित्री ने एक पुरूष विमर्श को गढ़ने का काम किया है । संध्या की कविताओं का केंद्र प्रेम है और यह प्रेम भिन्न -भिन्न रूपों में उजागर होता है । उनकी कविताओं को दिल से पढ़ना चाहिए ताकि हमारे अंदर भी वैसी खलबली मच सके जैसी खलबली कवयित्री को कविता लिखते समय हुई ।

प्रो० अनीता गोपेश ने कहा हम लोगों के समय में स्त्री लेखन पर प्रायः यह आरोप लगता रहा है कि उनका काव्य संसार बहुत सीमित है लेकिन संध्या की कविताएं इस धारणा को बहुत आसानी से तोड़ देती है ।

उन्होंने आगे कहा कि संध्या जी की कविताओं में बहुत सारे रंग है ,मिट्टी है, नदी है ,हवा है इसके साथ ही इनकी कविताओं में उलटबासियाँ पर्याप्त मात्रा में मिलती है । इनकी कविताओं में अव्यक्त की तलाश दिखायी पड़ती है।

प्रकर्ष मालवीय ने 'सुनो जोगी और अन्य कविताएँ 'पुस्तक पर अपनी बात रखते हुए कहा कि हमारे समय की बेहद समर्थ कवयित्री संध्या नवोदिता का यह पहला कविता संग्रह है ,यह बात उन्हें हैरत में डालती है । बार- बार सवाल मन में कौंधता है कि ये संग्रह इतनी देर से क्यों आया ? जबकि सुनो जोगी श्रंखला की कविताएं लिखे जाने के साथ ही पर्याप्त चर्चित और लोकप्रिय हो चुकी थी ।

उन्होंने कहा प्रस्तुत संग्रह दो हिस्सों में क्रमशः 'एक दिन मैंने खेल किया था'और 'सुनो जोगी' शीर्षक में संकलित है ये कविताएँ मूलतः प्रेम कविताएँ हैं और चूँकि प्रेम हमेशा से समाज और राजनीति के हमलों का शिकार रहा है इसलिए इन कविताओं को राजनीतिक भी होना ही था ।लेकिन राजनीति की तुलना में प्रेम का फलक बहुत बड़ा है ,उनकी कविताओं में प्रेम अपनी संपूर्णता में है। संग्रह की प्रेम कविताएँ अपने पाठकों को इसके नये आयामों से परिचित कराती रहती हैं ।संध्या जी की कविता' एक दिन ' माँ की अनुपस्थिति से उपजी पीड़ा की कविता है ।उनकी कविता 'देश -देश 'हमारे समय के राजनीतिक परिवेश को लिए हुए महत्वपूर्ण कविता है ।

इसके बाद आज के कार्यक्रम की केंद्र कवयित्री संध्या नवोदिता ने अपने संग्रह से कुछ कविताएँ पढ़ी । जिसमें 'आरे के पेड़' , 'आप तो नही हैं चूहा','बसंत' प्रमुख थी ।

कार्यक्रम के अंत में सुरेंद्र राही ने सभी वक्ताओं तथा श्रोताओं का धन्यवाद किया

कार्यक्रम का संचालन डॉ० सूर्यनारायण ने किया.

कार्यक्रम में हरीश चंद्र पाण्डेय,राम जी राय ,आनंद मालवीय,अजामिल,गायत्री गांगुली , पद्मा सिंह ,सुधांशु मालवीय,अरिंदम घोष, शुभा द्विवेदी ,पुनीत पटारिया, विवेक निराला,मनोज पांडे,अनिता ,वसुंधरा पांडे,कामता प्रसाद,प्रियंका गोपेश, यश गोपेश,अनुपम परिहार ,अमिता शीरी, झरना मालवीय, ऋतंभरा मालवीय, मनीष,सीमा आज़ाद,शैलेष ,निश्चला शर्मा,कविता ,अनिता शर्मा, सचिन गुप्ता ,प्रणव मिश्र 'तेजस' ,अमित कुमार यादव, मनीष यादव,धर्मेंद्र यादव, उपेंद्र कुमार, इशिता सोनी, बृजेश चिराग, धीरज तथा अन्य युवा तथा गणमान्य साथी उपस्थित रहे.

 

फोटो: प्रणव मिश्र तेजस

न्यूज़ सोर्स : रिपोर्ट : सचिन गुप्ता