लाल बहादुर शास्त्री भारतीय राजनीति का वो चेहरा हैं, जिनकी सादगी और ईमानदारी के किस्से आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं. वे भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे और उनका योगदान भारतीय राजनीति में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है. उनका जीवन न केवल प्रेरणा से भरा था, बल्कि उन्होंने देश की सेवा में खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया था. शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था. एक साधारण परिवार से होने के बावजूद वे अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और कड़ी मेहनत के कारण ऊंचाईयों तक पहुंचे.

सादगी की मिसाल

लाल बहादुर शास्त्री अपने सादे जीवन और नैतिक मूल्यों के लिए जाने जाते थे. वे बहुत ही सामान्य जीवन जीते थे और दिखावे से कोसों दूर रहते थे. एक प्रधानमंत्री होते हुए भी, उनके पास न तो ज्यादा धन-संपत्ति थी और न ही कोई आलिशान जीवनशैली. उनकी सादगी का सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि जब वे प्रधानमंत्री बने, तब भी वे अपनी व्यक्तिगत ज़रूरतों के लिए सरकारी साधनों का इस्तेमाल करने से कतराते थे. एक बार उनके बेटे ने स्कूटर खरीदने की इच्छा जाहिर की, तो शास्त्री जी ने कहा कि वे प्रधानमंत्री होने के बावजूद भी इतना पैसा नहीं कमाते कि अपने बेटे को स्कूटर खरीद सकें. इस घटना ने यह साबित किया कि वे किसी भी प्रकार के निजी लाभ के लिए अपनी स्थिति का दुरुपयोग नहीं करते थे. उनका यह स्वभाव लोगों के दिलों में उनके प्रति गहरा सम्मान पैदा करता है.

लाल बहादुर शास्त्री का सबसे बड़ा योगदान था उनका दिया हुआ नारा ‘जय जवान, जय किसान.’ यह नारा 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान दिया गया था, जब देश को एकजुट और आत्मनिर्भर बनने की सख्त ज़रूरत थी. उस समय, एक तरफ देश के जवान सीमा पर लड़ रहे थे, तो दूसरी तरफ किसान देश की खाद्य सुरक्षा के लिए काम कर रहे थे. शास्त्री जी ने अपने इस नारे के ज़रिए दोनों का सम्मान बढ़ाया और देशवासियों को यह एहसास कराया कि जवान और किसान, दोनों ही देश की रीढ़ की हड्डी हैं. इस नारे ने न केवल सेना और किसानों का मनोबल बढ़ाया, बल्कि पूरे देश को एक नई दिशा दी. उनके इस नारे ने किसानों की महत्ता को उजागर किया और आज भी यह नारा प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है. जब देश में अनाज की कमी हुई, तो शास्त्री जी ने खुद एक दिन का उपवास रखा और लोगों से भी ऐसा करने की अपील की, ताकि संसाधनों की बचत हो सके. यह उनका दूरदर्शी नेतृत्व और जनता के साथ भावनात्मक जुड़ाव था, जो लोगों को प्रेरित करता था.

नेतृत्व और देशभक्ति

लाल बहादुर शास्त्री का राजनीतिक जीवन संघर्ष और त्याग से भरा हुआ था. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय रूप से भाग लिया था और महात्मा गांधी से काफी प्रेरणा ली थी. स्वतंत्रता के बाद, वे जवाहरलाल नेहरू के अधीन काम करते रहे और कई महत्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवाएं दीं. 1964 में नेहरू जी के निधन के बाद, जब देश राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था, तब शास्त्री जी को प्रधानमंत्री बनाया गया. प्रधानमंत्री बनने के बाद, उन्होंने देश की चुनौतियों को समझा और सही दिशा में कदम उठाए. 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान उनके नेतृत्व ने देश को मजबूत बनाए रखा. उनके फैसले सटीक और प्रभावी थे, जिससे भारत को विजयी बनाने में मदद मिली. शास्त्री जी ने कभी भी विवादित निर्णय नहीं लिए और हमेशा देश की भलाई के बारे में सोचा.

सादा जीवन, उच्च विचार

शास्त्री जी की सादगी और ईमानदारी केवल उनके निजी जीवन तक सीमित नहीं थी, बल्कि वे राजनीति में भी उसी सादगी और निष्ठा के साथ काम करते थे. वे कभी भी सत्ता या पद के लिए लालायित नहीं रहे. उनके लिए सबसे बड़ा आदर्श देश की सेवा करना था. उन्होंने कभी भी किसी प्रकार के भ्रष्टाचार या अनुचित लाभ का समर्थन नहीं किया. उनके निधन के बाद, जब उनका परिवार आर्थिक तंगी में था, तो यह साबित हो गया कि शास्त्री जी ने कभी अपनी स्थिति का लाभ नहीं उठाया. यह घटना भारतीय राजनीति में एक उदाहरण बनी कि कैसे एक नेता अपने सिद्धांतों पर कायम रहकर भी सफल हो सकता है.

शास्त्री जी की विरासत

लाल बहादुर शास्त्री का जीवन और योगदान आज भी देशवासियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है. उन्होंने न केवल एक आदर्श नेता के रूप में खुद को स्थापित किया, बल्कि यह भी सिखाया कि सादगी, निष्ठा और ईमानदारी से भी एक व्यक्ति महान बन सकता है. उनका ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा आज भी किसानों और सैनिकों के लिए एक प्रेरणादायक सूत्र है. उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों, यदि हमारी नीयत और इरादे सही हों, तो हम हर चुनौती का सामना कर सकते हैं. उनके आदर्श और विचार आज भी प्रासंगिक हैं और देश के हर नागरिक को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए. शास्त्री जी का नाम भारतीय इतिहास में सदा-सदा के लिए स्वर्ण अक्षरों में लिखा रहेगा.

न्यूज़ सोर्स : AGENCY