दोमट मिट्टी है तो इस तरीके से करें बाजरे की खेती हो जाएंगे मालामाल
उत्तर प्रदेश के आगरा में आरबीएस कॉलेज, कृषि विज्ञान केंद्र बिचपुरी के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ राजेंद्र सिंह चौहान ने पौष्टिक-पोषक तत्वों से समृद्ध विपरीत परिस्थिति कम उर्वरक मात्रा में भरपूर उत्पादन देने वाले प्राचीन मोटे अनाज खरीफ बाजरा की वैज्ञानिक विधि से खेती करने का तरीका बताया है। जिसका-उपयोग हमारी थाली-के साथ-साथ पशु चारे में होता आया है। खरीफ बाजरा की बुआई 15 जुलाई तक करनी चाहिए।
कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ राजेंद्र सिंह चौहान ने बताया है कि बाजरा के लिए उत्तम जल निकास की और दोमट मिट्टी के खेत का चुनाव करें। पहली जुताई पर प्रति हेक्टेयर की दर से 20-25 टन गोबर-खाद डाल कर 2-3 हैरो-पाटा लगा कर खेत तैयार कर लें।
चौहान ने कहा कि एक हेक्टेयर में ड्रिल से बुवाई के लिए क्षेत्र अनुकूल- गुणवत्तायुक्त प्रजाति के 4 से 5 किलो बीज का चयन करें। जैविक विधि में ट्राइकोडर्मा 4 ग्राम/किलो या रासायनिक विधि में थीरम 75 प्रतिशत के 2.5 ग्राम/किग्रा बीज दर से उपचारित कर लें। यदि अरगट रोग प्रभावित बीज उपचार करना हो तो -बीज को 10 प्रतिशत नमक के घोल में भिगो लें। इसी प्रकार हरित वाली रोग नियंत्रित के लिए मेटालेक्सिल 35 प्रतिशत डब्लू एस के 6 ग्राम/किग्रा बीज दर से उपचारित कर सकते हैं।
बाजरा के लिये 130 किलो डीएपी, 100 किलो पोटास -210 किलो यूरिया की आवश्यकता होगी। इसमें पोटाश अंतिम जुताई पर खेत में बखेर कर खेत तैयार कर लें। सीड ड्रिल से बीज को डीएपी के साथ 40-45 सेमी कतार से कतार 10-15 सेमी-पौधे से पौधे के मध्य दूरी रखते हुए 2 से 3 सेमी गहरी बुवाई करें। यूरिया का उपयोग फसल मे छिटकमा विधि से विभिन्न अवस्थाओं में 2 से 3 बार में करना है।
गत वर्ष आगरा में हुई बाजरा की फसल के आंकड़े
जिला कृषि अधिकारी विनोद कुमार के अनुसार गत वर्ष आगरा में खरीफ में बाजरा की खेती 1,25,000 हेक्टेयर भूमि में हुई थी। जिसमें 3,23,000 हज़ार मीट्रिक टन उपज पैदा हुई। वहीं ग्रीष्मकालीन में 5200 हेक्टेयर भूमि में बाजरा की खेती हुई। जिसमें 13,000 हज़ार मीट्रिक टन उपज पैदा हुई।
संकर किस्में
जवाहर बाजरा किस्म-2, जीआईसीकेवी-96752, पूसा कंपोजिट-383, आरएचबी-58, पूसा-444, नंदी-32, 7686, 7688, प्रोएग्रो-9443, प्रोएग्रो-9445, आरएचबी-121, आरएचबी-173, जीएचबी-558 , जीएचबी-577, जीएचबी-744, नंदी-52, नंदी-62, एचएचबी-146, एचएचबी-197, एचएचबी-223, पीएचबी-2168 आरएचबी-58, पूसा-444, नंदी-32, 7686, 7688, प्रोएग्रो-9443, प्रोएग्रो-9445, आरएचबी-121, आरएचबी-173, जीएचबी-558, जीएचबी-577, जीएचबी-744, नंदी-52, नंदी- 62, एचएचबी-146, एचएचबी-197, एचएचबी-223, पीएचबी-2168
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ राजेंद्र सिंह चौहान