भोपाल। पत्रकारिता से महिलाएं सामुदायिक विकास की दिशा में अपनी अहम भूमिका निभा सकती हैं लेकिन दुर्भाग्य है कि आजादी के इतने दिनों बाद भी "ज्ञान परक"  पत्रकारिता में ग्रामीण अंचल एवं छोटे शहरों में मीडिया में मात्र तीन प्रतिशत महिलाएं प्रतिनिधित्व कर रही है। सोशल मीडिया का उपयोग जरूर हो रहा है लेकिन वेब कंटेंट में ज्ञानशुन्यता देखी जा रही है। बड़े मीडिया घरानों में एंकरों की भूमिका मे तो महिलाएं चमक-धमक में आ रही हैं लेकिन मीडिया के निर्णय लेने वाली भूमिका में महिलाएं कम हैं।

यह वक्तव्य आज प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय भोपाल एवं मीडिया प्रभाग राजयोग शिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान द्वारा आध्यात्मिक सशक्तिकरण  द्वारा स्वच्छ एवं स्वस्थ समाज थीम के अंतर्गत राष्ट्रीय मीडिया सम्मेलन में देशभर से जुटे कुशल वक्ताओं ने मीडिया मंथन के दौरान कही।

इस मंथन में मीडिया के नैतिक मूल्य एवं उसमें आ रही गिरावट पर वक्ताओं ने अपनी बात रखी।   सम्मेलन में यह बात निकल कर सामने आयी कि आखिर महिलाओं के मीडिया में आने से क्या बदलाव आ सकते है। वक्ताओं ने जहां महिलाओं के मीडिया में आने से सामाजिक नैतिक मूल्यों में बदलाव की बात कही वहीं, महिलाओं द्वारा इस क्षेत्र को चुनने के बाद उनके साथ आने वाली सामाजिक चुनौति एवं कभी-कभी महिला पत्रकारों के अतिवाद से होने वाली बातों पर भी मंथन किया गया।

वक्ताओं द्वारा महिलाओं को वेब मीडिया के माध्यम से सामाजिक बदलाव के लिए अच्छे कंटेंट लिखने एवं सिर्फ सूचनात्मक पत्रकारिता से हटकर सामाजिक सरोकारी पत्रकारिता करने को लेकर भी सलाह दी गई।

यह कार्यक्रम प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय भोपाल एवं मीडिया प्रभाग की  डाॅ रीना दीदी के समन्वय में आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में पत्रकारों का सम्मान भी किया गया। सम्मेलन में मीडिया संस्थान से जुड़े बुद्धिजीवियों के साथ स्टूडेंट एवं सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित थे।

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