लालच छोड़ जैविक खेती एवं मोटे बनाज की खेती अपनाएं किसान-पटेल
व Department of Labour, Madhya Pradesh मंत्री श्री Prahlad Singh Patel स्वच्छ, स्वर्णिम, समृद्ध भारत निर्माण के लिए किसान आध्यात्मिक सम्मेलन भारतीय कृषि दर्शन एवं सम्पूर्ण ग्राम विकास कार्यक्रम में शामिल हुए। यह कार्यक्रम प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय नरसिंहपुर के तत्वावधान में पीजी कॉलेज नरसिंहपुर के ऑडिटोरियम में आयोजित किया गया।
इस अवसर पर पूर्व राज्यमंत्री श्री जालम सिंह पटेल, पूर्व नपा अध्यक्ष श्री महंत प्रीतमपुरी गोस्वामी, जिला वन समिति के अध्यक्ष श्री देवी सिंह पटेल, ब्रह्मकुमारी राजयोगी भ्राता राजेन्द्र भाई, राजयोगिनी ब्रह्मकुमारी कुसुम दीदी, मिट्टी परीक्षण अधिकारी श्री आरएन पटेल, कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. विशाल मेश्राम व डॉ. आशुतोष शर्मा, अन्य जनप्रतिनिधि, ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय नरसिंहपुर के पदाधिकारीगण, गणमान्य नागरिक और जिले के कृषकगण मौजूद थे।
कार्यक्रम में मंत्री श्री पटेल ने कहा कि यह मेरे लिए अच्छा दिन है कि अनुभवी व्यक्तियों के बीच अनेक अवसर प्राप्त हुआ है। उन्होंने बताया कि जब वे 10 साल के थे, उस समय सोयाबीन की फसल उपजाने की शुरूआत गोटेगांव तहसील में हुई थी। मेरे पिताजी खेती करते थे। कृषि विभाग के अधिकारी- कर्मचारी उनके पास आकर सलाह देते थे। मंत्री श्री पटेल ने अपने आराध्य व पूज्य गुरू श्रीश्रीबाबाश्री की सीख और अनमोल वाणी याद करते हुए बताया कि यह देश कृषि प्रधान नहीं, बल्कि ऋषि प्रधान देश है। इसी परंपरा के आधार पर हम कृषि करते थे। ऋषि परम्परा के पुराने अनुभव को बताते हुए कहा कि एक किसान जिसकी माली हालत ठीक नहीं थी। उसके द्वारा खेत से गाय नही भगाये जाने पर किसान द्वारा यह कहना कि जितना अधिकार मेरे बच्चों को खाने पर है उतना ही अधिकार मेरे खेत में गौमाता का भी है।
मंत्री श्री पटेल ने कहा कि हमें रसायनिक खाद का उपयोग करने की बजाय जैविक खेती करनी चाहिये। यह वर्तमान की आवश्यकता है यदि गाय का गौमूत्र व गोबर नहीं होगा, तो आप जैविक खेती नहीं कर सकते। इसके लिए उन्होंने गौ रक्षा व गौ पालन में स्वअनुशासन की बात की। उन्होंने कहा कि जब वे पूरे देश में कहीं भी जाते थे, तो अपने जिले की तारीफ करते थे कि हमारे यहां का किसान कभी गौवंश को बाहर नही छोड़ता था। लेकिन पिछले 10- 15 साल से हम इस परम्परा निर्वहन नहीं कर पा रहे हैं। गौमाता की रक्षा हम सब की जिम्मेदारी है।
मंत्री श्री पटेल ने बताया कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि सिंचाई की सुविधा होनी चाहिये, लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि कौन सी फसल उगाई जाये। हमने गन्ना, धान और गेंहू जैसी पानी की अधिक खपत वाली फसलों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है। हमें यह सोचना चाहिये कि हम अगली पीढ़ी के लिए क्या छोड़कर जायेंगे। फसलों के अधिक उत्पादन के लालच ने हमको गलतियां करने पर मजबूर कर दिया है। उन्होंने खेती में फसल में पानी की अधिक मात्रा से भविष्य में जलस्तर पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव की विस्तृत जानकारी भी दी। उन्होंने कहा कि आज मोटे अनाज को आदर्श भोजन के रूप में पूरे विश्व में स्वीकारा जा रहा है। ज्वार, बाजरा, कुटकी, रागी व कोदो जैसे मोटे अनाज को कम पानी की जरूरत होती है। मोटे अनाज उगाने की ओर विचार कर हमें इस ओर बढ़ना होगा। उन्होंने कहा कि जैविक खेती व प्राकृतिक खेती से उत्पादन होने वाले अनाज के प्रमाणीकरण आज भी चुनौती है जिसका मूल्यांकन के लिए प्रत्येक जिला स्तर पर लेब की आवश्यकता है। आज भी जिले के ग्राम कलमेटा हार में रसायनिक व कीटनाशक उर्वरकों का उपयोग नहीं होता है। यह हमारे लिए गर्व की बात है।
कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्जवलन कर किया। इसके पहले मंत्री श्री पटेल व पूर्व राज्यमंत्री श्री पटेल ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की मूर्ति पर माल्यार्पण कर उन्हें नमन किया। कार्यक्रम में मंत्री श्री पटेल ने प्राकृतिक खेती करने वाले जिले के किसानों को शाल व प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया। इस अवसर पर अतिथियों ने नशा मुक्त प्रचार वाहन को झंडी दिखाकर रवाना किया। विदित है कि यह रथ 15 दिन तक जिले में भ्रमण कर लोगों को नशे से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में अवगत करायेगा।