मोदी 3.0 सरकार के पहले पूर्ण बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 2047 तक भारत को विकसित बनाने का रोडमैप प्रस्तुत कर सकती हैं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने अभिभाषण में भी इसके संकेत दिए थे। इस लिहाज से पूरी संभावना है कि बजट 2024-25 में आर्थिक विकास को गति देने के उपाय होंगे। वर्ष 2023-24 में निजी खपत (PFCE) में 4% और सरकारी खपत में 2.5% वृद्धि हुई थी। ऐसे में इकोनॉमी की रफ्तार बढ़ाने के लिए सरकार कैपिटल एक्सपेंडिचर करीब 20% बढ़ा सकती है।

आर्थिक विकास दर के साथ रोजगार का सीधा संबंध है। इसलिए मैन्युफैक्चरिंग में नौकरी सृजन के लिए टेक्सटाइल, फुटवियर, खिलौना जैसे सेगमेंट के लिए कुछ घोषणाएं संभव हैं। रोजगार के साथ ज्यादा घरेलू वैल्यू एडिशन के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव (पीएलआई) स्कीम का दायरा बढ़ाया जा सकता है। फरवरी में पेश अंतरिम बजट में सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले ईकोसिस्टम के लिए पिछले साल के 1503 करोड़ रुपये के संशोधित प्रावधान को बढ़ाकर 6903 करोड़ रुपये किया गया था। फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री के लिए इसे 1150 करोड़ से बढ़ाकर 1444 करोड़ और ऑटोमोबाइल तथा ऑटो कंपोनेंट के लिए 484 करोड़ से बढ़ाकर 3500 करोड़ रुपये किया गया था। 

ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म गोल्डमैन साक्स के मुताबिक बजट में नौकरियों पर फोकस करने के साथ महंगाई को नियंत्रित करने की भी कोशिश होगी। ब्रोकरेज के चीफ इंडिया इकोनॉमिस्ट शांतनु सेनगुप्ता के अनुसार, नौकरियों के सृजन के लिए श्रम सघन मैन्युफैक्चरिंग, एमएसएमई को कर्ज, ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर के विस्तार के जरिए सर्विसेज निर्यात में वृद्धि और कीमतों में उतार-चढ़ाव नियंत्रित करने के लिए घरेलू फूड सप्लाई चेन तथा इन्वेंटरी मैनेजमेंट जैसे कदम उठाए जा सकते हैं।

सिटी बैंक के चीफ इंडिया इकोनॉमिस्ट समीर चक्रवर्ती का मानना है कि 7% विकास दर से हर साल 80 से 90 लाख नौकरियों का सृजन होगा, जबकि जरूरत 1.1 से 1.2 करोड़ नौकरियों की है। सरकार ज्यादा घरेलू वैल्यू एडिशन और रोजगार के लिए प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेंटिव स्कीम का दायरा बढ़ा सकती है। देश में लगभग दो-तिहाई मैन्युफैक्चरिंग नौकरियां कम स्किल वाले श्रम सघन सेक्टर में हैं।

सर्विसेज का निर्यात बढ़ाने के लिए ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर, ग्लोबल टेक्नोलॉजी सेंटर और ग्लोबल इंजीनियरिंग सेंटर का विस्तार किया जा सकता है। कीमतों में तेजी रोकने के लिए खाद्य आपूर्ति पर फोकस किया जा सकता है। इसके लिए ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर, घरेलू खाद्य उत्पादन, कोल्ड स्टोरेज और फूड प्रोसेसिंग पर ध्यान दिए जाने की संभावना है।

 गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड के एमडी और सीईओ सुधीर सीतापति का कहना है, “ग्रामीण क्षेत्र में विकास की गति बढ़ाने की जरूरत है। पीएम किसान अथवा यूनिवर्सल बेसिक इनकम के माध्यम से ऐसा किया जा सकता है। हमें बड़ी संख्या में ऐसे लोगों की मदद करने की जरूरत है जो जीडीपी में बहुत योगदान तो नहीं करते लेकिन दूसरे तरीके से उनका योगदान काफी महत्वपूर्ण होता है। सरकार कुछ समय से स्टिमुलस दे रही है और हमें उम्मीद है कि वह इसे बढ़ाएगी। फोकस के साथ किए गए प्रयास से हम खपत और जीडीपी, दोनों की ग्रोथ में एकरूपता आएगी। इससे पूरी इकोनॉमी को फायदा होगा और पिरामिड में सबसे निचले स्तर पर मौजूद लोगों का स्तर ऊपर उठेगा।”

ग्रॉसरी चेन फ्रेंडी के संस्थापक और सीईओ समीर गंदोत्रा का मानना है कि यह बजट खासतौर से ग्रामीण क्षेत्र में खपत बढ़ाने का महत्वपूर्ण अवसर हो सकता है। वे कहते हैं, “सरकार को कृषि तथा ग्रामीण विकास पर अपनी पहल तेज करनी चाहिए। इससे लोगों की कमाई बढ़ेगी और उपभोक्ता खर्च में वृद्धि होगी। मुझे राष्ट्रीय खुदरा नीति पर भी स्पष्टता की उम्मीद है, जो मेरे विचार से गेम चेंजर साबित होगा। रिटेल सेक्टर को कम ब्याज पर कर्ज, रोजमर्रा के इस्तेमाल वाली चीजों पर जीएसटी में स्थिरता और डिजिटाइजेशन को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है।”

 रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (RAI) ने विकास वाली नीतियों को प्राथमिकता देने की मांग की है ताकि इकोनॉमी में मांग और खपत बढ़े। इसने रिटेलर्स के लिए कम ब्याज पर कर्ज की भी मांग की है। डिजिटल ट्रांजैक्शन को बढ़ावा देने के लिए इसने डेबिट कार्ड से होने वाले ट्रांजैक्शन पर एमडीआर खत्म करने का सुझाव दिया है। साथ ही इसने राष्ट्रीय रिटेल नीति लाने की भी बात कही है। एसोसिएशन के अनुसार भारत का रिटेल मार्केट अभी करीब एक लाख करोड़ (ट्रिलियन) डॉलर है, इसके 2032 तक दो लाख करोड़ डॉलर का हो जाने का अनुमान है।

वित्तीय स्थिति बेहतर, मनरेगा पर बढ़ सकता है खर्च

खर्च करने के लिए सरकार इस समय बेहतर स्थिति में लग रही है। अंतरिम बजट के समय से तुलना करें तो सरकार की राजकोषीय स्थिति मजबूत हुई है। वित्त वर्ष 2023-24 में सकल कर राजस्व 13.5% बढ़ा है जबकि अंतरिम बजट में 12.5% का अनुमान था। वर्ष 2023-24 में सरकार का कुल कर राजस्व 34.65 लाख करोड़ रुपये था। अगर इसमें 12% वृद्धि का भी अनुमान लें तो मौजूदा वित्त वर्ष में सरकार को इस मद में लगभग 38.80 लाख करोड़ रुपये मिलेंगे। गैर-कर राजस्व में आरबीआई से मिलने वाला रिकॉर्ड 2.11 लाख करोड़ रुपये का डिविडेंड भी शामिल होगा।

बेहतर राजस्व को देखते हुए सरकार मनरेगा के अलावा स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च बढ़ा सकती है। मनरेगा में सरकार एक दशक से बजट प्रावधान से अधिक खर्च कर रही है। कोविड वाले साल 2020-21 में तो बजट प्रावधान से 80% अधिक राशि खर्च की गई थी।

जीडीपी का 0.5% ज्यादा खर्च करने की गुंजाइश

अंतरराष्ट्रीय ब्रोकरेज फर्म जेफरीज का मानना है कि रिजर्व बैंक से डिविडेंड के रूप में बड़ी रकम मिलने से सरकार के लिए कैपिटल एक्सपेंडिचर और विकास की योजनाओं के बीच संतुलन बनाना आसान हो गया है। इससे सरकार को जीडीपी के 0.4% से 0.5% तक अतिरिक्त खर्च करने की सहूलियत मिली है। कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च 50,000 करोड़ रुपये बढ़ सकता है। साथ ही सरकार बाजार से उधार लेने का लक्ष्य भी कम कर सकती है।

इसका अनुमान है कि बजट में अफॉर्डेबल हाउसिंग, इन्फ्रास्ट्रक्चर और कंज्यूमर गुड्स कंपनियों के लिए अच्छे संकेत मिल सकते हैं। हालांकि आईटी और फार्मा सेक्टर के लिए बजट में ज्यादा उम्मीद नहीं है। आयकर संग्रह में वृद्धि से सरकार को छूट देने की गुंजाइश में मिली है। करदाताओं को राहत मिलने से उपभोक्ता खर्च बढ़ेगा और आर्थिक विकास को गति मिलेगी।

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