सरकार सतत उत्पादकता  खाद्य एवं पोषण सुरक्षा  संसाधन संरक्षण और मृदा स्वास्थ्य सुनिश्चित करने हेतु जैविक खेती को बढ़ावा  देने के लिए प्रतिबद्ध है।  इसी कड़ी में मध्यप्रदेश के गैरसरकारी संगठन इस ओर योजनाबद्ध तरीके से सामूहिक प्रयास से आगे बढ़ रहे हैं। 

आज हम आपको बता रहे हैं ऐसी ही एक संस्था "मानव जीवन विकास समिति  कटनी " जो सामाजिक उद्यमी की दिशा में शोध भी कर रहे हैं एवं ग्रामीण महिलाओं से मिलकर उन्हे नई राह दिखा रही है। 

प्रस्तुत है संस्था द्वारा किये गए भ्रमण एवं शोध कार्यक्रम के अंश

  1. ग्राम- भिनैनी, विकासखण्ड- जबैरा, जिला- दमोह में ग्राम की महिलाओं द्वारा, जैविक खेती को बढा़वा देने हेतु मानव जीवन विकास समिति के सहयोग से युद्ध स्तर पर, योजनाबद्ध तरीके से सामूहिक प्रयास किये जा रहे हैं |
  • ग्राम भिनैनी में जैविक खाद/ कीटनाशक बनाने हेतु जोभी कच्चा माल प्राप्त किया जाता है वह ग्रामीणों के सहयोग से प्राप्त होता है,उसके लिए समिति उसके लिए उन्हें निर्धारित देती है यह ग्रामीणों के आयका भी साधन साबित हो रहा है, ग्रामीण इसे रोजगार के रूप में भी देखते हैं | उदहारण स्वरुप 10 लीटर गौ मूत्र एकत्रित करने पर 100/- प्रदाय किये जाते हैं |
  • जैविक खेती का अलख जगाने का बीड़ा गाँव की दो महिलाओं  (हर बाई/ अर्चना गौड़)एवं उनके महिला समूह उठाया |
  • भूदान एवं विश्व शांति दिवस के अवसर पर पद यात्रा में भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ |
  1. ग्राम- पडरिया थोबन, विकासखण्ड- जबैरा, जिला- दमोह में स्व-स्पूर्त युवा द्वारा छोटे-छोटे प्रयासों से गाँव की स्थिति में आमूल-चूल परिवर्तन देखते ही बनता है
  • गाँव के प्रत्येक घर के बाहर कचरे दानी का होना, गाँव में किसी भी गली में कचरा दिखाई देना, खुली नाली होकर साफ और स्वच्छ वातावरण होना इस बात का परिचायक है कि प्रयास सार्थक सभी के सहयोग से ही संभव है |
  • गाँव CCTV (कैमरे) एवं PA SYSTEM (उद्घोषणा संयंत्र) से सुसज्जित है |एक कमांड सेंटर है, पुस्तकालय आदि कई सुविधाओं से युक्त है |
  • गाँव नशा मुक्ति को लेकर विशेष जागरूक है, इस हेतु व्यापक प्रचार-प्रसार दीवाल पर चित्र एवं जागरूक करने वाले नारे लिखाये गए हें | परिणाम स्वरुप शादी अथवा अन्य कार्यक्रम में स्वागत हेतु दी जानी वाली बीडी, तम्बाकू सामाजिक रूप से बंद कर दी गई है | कोई एक आदा व्यक्ति नशा करता भी है तो छुपकर करता होगा सामूहिक नहीं |

गाँव में घूमते हुए अनायास पता लगा कि यहाँ केवल एक मात्र आदिवासी परिवार निवास करता है, जिज्ञासा डॉ परशुराम तिवारी जी और मुझ सहित कुछ साथियों को उनके घर के अंदर खींच ही लायी | शायद सभी लोग विश्राम कर रहे थे, हम घर के पीछे वाले किचिन गार्डन की और पहुचे तो वहां पहुचते ही एक छोटी सी बच्ची की आवाज आई नमस्तेउसके बाद दूसरा वाक्य अंदर तक समाया आपको हमारा गाँव कैसा लगाबच्ची की संभ्रांत घर के कम मालूम हो रही थी | बातों-बातों में पता चला कि उसकी एक बहन भोपाल में पढ़ रही है वह खुद 6 वीं की छात्रा है |

  • वहाँ उपलब्ध पेड़-पौधे जो जिनकी चर्चा श्री निर्भय सिंह सर द्वारा की एवं उनका उपयोग भी बताया
  • गरुड़फल- जहर उतारने के लिए
  • अकेसिया पेड़-जैविक खाद बनाने के लिए
  • सहदेवी- पीलिया रोग हेतु
  • धतूरासूजनहेतु
  • कालीमूसली-शक्ति-वर्धन हेतु
  • सीताफल-चर्मरोग के लिए
  • ब्रही- बुद्धि-वर्धकहेतु
  • रामकंद-शक्ति-वर्धकहेतु
  • गठजोड़- हड्डी जोड़ने केलिए
  • इसके अतिरिक्त परिसर में प्रसंस्करण इकाई भी थी जिनमें प्रमुख निम्न हैं-
  • तुवरदाल प्रसंस्करण इकाई
  • मसाला प्रशंसकरण इकाई
  • इसके अतिरिक्त परिसर में कुछ उत्पाद भी बनाये जाते हैं जिनमें प्रमुख निम्न हैं-
  • हल्दी, मिर्च,धनिया

रसायन मुक्त कृषि उत्पाद

 

प्रस्तुति:  

श्रीमती प्रभा गौर एवं प्रदीप
सहयोग : श्रीमती शरनजीत पंडा
श्री बलवान सिंह
, श्री रोहिणी एवं श्री आनंद जी
 मार्गदर्शन :डॉ परशुराम तिवारी जी,
   श्री मनोज कुलश्रेष्ठ जी
आभार : श्री निर्भय सिंह जी एवं मानव जीवन विकास
 समिति कटनी

न्यूज़ सोर्स : Yogendra