दो लाख रूपये में बना यह घर करोड़ों के बने घरों को कर रहा फेल,देखें इको फ्रेंडली इस घर की कहानी
बचपन में मिली सीख और शिक्षा हमारे भविष्य को गढ़ने में अहम भूमिका निभाती है। हम क्या देखते हैं, क्या सुनते हैं, इन सबका असर हमारे व्यक्तित्व को आकार देता है। गोंडल, गुजरात के रहनेवाले 44 वर्षीय रमेश रूपरेलिया, बचपन से गायों की महिमा और इसके दूध व गोबर के फायदों के बारे में सुनते रहते थे। यही कारण है कि बचपन में ही गौ सेवा का बीज उनके दिमाग में पनप गया था। आज रमेश भाई, गाय आधारित खेती कर, उगाए गए ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स और घी भारत के साथ-साथ दुनिया के 123 देशों में भेज रहे हैं। साथ ही गोबर और अन्य प्राकृतिक चीज़ों का महत्व समझते हुए उन्होंने इनके इस्तेमाल से अपना छोटा-सा एक घर भी बनाया है, जो पूरी तरह पर्यावरण के अनुकून है।
गोबर और बांस से यह ईको फ्रेंडली घर रमेश रूपरेलिया ने शहर से लगभग पांच किलोमीटर दूर अपने खेतों के बीचोंबीच बनाया है।
वह कहते हैं, “यहाँ कुछ दूर तक आपको कोई बाज़ार या भीड़-भाड़ नहीं मिलेगी। कुछ चाहिए तो शायद आपको पैदल चलकर कुछ दूर तक जाना पड़े; और यही इस जगह की खूबसूरती है। इस घर के आस-पास काफ़ी शांति और सुकून का माहौल है जो हमें बहुत भाता है।” रमेश भाई अपने संयुक्त परिवार के साथ इस घर में रहते हैं। गाय, गाँव और पर्यावरण से तो वह पहले से ही जुड़े हुए हैं लेकिन उनका कहना है कि ऐसे नेचुरल घर में रहने के कई शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक फायदे भी हैं। यह घर उन्हें अपनी संस्कृति से जोड़कर रखता है और साथ ही रोज़मर्रा के जीवन में उनके परिवार को स्वस्थ रखता है।
मिट्टी और गोबर से बना अनोखा घर
चार एकड़ ज़मीन पर बने इस घर में तीन कमरे, एक हॉल और बच्चों के लिए एक लाइब्रेरी भी है। रमेश भाई ने अपना ट्रेनिंग सेंटर चलाते हैं, जिसे भी उन्होंने ऐसे ही सस्टेनेबल तरीके से बनाया है।
घर की दीवारों को बनाने के लिए बांस को उपयोग में लाया गया है। वहीं, प्लास्टर के लिए सीमेंट या चूने के बजाय कई जड़ी-बूटियों, मिट्टी और गोबर के लेप का इस्तेमाल किया गया है। इसकी दीवारों को सात रंग की मिट्टी को मिलाकर रंगा गया है।
आम घरों से कम बजट, सस्टेनेबल तरीके और पर्यावरण के अनुकून बना रमेश भाई का आशियाना
घर की छत बांस और घास की चटाई से तैयार की गई है और इसके ऊपर सूखी घास बिछाई गई है। इस तकनीक से गर्मियों में भी घर के अंदर का तापमान काफ़ी कम रहता है। इस पूरे घर को बनाने में दो लाख रुपए से भी कम की लागत आई है, जो आम घर के मुकाबले काफ़ी कम है। किसी भी कोने से अगर कोई व्यक्ति रमेश भाई के घर को देखना और यहाँ के प्राकृतिक माहौल का अनुभव करना चाहता है, तो यहाँ आकर कुछ दिन ठहर भी सकता है। मेहमानों के लिए उन्होंने अलग से इसी कैंपस में, अपने आवास के पास ही एक छोटा-सा घर बनाया है।