कैसे खेती करने में मददगार साबित होगी IIT मंडी के शोधकर्ताओं की ये रिसर्च
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) मंडी के शोधकर्ताओं ने ऐसे सूक्ष्मजीवों की पहचान की है जो सेल्यूलोज (एक अहम घटक, जो खेती के अपशिष्ट और कागज के कचरे में मौजूद होता है) को उपयोगी रसायनों, जैव ईंधन और कई औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त कार्बन में प्रभावी रूप से परिवर्तित कर सकते हैं. इस शोध का विवरण जर्नल बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है, जिसको डॉ श्याम कुमार मसाकापल्ली, एसोसिएट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ बायोसाइंसेस एंड बायोइंजीनियरिंग, डॉ स्वाति शर्मा, सहायक प्रोफेसर स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग और उनके शोधार्थीयों में शामिल आईआईटी मंडी से चंद्रकांत जोशी, महेश कुमार, ज्योतिका ठाकुर, यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ, बाथ, यूनाइटेड किंगडम से मार्टिन बेनेट और डेविड जे लीक, और केआईटी, जर्मनी से नील मैकिनॉन के सहयोग से तैयार किया गया है. प्लांट ड्राई मैटर, जिसे लिग्नोसेल्यूलोज के रूप में भी जाना जाता है, पृथ्वी पर सबसे प्रचुर मात्रा में नवीकरणीय सामग्रियों में से एक है. कृषि, जंगलों और उद्योगों से निकलने वाले इस लिग्नोसेल्यूलोसिक कचरे को बायोप्रोसेसिंग प्रक्रिया का उपयोग करते हुए बायोएथेनॉल, बायोडीजल, लैक्टिक एसिड और फैटी एसिड जैसे मूल्यवान रसायनों में परिवर्तित किया जा सकता है. हालाँकि, बायोप्रोसेसिंग में कई चरण शामिल होते हैं और इससे अवांछनीय रसायन भी निकलते हैं, इसके लिए धुलाई और इसको अलग करने के लिए कई चरणों की आवश्यकता होती है, जिससे लागत बढ़ जाती है. लिग्नोसेल्यूलोसिक बायोमास को उपयोगी रसायनों में बदलने के लिए वैज्ञानिक समेकित बायोप्रोसेसिंग (सीबीपी) नामक एक अभिनव विधि की खोज कर रहे हैं. इस पद्धति में सैक्ररिफिकेशन (सेल्युलोज को चीनी में बदलने की प्रक्रिया), और फर्मेंटेशन या उबालकर (चीनी को शराब में बदलने की प्रक्रिया) को एक चरण में संयोजित किया जाता है. इसे करने का एक तरीका सिंथेटिक माइक्रोबियल कंसोर्टियम (सिनकॉन्स) का उपयोग करना है. सिनकॉन्स विभिन्न सूक्ष्मजीवों का एक संयोजन है इसमें दो प्रकार के सूक्ष्मजीवों का चयन किया जाता है, एक सैक्ररिफिकेशन और दूसरा फर्मेंटेशन (उबालना) की प्रक्रिया है. सूक्ष्मजीवों का यह संयोजन उच्च तापमान (थर्मोफिलिक कंसोर्टिया) पर रह सकता है इसलिये यह विशेष रूप से उपयोगी होता है क्योंकि फर्मेंटेशन एक गर्मी छोड़ने वाली प्रक्रिया है. आईआईटी मंडी के वैज्ञानिकों ने पायरोलिसिस के बाद सेल्युलोज प्रोसेसिंग प्रक्रिया के लिए दो सिंकोन्स सिस्टम का अध्ययन किया. पायरोलिसिस एक ऐसी विधि जो कार्बनिक पदार्थों को ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में 500 डिग्री सेल्सियस से ऊपर गर्म करके विघटित करती है जिसको माइक्रोबियल बायोप्रोसेसिंग के साथ एकीकृत किया गया था. पायरोलिसिस अप्रयुक्त कच्चे माल और उपयोगी कार्बन में गठित साइड-उत्पादों को परिवर्तित करता है. पायरोलिसिस अपना काम पूरा करने के बाद सूक्ष्मजीवों को भी नष्ट कर देता है, जिससे कचरे के सुरक्षित निपटान की आवश्यकता भी समाप्त हो जाती है. इस विषय पर बात करते हुए आईआईटी मंडी के डॉ. श्याम कुमार मसाकापल्ली ने कहा, "हमने सिंकोन्स को बनाने के लिए कई सूक्ष्मजीवों का विश्लेषण किया है जो सेलूलोज़ को इथेनॉल और लैक्टेट में बदल सकते हैं. हमने दो सिंकोन्स विकसित किए हैं- एक कवक-जीवाणु जोड़ी और एक थर्मोफिलिक जीवाणु - जीवाणु जोड़ी दोनों ने क्रमशः 9% और 23% की कुल पैदावार के साथ प्रभावी सेलूलोज़ में गिरावट का प्रदर्शन किया है. पायरोलिसिस के बाद अवशेष बायोमास से हमें उपयोगी भौतिक-रासायनिक गुणों के साथ एक कार्बन सामग्री प्राप्त हुई." शोधकर्ताओं ने एक अन्य इंजीनियर्ड फर्मेंटेटिव प्रक्रिया को शामिल करके थर्मोफिलिक सिंकॉन्स से (33%) अधिक एथेनॉल उत्पादन प्राप्त किया. वहीं दोनों का एक साथ उपयोग करने से सैक्करीफिकेशन के लिए सेल्यूलोज-क्रियाशील एंजाइम (सेल्युलेस) से 51% एथेनॉल का उत्पादन हुआ. इस सम्बन्ध में आईआईटी मंडी की स्वाति शर्मा ने कहा, "डिज़ाइन किए गए माइक्रोबियल कंसोर्टिया को सेल्युलोज के बायोप्रोसेसिंग के लिए सेल्यूलस, इथेनॉल और लैक्टेट जैसे औद्योगिक एंजाइमों जैसे क़ीमती एवं उपयोगी सामान के लिए अपनाया जा सकता है. एक बार बड़े स्तर पर इसको करने के बाद इस प्रक्रिया से बायोरिएक्टरों में स्थायी रूप से बायोएथेनॉल और अन्य हरित रसायन उत्पन्न किये जा सकते है. पायरोलिसिस के बाद प्राप्त कार्बन का उपयोग पानी को फ़िल्टर करने और इलेक्ट्रोड जैसे कई अनुप्रयोगों में किया जा सकता है." इस विधि का पेटेंट कराया गया है, और इसके लिए बायोप्रोसेस का और विस्तार किया जा रहा है.