इस समाजसेविका ने ग्राम के 10 कुओं की सफाई कर फिर से कर दिया जीवित
मैं गुजरात के महिसागर जिले में पड़ने वाले मोटेरा नाम के एक छोटे से गांव से हूं। अपने गांव के अधिकांश लोगों की तरह मैं भी भील जनजाति से आती हूं। अपने तीन भाई-बहनों में मैं सबसे बड़ी हूं; मेरे दोनों छोटे भाई-बहन अभी माध्यमिक स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं। हमारे गांव में ही हमारा एक घर और एक छोटा सा खेत है और हमारे पास थोड़े से मवेशी भी हैं।
जब मैं छोटी थी तो अपने भविष्य को लेकर मेरी समझ स्पष्ट नहीं थी। लेकिन मैं इस अहसास और जागरूकता के साथ बड़ी हो रही थी कि मेरी जनजाति के लोगों का जीवन उस स्थिति से बहुत अलग है जिसे एक आदर्श जीवन कहा जाता है। गांव से हो रहे पलायन की दर तेज़ी से बढ़ रही थी और लोग आसपास के जंगलों में उपलब्ध संसाधनों का अंधाधुंध तरीक़े से दुरुपयोग कर रहे थे। गांव के कुओं की स्थिति बदतर थी और पीने के पानी का संकट था। सबसे महत्वपूर्ण बात जो मैंने देखी वह यह थी कि गांव में होने वाली बैठकों जैसी महत्वपूर्ण बातचीत में औरतों की उपस्थिति नहीं थी।
इसलिए मुझे अपने गांव की स्थिति में सुधार के लिए अपने समुदाय, विशेषकर इसकी महिलाओं के साथ काम करने की प्रेरणा मिली। एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो गांव में पला-बढ़ा है और समुदाय के सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों से वाकिफ है, मुझे विश्वास था कि मैं सार्थक बदलाव ला सकने में सक्षम थी। मुझे मेरे गांव में फ़ाउंडेशन फ़ॉर एकोलॉजिकल सिक्योरिटी (एफ़ईएस) से सहयोग प्राप्त सात कुंडिया महादेव खेदूत विकास मंडल नाम की संस्था द्वारा किए जा रहे काम के बारे में पता चला। यह संस्था पारिस्थितिक पुनरुद्धार और आजीविका की बेहतरी के लिए काम करती है और मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि इनका काम मेरे समुदाय के लोगों की बेहतरी के लिए हस्तक्षेपों का एक उचित मिश्रण है। मैं 2021 में गांव की संस्था से जुड़ी और तब से ही समुदाय संसाधन व्यक्ति (कम्यूनिटी रिसोर्स पर्सन) के रूप में काम कर रही हूं।
चूंकि मैंने सीआरपी के रूप में अपना काम शुरू किया था इसलिए मैं ऐसी कई गतिविधियों में शामिल थी जिनका उद्देश्य आसपास के जंगलों और उनके संसाधनों का संरक्षण और प्रबंधन करना था। क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने के लिए हमने गांव की संस्था को मजबूत करने और जंगल को पुनर्जीवित करने जैसे कामों को अपनी प्राथमिक रणनीतियों के रूप में अपनाया है। मैं महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के माध्यम से लोगों की रोजगार तक पहुंच को सुविधाजनक बनाने पर भी काम करती हूं। इसके लिए मैं संस्था की मदद एक वार्षिक श्रम बजट तैयार करने में करती हूं जिसे ब्लॉक और जिला दफ़्तरों में अधिकारियों के सामने प्रस्तुत किया जाता है। रोज़गार ढूंढने वाले लोगों को इस बजट के आधार पर ही काम आवंटित किया जाता है। हमारे गांव में मनरेगा के माध्यम से आवंटित किए जा रहे कामों में वन संरक्षण, चेक डैम बनाना और कुआं खोदना आदि शामिल है। गांव के लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार प्राप्त करने में सक्षम बनाने से पलायन को कम करने के साथ-साथ आजीविका की समस्या का समाधान करने में मदद मिलती है।
सुबह 6.00 बजे: मैं सुबह जल्दी उठती हूं और अगले कुछ घंटों में घर के काम और नाश्ता करने जैसे काम निपटाती हूं। गांव के अन्य परिवारों की तरह मेरा परिवार भी आय के अन्य स्त्रोत के लिए पशुपालन पर निर्भर है। इसलिए सुबह-सुबह मैं गौशाला की साफ़-सफ़ाई, गायों को पानी देने और दूध दुहने में अपनी मां की मदद करती हूं। मेरे गांव में लोगों को आमदनी के दूसरे विकल्पों पर गम्भीरता से सोचना पड़ा क्योंकि खेती से उनका काम चलता दिखाई नहीं पड़ रहा था। यहां खेती के लिए बहुत अधिक ज़मीन उपलब्ध नहीं है और गांव की विषम भौगोलिक स्थिति खेती के काम को और भी अधिक चुनौतीपूर्ण बना देती है। एक किसान इतना ही अनाज उगा पाता है जितने में उसके परिवार का भरण-पोषण हो जाए। मैं अब परिवारों को उनकी आजीविका के विकल्पों में विविधता लाने में मदद करने की दिशा में काम कर रही हूं। गांव के लोग पशुपालन और वन संसाधनों के संग्रहण जैसे काम करते आ रहे हैं और अब मैं विभिन्न कार्यक्रमों के जरिए इन्हें बढ़ाने में उनकी मदद कर रही हूं।
हमने पूरे गांव में 10 कुओं की साफ़-सफ़ाई कर उन्हें फिर से जीवित करने में सफलता हासिल की है। | चित्र साभार: बरिया प्रवीणभाई मोतीभाई
सुबह 10.00 बजे: घर के कामों में हाथ बंटाने के बाद मुझे फ़ील्डवर्क के लिए जाना पड़ता है। दिन के पहले पहर में मैं गांव के विभिन्न घरों का दौरा करती हूं। इन घरों से आंकड़े इकट्ठा करना मेरी ज़िम्मेदारियों का एक बहुत बड़ा हिस्सा है। उनका सर्वे करते समय मैं परिवार के आकार, इसके सदस्यों की उम्र, शिक्षा के स्तर और लिंग जैसी जानकारियां इकट्ठा करती हूं। ये घरेलू सर्वेक्षण मनरेगा श्रम बजट और ग्राम पंचायत विकास योजना (जीपीडीपी) में काम आते हैं, जिसे तैयार करने में मैं मदद करती हूं। मैंने जिस पहले बजट को तैयार करने में मदद की थी उसमें रोजगार हासिल करने पर ध्यान केंद्रित किया गया था। लेकिन आख़िरकार हमने यह महसूस किया कि जल संरचनाओं का निर्माण भविष्य में भी हमारी उत्पादकता और आय बढ़ाने में मदद कर सकता है। हाल के बजट में इन विषयों को केंद्र में रखा गया था। गांव में पानी की कमी का सीधा मतलब यह था कि महिलाओं को पानी लाने के लिए नियमित रूप से एक किलोमीटर पैदल चलकर नदी तक जाना पड़ता था। इस समस्या का समाधान भूजल स्त्रोतों को फिर से सक्रिय करके किया जा सकता था और इसलिए ही मैंने भूजल सर्वे करना शुरू कर दिया। इस सर्वे से हमें यह जानने और समझने में मदद मिली कि ऐसे कौन से क्षेत्र हैं जहां भूजल पुनर्भरण कार्य करने की तत्काल आवश्यकता है, और इसके लिए हमने ग्राउंडवाटर मॉनिटरिंग टूल नामक एक एप्लिकेशन का उपयोग करके कुओं की जियोटैगिंग की। जियोटैगिंग से हमें उन कुओं पर नज़र रखने में मदद मिलती है जिन्हें रिचार्ज करने की आवश्यकता होती है और जिनका उपयोग विवेकपूर्ण तरीके से किया जाना चाहिए। समय के साथ गांव के बदलते हालात और वर्तमान में उसकी आवश्यकता के आकलन के लिए मैं नियमित अंतराल पर ऐसे सर्वेक्षण करती हूं। अब तक, हम गांव भर में 10 कुओं को पुनर्जीवित कर पाने में कामयाब रहे हैं, और इससे पानी की कमी को दूर करने में मदद मिली है।
स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन से जुड़े फ़ैसले हम सामूहिक रूप से लेते हैं।
दिन के समय मैं गांव में होने वाली बैठकों में भी शामिल होती हूं। इन बैठकों में हम सामूहिक रूप से स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन से जुड़े फ़ैसले लेते हैं। हाल तक वन प्रबंधन से जुड़े कई नियमों का पालन नहीं किया जाता था। उदाहरण के लिए, कुछ किसान संसाधनों के लिए जंगल के कुछ हिस्सों को साफ कर रहे थे जिससे उनकी आय में वृद्धि हो सके। गांव में होने वाली बैठकों के माध्यम से हमने एक समुदाय के रूप में जंगल की रक्षा के महत्व को सुदृढ़ किया और फिर से ऐसी स्थिति न आए इसके लिए नए नियम बनाए। लेकिन मैं यह भी समझ गई थी कि किसानों ने यह सब कुछ हताशा के कारण किया था न कि अपमान के कारण, इसलिए मैंने मनरेगा के माध्यम से उनके रोज़गार को सुनिश्चित करने के क्षेत्र में काम किया।
दोपहर 2.00 बजे: गांव से जुड़े मेरे काम ख़त्म होने के बाद आमतौर पर मैं घर वापस लौटती हूं और दोपहर का खाना खाती हूं। उन दिनों में जब मेरे लौटने की सम्भावना कम होती है मैं घर से निकलने से पहले भर पेट खाना खा लेती हूं। मेरे खाने में आमतौर पर गिलोडा (लौकी) का साग या करेला, मकई रोटला और कढ़ी होती है। दोपहर के खाने के बाद मैं गांव के पंचायत दफ़्तर चली जाती हूं। यहां मैं प्रासंगिक सरकारी योजनाओं के लिए आवेदन करने और उनके लाभों को पाने में लोगों की मदद करती हूं। इसके परिणाम स्वरूप विशेष रूप से गांव की औरतों की स्थिति में बहुत सुधार आया है। उदाहरण के लिए, विधवा महिलाएं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना के माध्यम से सामूहिक रूप से पेंशन प्राप्त करने में सक्षम हैं। इसके अतिरिक्त, हमने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के माध्यम से गांव में स्वयं-सहायता समूह (एसएचजी) की स्थापना की है।
इसने भी उन महिलाओं की वित्तीय साक्षरता को बेहतर बनाने में अपना योगदान दिया है और अब महिलाएं एसएचजी के माध्यम से सामूहिक रूप से पैसों की बचत करती हैं। गांव ने जिला कार्यालय में सामुदायिक वन अधिकार (सीएफआर) का दावा प्रस्तुत किया है। इस दावे की मान्यता कानूनी रूप से सामुदायिक वन की सुरक्षा, पुनर्जनन और प्रबंधन के हमारे अधिकार की गारंटी देगी। यह हमें वन संसाधनों के उपयोग के लिए आधिकारिक रूप से नियम बनाने और गैर-इमारती वन उत्पादों पर अधिकार प्रदान करने में भी सक्षम करेगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जंगल का स्वामित्व वन विभाग से हमारी ग्राम सभा को प्राप्त होगा। दुर्भाग्य से, हमें अभी तक समुदाय के पक्ष में किसी तरह का फ़ैसला नहीं मिला है। इसके परिणाम स्वरूप, हमें अभी तक इ स बात की जानकारी नहीं है कि गांव की सुरक्षा के अंतर्गत अधिकारिक रूप से कितनी हेक्टेयर भूमि आवंटित है। लेकिन चूंकि समुदाय के लोगों ने पारम्परिक रूप से वन की सुरक्षा की है और इससे प्राप्त होने वाले संसाधनों पर ही जीवित रहे हैं, इसलिए हम अनौपचारिक रूप से भी अपने इन अभ्यासों को जारी रखने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं।
शाम 5.00 बजे: कभी-कभी मैं अपने कोऑर्डिनेटर से मिलने या एकत्रित आंकड़ों को रजिस्टर में दर्ज करने के लिए एफ़ईएस के कार्यालय भी जाती हूं। यह दफ़्तर मेरे गांव से 30 किमी दूर है इसलिए मुझे वहां तक पहुंचने के लिए स्टेट बस लेनी पड़ती है। एक ऐसा मंच बनाने के लिए जहां विभिन्न हितधारक आम मुद्दों पर इकट्ठा हो सकें, चर्चा कर सकें और विचार-विमर्श कर सकें, हम साल में एक बार संवाद कार्यक्रम भी आयोजित करते हैं। फोरम हमारे ब्लॉक के विभिन्न गांवों के लोगों को स्थानीय कलेक्टर, आहरण और संवितरण अधिकारी और अन्य ब्लॉक स्तर के अधिकारियों के साथ सम्पर्क स्थापित करने में मदद करता है। यह कार्यक्रम ग्रामीणों को इन अधिकारियों के सामने अपनी चिंताओं को रखने और सामूहिक रूप से उनकी समस्याओं के समाधान की दिशा में काम करने का अवसर प्रदान करता है। उदाहरण के लिए पिछले कार्यक्रम में हमने स्थानीय लोगों की पारिश्रमिक और भूमि से जुड़ी समस्याओं पर चर्चा की थी। कार्यक्रम में सरकार भी अपने स्टॉल लगाती है जहां जाकर स्थानीय लोग खेती-किसानी, कीटनाशक, भूमि संरक्षण, पशुपालन, मत्स्यपालन और विभिन्न सरकारी योजनाओं के बारे में जानकरियां हासिल कर सकते हैं।
मैं वन संसाधनों के संग्रह के लिए समुदाय के सदस्यों को नियम बनाने में मदद करती हूं।
सामूहिक ज्ञान का उपयोग करते हुए हमारी महिलाओं और समुदाय के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर मैं वन संसाधनों जैसे महुआ (बटरनट) और टिमरूपन (कांटेदार राख के पत्ते) के संग्रह के लिए नियम बनाने में उनकी मदद करती हूं। उदाहरण के लिए, एक समय में केवल कुछ ही परिवारों को संसाधनों को इकट्ठा करने की अनुमति दी जाती है। इससे हम अनजाने में ही सही लेकिन प्रकृति के किए जा रहे दोहन पर रोक लगाने में सक्षम हो पाते हैं। इसी प्रकार हम जंगल से केवल सूखी लकड़ियां ही इकट्ठा करते हैं और पेड़ों को नहीं काटते हैं। हालांकि आमतौर पर महिलाएं जंगल के संरक्षण के मुद्दे से सहमत होती हैं लेकिन मैं भी उन्हें विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से सीखने के लिए प्रोत्साहित करती हूं और उन्हें ऐसी जगहों पर लेकर जाती हूं जहां इन नियमों का पालन किया जा रहा है।
शाम 6.00 बजे: शाम में घर वापस लौटने के बाद मुझे घर के कई काम पूरे करने होते हैं। मैं मवेशियों के खाने-पीने पर एक नज़र डालने के बाद पूरे परिवार के लिए खाना पकाती हूं। खाना तैयार होने के तुरंत बाद ही हम खाने बैठ जाते हैं। घर की सबसे बड़ी बच्ची होने के कारण मेरे ऊपर घर के कामों की जिम्मेदारी है और मैं उन्हें हल्के में नहीं ले सकती। समुदाय के लिए अथक काम करने के कारण मेरे गांव में मेरी एक पहचान बन चुकी है। मैं मात्र 22 साल की हूं लेकिन मुझसे उम्र में बड़े लोग भी मुझे अनिता बेन (बहन) पुकारते हैं। इससे मेरे पिता और मेरी मां को बहुत गर्व होता है। मैं अपने छोटे भाई-बहनों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बनना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि मेरी छोटी बहन भी मेरे नक़्शे-कदमों पर चले और मेरे भाई को एक अच्छी नौकरी मिल जाए ताकि हमारे परिवार की आमदनी में थोड़ा इज़ाफ़ा हो सके। मुझे पूरी उम्मीद है कि वे दोनों अपने-अपने जीवन में बहुत उंचाई पर जाएंगे और हमारे परिवार और समुदाय के लिए कुछ बड़ा करेंगे।
रात 9.00 बजे: रात का खाना खाने के बाद मुझे तुरंत ही बिस्तर पर जाना होता है। नींद में जाने से पहले कभी-कभी मैं अपने काम से समाज पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में सोचती हूं। मैं चाहती हूं कि गांव में महिलाओं की भागीदारी बढ़े और उनके विचारों को महत्व दिया जाए। सम्भव है कि एक दिन हमारे गांव की सरपंच कोई महिला ही हो!
अंत में, मैं केवल इतना चाहती हूं कि मेरे समुदाय के लोग सौहार्दपूर्वक रहें और विरासत में मिले इस जंगल को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करते रहें। मैं अपने गांव में कर रहे अपने कामों को आसपास के गांवों में भी लेकर जाना चाहती हूं। मुझे पूरा भरोसा है कि वे लोग भी इसी प्रकार की चुनौतियों का सामना कर रहे होंगे और स्थानीय ज्ञान के आदान-प्रदान से इसमें शामिल प्रत्येक व्यक्ति को लाभ होगा।