विकसित भारत के निर्माण में स्थानीय गैर सरकारी संगठनों की भूमिका जरूरी क्यों
किसी भी देश के विकसित देश बनने की अपेक्षा का दायरा सिर्फ राजनीतिक नहीं है यह अलग बात है कि राजनीति दलों की कुचाल ने इस दिशा में कार्यरत सोच को संकुचित कर दिया है। वर्तमान में सामाजिक क्षेत्र की गुणवता के सवाल के बीच बड़ा चिंतन का विषय है कि क्या सामाजिक क्षेत्र की आवाज दबाई जा रही है या फिर स्वैच्छिक समितियों के विकास का तंत्र सक्षम रूप से कार्य नहीं कर रहा है।
भारत में गैर -सरकारी संगठनों की भूमिका अहम रही है। आदिकाल में कई ऐसे बड़े सामाजिक उत्थान के कार्य किये गए जो गैरसरकारी संगठनों की तर्ज पर थे। किन्तु कालचक्र में कुछ ऐसा घटा कि हमारे-राजा महाराजाओं ने ऐसे सामुदायिक समूहों का राजनीतिकरण कर उसका उसका उपयोग सत्ता-सुख पाने के लिए किया ,जिससे देश गुलामी की दलदल में धसता गया। लगभग आज भी वैसी ही स्थिति राजनीतिक दलों की दिख रही है। सत्ता के सुख के इर्दगिर्द खूमते कार्यकर्ताओं की फौज राजाओं की गुणगान स्वरूपवादी दर्शन को प्रदर्शन करती दिखती है जो कहीं ना कहीं से आंतरिक गुलामी एवं भोगवादी सत्ता की पक्षधर लगती है।
आजादी के बाद जब देश के विकास को लेकर एक दौर में विचार मंथन चल रहा था उस समय एक घटना का जिक्र इतिहासों में मिलता है जिसमें कहा गया था कि भारत के विकास में राजनीतिक दल बाधा बन सकते है। उस वक्त एक बड़े राजनीतिक दल को तो गैर सरकारी संगठन में बदलने का अनुरोध भी किया गया था।
इन बातों के बीच आज की स्थिति में भी विकास कार्य को लेकर जमीनी बदलाव को लेकर राजनीतिक एवं सरकारी प्रयास नाकामी लगते हैं। जमीनी गैर सरकारी सरकारों के विकास को लेकर राज्यों की नीति एवं निर्देशन भी स्पष्ट नहीं दिख रहे हैं। इन सब के कमजोर होने के चलते एनजीओ की भूमिका एवं उनके अनुदान में भी राजनीतिकरण एवं अनुदान के बंदरबाट की आशंका है।
स्थानीय समितियों की भूमिका पर नीति स्पष्ट नहीं
ऐसा नहीं है कि देश में गैर सरकारी संगठनों का निर्माण नहीं हुआ है,हर दिन हजारों की संख्या में समितियां विभिन्न धाराओं के अंतर्गत पंजीकृत हो रही हैं ,लेकिन विकास सेक्टर जैसे कि कृषि क्षेत्र के विकास,रोजगार परियोजनाएं,स्वच्छ पानी की व्यवस्था,पेयजल वितरण, मानव स्वास्थ्य सुधार, गांवों का विकास,बाढ़,अकाल, भूखमरी,भिक्षावृति,ग्रामों से युवाओं के पलायन एवं नशा मुक्ति जैसे कार्यो में ठोस प्रयासों में जमीनी गैरसरकारी संगठनों की भूमिका नहीं के बाराबर दिखती है।
जमीनी स्तर पर व्यवस्थाओं एवं संसाधनों में सुधार की दरकार
इन तमाम बाधायों का कारण कहीं ना कही से राज्यों द्वारा सहीं एनजीओ नीति पर सही से कार्य नहीं करना हो सकता है। हालांकि इन बाधाओं के बीच सरकारों का कुछ सालों से इस सेक्टर में प्रगतिवादी प्रयास बढ़ते भी दिख रहे है। सरकार के साथ समुदाय की भागादारी की जहां उम्मीद जगी है वहीं जमीनी स्तर पर व्यवस्थाओं एवं संसाधनों में सुधार के बाद ही गैर सरकारी संगठनों के प्रति सामाजिक-आर्थिक संरचना एवं सकारात्मक बदलाव की उम्मीद की भी कलपना की जा सकती है।
स्थानीय गैर सरकारी संगठन को विकसित करना जरूरी क्यों ?
✅ समाज कल्याण हेतु समुदाय में दायित्वों की पूर्ति के लिए
✅ जनता से नजदीकी संबंध के लिए
✅ स्थानीय जनता को विकास कार्य में शामिल करने
✅ कार्यकुशलता के विकास के लिए
✅ समाज की असामाजिक प्रवृतियों को समाप्त करने के लिए
✅ सरकारी योजनाओं की निगरानी के लिए
✅ स्थानीय स्तर पर कुशल मानव संसाधन उपलब्ध करवाने के लिए
✅ आजीविका को आगे बढ़ाकर नये अवसर पैदा करने हेतु
लेखक - इंडियन पब्लिक मेल के संपादक, मप्र सरकार से अधिमान्य पत्रकार है। भोपाल में नवभारत, दैनिक भास्कर,नई दुनिया देशबंधु,राष्ट्रीय हिन्दी मेल एवं महर्षि वर्ल्ड मीडिया समूह में उप संपादक एवं विशेष संवाददाता के रूप में कार्य कर चुके हैं।