भारत में विकास का दायरा सीमित नहीं है, बल्कि बहुत व्यापक है, क्योंकि इसमें न केवल आर्थिक विकास बल्कि सामाजिक  क्षेत्र में  विकास, जीवन स्तर में सुधार, आर्थिक सशक्तिकरण, महिला एवं बाल विकास, शिक्षा और नागरिकों की जागरूकता तथा सामाजिक तानेबाने में सुधार शामिल है। विकास का कार्य इतना बड़ा और जटिल है कि समस्या को हल करने के लिए केवल सरकारी योजनाओं को लागू करना पर्याप्त नहीं है। इसे प्राप्त करने के लिए, विभिन्न विभागों , एजेंसियों और यहां तक कि गैर सरकारी संगठनों NGO को शामिल करते हुए एक समग्र दृष्टिकोण और सामुदायिक प्रयासों की आवश्यकता है।

विकास कार्य में समुदाय की सहभागिता

विकसित भारत के विकास में गांवों का महत्वपूर्ण योगदान है। किंतु वर्तमान में चलित विकास कार्य में समुदाय की सहभागिता को प्रायःओझल नजरों से देखा जाता है। इसका कारण समुदाय का विकास सेक्टर हेतु संगठित न होना माना जा सकता है। मुठ्ठी भर कागजों पर चलित धोकेबाज गैर सरकारी संगठनों ने बड़ी संख्या में चलित स्वैच्छिक संगठनों पर से सवालिया निशान लगाकर विकास की गतिविधि से उन लोगों को एनजीओ से मुक्ति का रास्ता निकाल दिया है जो निजी स्वार्थ के लिए किसी न किसी तरह सरकार के अंग बनकर अपना घर भर रहे हैं।

इधर ग्रामीण एनजीओ पर नजर डालें तो विकास की धारा में समुदाय की भूमिका सहभागिता एवं जवाबदेही से गैरसरकारी संगठन प्रशासन के अभिशासन  संचालन की गुणवक्ता में सुधार ला सकते है किंतु ऐसा तब संभव है जब वे बेहतर मानव संसाधन विकास एवं लाभार्थी सदस्यों का सही प्रशिक्षण कर सकें।

वर्तमान में सरकारी तौर पर गैरसरकारी संगठनों का विकास तो हो रहा है लेकिन उनके संचालन-प्रबंधन एवं दस्तावेजीकरण पर और कौशल विकास की आवश्यकता महसूस हो रही है।

ग्रामीण विकास में NGO की स्थित

मप्र की ग्रामीण विकास योजनाओं के निर्माण एवं ग्राम सभाओं में भागीदारी,पंचायतों के सशक्‍तीकरण, सामूहिक विकास में समुदाय का समावेशन, सामुदायिक निगरानी, सहभागिता, सामुदायिक स्‍वामित्‍व जैसे मुद्दों के साथ ग्रामीण अधोसंरचना विकास, मूलभूत सुविधाएँ, आवागमन, सामाजिक.आर्थिक सशक्तीकरण,आत्‍म-निर्भरता, रोजगार.स्‍व.रोजगार, जैसे मुद्दों पर स्थानीय गैर सरकारी संगठनों की स्थिति में अभी बहुत बड़े सुधार की आवश्यकता लग रही है। इसके विपरित स्वयं सहायता समूहों ने जरूर ग्रामीण क्षेत्र में उन्‍नत कृषि, पशुपालन में बुनियादी सुविधाएँ,सिंचाई, भण्‍डारण, वृहद् बाजारों को गाँव से जोड़ने के लिये  उल्‍लेखनीय जतन किये है।

     ग्रामीण विकास एक सरल कार्य लगता हैए लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। स्वतंत्रता के बाद विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से कई ग्रामीण विकास कार्यक्रम देखे गए हैं। सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों के माध्यम से गरीबी उन्मूलनए रोजगार सृजन, आय सृजन के अधिक अवसर और बुनियादी ढाँचे की सुविधाओं पर जोर दिया जाता है। इसके साथ हीए जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सरकार द्वारा पंचायती राज संस्थाओं की भी शुरुआत की गई है। लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद ग्रामीण गरीबीए बेरोजगारी दरए कम उत्पादन अभी भी मौजूद है। आजीविका सुरक्षाए स्वच्छता समस्या, शिक्षा, चिकित्सा सुविधाएं,सड़कें आदि जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए लड़ाई अभी भी जारी है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध बुनियादी ढांचे के मामले में अभी भी बहुत बड़ा अंतर है। बुनियादी ग्रामीण विकास में रोजगार, उचित जल आपूर्ति और अन्य बुनियादी सुविधाओं के अलावा  उल्लेखित आयामों को भी शामिल किया जाना चाहिए।

ग्रामों के विकास के लिए एनजीओ नीति

हर ग्राम में एक संस्था का गठन

स्थानीय एनजीओ को अकादमिक प्रशिक्षण

स्थानीय एनजीओ को मिले सोशल आडिट का जिम्मा

विकास के अनेकों सेक्टरों में स्थानीय एनजीओ की सहभागिता

आंकड़ों से कहानी

स्वैच्छिक संगठन. जिनमें वैश्विक संगठनों की स्थानीय इकाइयां और घरेलू संस्थाएं भी शामिल हैं. आजीविका. जेंडर अधिकार. सड़क सुरक्षा. मानव अधिकार. माइक्रोफाइनेंस. पर्यावरण संरक्षण. स्वास्थ्य. कृषि और टिकाऊ ऊर्जा जैसे मुद्दों की एक विस्तृत श्रृंखला पर काम करते हैं। वे विकास प्रक्रिया का एक अभिन्न हिस्सा हैं और सरकार एवं समुदाय के बीच एक महत्वपूर्ण पुल का काम करते हैं।

सीबीआई द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसारए देश में गैर.सरकारी संगठनों की संख्या स्कूलों की संख्या से दोगुनी है, और सरकारी अस्पतालों की संख्या से 250 गुना है। जहाँ प्रत्येक 709 व्यक्तियों पर एक पुलिसकर्मी है, वहीं प्रत्येक 400 लोगों पर एक एनजीओ है। हालांकि कई संगठन सराहनीय काम कर रहे हैं, लेकिन प्रभावशाली आंकड़े हमेशा प्रभावशाली काम के रूप में तब्दील  हो रहे हो ऐसा दिख नहीं रहा है।

समुदाय में विकास को गति देने की भारी क्षमता

लगभग तीन.चौथाई आबादी के साथ, ग्रामीण भारत में, देश के समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास को गति देने की भारी क्षमता है। कुशल जल प्रबंधन और टिकाऊ कृषि पद्यतियों के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों को अनुकूल रखते हुए आजीविका संवर्धन, मानव संसाधन विकास, और वित्तीय समावेश के लिए, मूल्य-आधारित साझेदारी के निर्माण के माध्यम से क्षमता को प्राप्त किया जा सकता है। 

गैर सरकारी संगठन भारत के जीवंत नागरिक समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो समुदाय को सरकार के साथ संवाद में मदद करते हैं। इन्होंने जल संसाधन प्रबंधन, कृषि, आय वृद्धि, स्वच्छता, शिक्षा, शासन, और ग्राम-स्तर की संस्थाओं के क्षमता निर्माण जैसे कई मुद्दों पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

स्वैच्छिक संगठनों का सहयोग और नियंत्रण

दुर्भाग्य से, सभी स्वैच्छिक संगठन नेक इरादों के साथ शुरू नहीं जाते। कई मामलों में, संस्थापकों द्वारा निजी आर्थिक लाभ के लिए इनकी स्थापना की जाती है। यह दुःख की बात है कि गैर-सरकारी संगठनों के जमीनी-स्तर के कार्यकर्ताओं को हमेशा बहुत कम भुगतान किया जाता है, और प्राप्त संसाधनों को बड़े पैमाने पर संस्थापकों और संचालकों द्वारा हड़प लिया जाता है।

हालाँकि नकारा गैर-सरकारी संगठनों की छंटनी कर देनी चाहिएए लेकिन छानबीन की प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिएए ताकि जायज लोग हतोत्साहित न हों। लेकिन लोकतंत्र मेंए सरकार को ध्यान रखना चाहिए और कानूनी अनुशासन के नाम पर उन संगठनों पर नकेल नहीं कसनी चाहिएए जो सरकार की इच्छानुसार काम नहीं करते। 

जमीनी कार्यकर्ताओं को मिले मौका

स्वैच्छिक संगठनों के कर्मचारियों द्वारा बहुत नवाचार और बलिदान किया जाता है, जिसकी जानकारी केवल लाभार्थियों को होती है। यहां तक कि संगठनों की विभिन्न रिपोर्टों मेंए परियोजना की सफलता में व्यक्तिगत योगदान का उल्लेख नहीं किया जाता। असल में हमेंए उन सामान्य पुरुषों और महिलाओं की सराहना और सम्मान करना चाहिएए जो परियोजनाओं को कार्यान्वित करने के कठोर मेहनत करते हैं।

ग्रामीण भारत मेंए स्वैच्छिक संगठन व्यापक विकास नेटवर्क का एक घटक भर हैंए लेकिन कुछ स्थितियों में, वे सबसे शक्तिशाली उपकरण होते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि हम उनकी क्षमता का लाभ कैसे उठाएं। हालाँकि गैर सरकारी संगठनों को सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए उसकी सही कार्यप्रणाली और जवाबदेही आवश्यक हैंए राजनेताओं को चाहिए कि वे लोगों पर अपनी संकीर्ण विचारधाराओं को न थोपें, क्योंकि इससे जायज गैर सरकारी संगठनों के कार्यों के योगदान निरर्थक हो जाएंगे।

 

लेखक . योगेन्द्र पटेल. सामाजिक.राजनीतिक विश्लेषक हैं। भोपाल के नवभारत,नई दुनिया,देशबंधु,दैनिक भास्कर डिजिटल ,ईएमएस न्यूज एजेंसी,राष्टीय हिन्दी मेल,  प्रादेशिक समाधान, महर्षि वर्ल्ड मीडिया समूह ,श्री विश्व समर्थ विलेज  फाउंडेशन , ग्रामोजन फाउंडेशन, अनेकों डिजिटल चैनलों में संपादन  , उप संपादक से लेकर जनसंपर्क अधिकारी ,शोधार्थी की भूमिका में रह चुके हैं। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल से मास कम्युनिकेशन में मास्टर है। साथ ही मप्र सरकार से अधिमान्य पत्रकार  है। 

न्यूज़ सोर्स : आईपीएम डेस्क इनपुट डेटा