गैरसरकारी संगठन  {NGO} वही सही है जिसका उद्देश्य सही हो जो मानवाधिकारों की रक्षा करते हुए पर्यावरण की सुरक्षा के साथ आर्थिक विकास की पैरवी करता हो। किन्तु आजादी के बाद से भारत में गैर सरकारी संगठनों की दिशा एवं दशा में परिवर्तन देखा गया है। इस का मुख्य कारण सामाजीकरण का राजनीतिकरण होना हो सकता है। साथ ही इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि  गैर सरकारी संगठनों की कमान कुछ नौकरशाहो ने अपनी निजी लाभ के लिए  अपने हाथ में कर रखी है। एक तरफ जहां एनजीओ राजनीतिक घरानों के हाथ की कठपुतली दिखते हैं वहीं जमीन पर रियल कार्य कर रहे ग्रामीण अंचलों के एनजीओ के संचालन के पैमाने में सुधार नहीं हो सका है।

एनजीओ को देना होगा पर्यवेक्षक का दर्जा

अगर देश को विकसित देश बनाने की बात हो रही है तो स्थानीय स्तर के एनजीओ को सरकार के कामकाज में बैठकों में सभाओं में पर्यवेक्षक का दर्जा दिया जाना चाहिए। साथ ही स्थानीय स्तर के एनजीओ को ही उस क्षेत्र के मानवीय विकास ,पर्यावरणीय विकास एवं आर्थिक गतिविधियों के विकास हेतु शामिल किया जाना चाहिए। यह अलग बात है कि इस वक्त ग्रामीण अंचलों में एनजीओ प्रस्फुटन की अवस्था में हैं लेकिन अब समय आ गया है कि उन्हे नवांकुरित कर सृजन एवं समृद्वि की ओर अग्रसित किया जाए।

विकसित भारत हेतु ग्रामीण विकास इतना सरल नहीं

ग्रामीण विकास एक सरल कार्य लगता जरूर है, लेकिन वर्तमान हालातों पर नजर डाले तों इतना सरल है नहीं। देश की आधी आबादी अभी भी विभिन्न भेदों एवं सामाजिक तानेबाने में उलझी पड़ी है। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से कई ग्रामीण विकास कार्यक्रम देखे गए हैं। सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों के माध्यम से गरीबी उन्मूलन,रोजगार सृजन, आय सृजन के अधिक अवसर और बुनियादी ढाँचे की सुविधाओं पर जोर तो दिया गया है लेकिन समावेशी विकास की दिशा में अभी बहुत किया जाना बाकी है। जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सरकार द्वारा पंचायत राज संस्थाओं की भी शुरुआत की गई है। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद ग्रामीण इलाकों में गरीबी, बेरोजगारी दर, कम उत्पादन जैसी समस्याएं अभी भी मौजूद हैं। आजीविका सुरक्षा, स्वच्छता समस्या, शिक्षा, चिकित्सा सुविधाएं, सड़कें आदि जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए लड़ाई अभी भी जारी है। शहरी और ग्रामीण इलाकों में उपलब्ध बुनियादी ढांचे के मामले में अभी भी बहुत बड़ा अंतर है। बुनियादी ग्रामीण विकास में रोजगारए उचित जल आपूर्ति और अन्य बुनियादी सुविधाओं के अलावा ये सभी शामिल होने चाहिए।

सेवा को बनाना होगा संस्कृति का अंग

देश में प्राचीन काल से ही सेवा संस्कृति का अंग रही है। यही कारण रहा है कि देश के गुलाम होने के बाद भी भारत ने अपने आप को बहुत जल्द संभाल लिया। किंतु वर्तमान में समाज सुधारकों का अभाव एवं राजनीतिक कमिशबाजों की फौज देश के समावेशी विकास में बाधक बन सकती है। वर्तमान हालात तो ऐसे लग रहे जिसमें उन कथनों को लागू कर देना चाहिए जिसमें आजादी के बाद कुछ महान नेताओं ने कहा था कि राजनीतिक दलों को खत्म कर उन्हे लोक सेवा संगठनों के रूप में परिवर्तित कर दिया जाए।

उन्मुखीकरण के अनुसार एनजीओ के प्रकार

  • 1     धर्मार्थ उन्मुखीकरण - इस कार्य में परंपराग कार्य होते हैं,देश की एकता के सर्वधर्म का सम्मान एवं भारतीय संस्कृति के अनुरूप मानवीय विकास को प्राथमिकता दी जाती है। चुंकि हम देश को विकसित देश बनाने की बात करते हैं तो जातिवाद,क्षेत्रवाद एवं कट्टरवाद से इतर समुदायिक विकास की पहल करनी होती है।
  • 2     सेवा उन्मुखीकरण - सेवा उन्मुखीकरण में स्वास्थ्यए परिवार नियोजन या शिक्षा सेवाओं के प्रावधान जैसी गतिविधियों वाले एनजीओ शामिल हैंए जिसमें कार्यक्रम एनजीओ द्वारा डिज़ाइन किया जाता है और लोगों से इसके कार्यान्वयन और सेवा प्राप्त करने में भाग लेने की अपेक्षा की जाती है।
  • 3     सहभागी उन्मुखीकरण - सहभागी उन्मुखीकरण की विशेषता स्व.सहायता परियोजनाओं से होती है जहाँ स्थानीय लोग विशेष रूप से नकद, उपकरण, भूमि, सामग्री, श्रम आदि का योगदान करके किसी परियोजना के कार्यान्वयन में शामिल होते हैं। सामुदायिक विकास परियोजना मेंए भागीदारी आवश्यकता की परिभाषा के साथ शुरू होती है और नियोजन और कार्यान्वयन चरणों में जारी रहती है। सहकारी समितियों में अक्सर सहभागी उन्मुखीकरण होता है।
  • 4     सशक्तीकरण अभिविन्यास - सशक्तीकरण अभिविन्यास वह है  जिसका मकसद गरीब लोगों को उनके जीवन को प्रभावित करने वाले सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक कारकों की स्पष्ट समझ विकसित करने में मदद करना है, और अपने जीवन को नियंत्रित करने की अपनी संभावित शक्ति के बारे में उनकी जागरूकता को मजबूत करना है। कभी-कभी, ये समूह किसी समस्या या मुद्दे के इर्द-गिर्द स्वतःस्फूर्त रूप से विकसित होते हैं, अन्य समय में गैर सरकारी संगठनों के बाहरी कार्यकर्ता उनके विकास में सहायक भूमिका निभाते हैं।

विकसित भारत की दिशा में देश में अभी भी आंतरिक रूप से बहुत कुछ किये जाने की आश्यकता है। अधोसंरचा विकास को ही विकसित्ता की श्रेणी मानकर चला जाए यह जायज नहीं लगता है, देश के समावेशी विकास हेतु सामाजिक,राजनीतिक एवं आर्थिक हालातों को बदलने पर सरकार के साथ समुदाय को भी सोचने की आश्यकता है।

#Why NGO orientation is necessary for developed India

 

लेखक . योगेन्द्र पटेल. सामाजिक.राजनीतिक विश्लेषक हैं। भोपाल के नवभारत,नई दुनिया,देशबंधु,दैनिक भास्कर डिजिटल ,ईएमएस न्यूज एजेंसी,राष्टीय हिन्दी मेल,  प्रादेशिक समाधान, महर्षि वर्ल्ड मीडिया समूह ,श्री विश्व समर्थ विलेज  फाउंडेशन , ग्रामोजन फाउंडेशन, अनेकों डिजिटल चैनलों में संपादन  , उप संपादक से लेकर  {NGO} जनसंपर्क अधिकारी ,शोधार्थी की भूमिका में रह चुके हैं। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल से मास कम्युनिकेशन में मास्टर है। साथ ही मप्र सरकार से अधिमान्य पत्रकार  है। 

न्यूज़ सोर्स : ipm