कच्छ के एक छोटे से गांव कोटाय की रहनेवाली राजीबेन वांकर वैसे तो एक बुनकर परिवार से ही ताल्लुक रखती हैं। लेकिन उन्होंने कच्छ की सदियों पुरानी पारंपरिक कला को एक बिल्कुल ही नया रूप दे दिया है। यही वजह है की आज राजीबेन आम बुनकरों से हटकर अपनी अलग पहचान बना पाई हैं। आज वह अपने ही नाम से एक सस्टेनेबल ‘मेड इन इंडिया’ ब्रांड चलाती हैं।

वैसे तो सामान्य रूप से कच्छ कला में बुनाई और कशीदाकारी का काम रेशम या ऊन के धागे से होता है । लेकिन राजीबेन बुनाई का काम प्लास्टिक वेस्ट से करती हैं और इससे  ढेर सारे प्रोडक्टेस बनाती हैं। 

इन प्रोडक्ट्स को वह देश विदेश की कई प्रदर्शनियों तक भी पहुंचा चुकी हैं। लेकिन यहां तक पहुंचने का उनका सफर आसान नहीं रहा। एक वक़्त था जब यही राजी बेन  बुनाई और कला से दूर मजदूरी का काम किया करती  थीं, ताकि अपना घर चला सकें।  

घर वालों से छुपकर सीखी गई कला मुसीबत में आई काम

राजी बेन ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए  बताया, “हम छह भाई-बहन हैं। दो बड़ी बहनों की शादी करने के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी। मैं उस समय पिता से छुपकर अपने चचेरे भाइयों से बुनाई का काम सीखने जाया करती थी, लेकिन जब मैं 18 साल की हुई, तो मेरी भी शादी कर दी गई और मैं पिता की कोई मदद नहीं कर पाई।”

शादी के बाद तो राजीबेन ने फिर से बुनाई के काम से जुड़ने के ख्वाब देखना छोड़ ही दिया था। लेकिन शादी के 12 सालों बाद 2008 में, उनके पति का दिल दौरा पड़ने से निधन हो गया। इसके बाद राजीबेन के ऊपर अपने तीन बच्चों की जिम्मेदारी आ गई। 

इस मुश्किल समय में घर चलाने के लिए राजीबेन मजदूरी किया करती थीं। उसी दौरान उन्हें कच्छ की एक संस्था का पता चला, जो बुनकर महिलाओं को काम दे रही थी। राजीबेन ने मौके का फायदा उठाया और संस्था से जुड़ गईं। इसी संस्था में उन्हें प्लास्टिक से बुनाई का आईडिया मिला। 

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