सतत विकास लक्ष्य में एनजीओ की भूमिका एवं प्रबंधन
प्रजातांत्रिक व्यवस्था को विकास की विश्वसनीय अवस्था के रूप में सुचारू रूप से चलाने में सामाजिक संस्थाओं एनजीओ की भूमिका अब और महत्वपूण हो गई है। लेकिन दुर्भाग्य है कि देश में इस सेक्टर पर अभी भी उन्ही लोगों का कागजी कब्जा है जो कार्य कम और दिखावा ज्यादा कर रहे हैं। चिंता इस बात की भी है कि देश के कई राज्य ऐसे हैं जहां अभी भी एनजीओ नीति लागू नहीं हो सकी है। सरकारें सोसायटी एक्ट के तहत पंजीयन तो करवा रहीं हैं लेकिन एनजीओ के क्रियान्वय -फंडिग की व्यवस्था, एनजीओ की निगरानी,दस्तावेजीकरण हेतु कोई ऐसे मजबूत सरकारी उपक्रम का गठन नहीं हो सका है जो एनजीओ नीति के अनुरूप कार्य करने में समझ हो।
आज हम एनजीओ के निर्माण एवं उसके प्रबंधन के बारे में इस लेख में बात करते हैं। इससे पहले हम समझते हैं कि एनजीओ है क्या एवं आम नागरिक को इसके निर्माण एवं विस्तार को लेकर क्या करना चाहिए।
एनजीओ एक तरह से सामाजिक विकास की सतत प्रक्रिया है साथ ही अब इसमें सरकार के योजनागत कार्य को जमीन पर गुणवक्तापूर्ण पहुंचाने में सहयोग एवं योजनाओं के क्रियान्वयन में सहयोग -मार्गदर्शन जैसे कार्य को भी जोड़ दिया गया है। आजादी के पूर्व जहां एनजीओ की भूमिका सामाजिक चेतना हुआ करती थी अब इनका रूप सामाजिक विकास हेतु वाणिज्यिक,औद्योगिक एवं काॅरपोरेट की भूमिका में आगे बढता दिख रहा है।
आम नागरिक संस्था कैसे खोलें ?
वर्तमान समय में गरीब एवं कमजोर वर्ग के विकास के लिए लाखों एनजीओ विकास की प्रक्रिया में अपनी भूमिका निभाते दिखते हैं। हां यह अलग बात है कि एनजीओ तो दिख रहे हैं लेकिन न गरीबी खत्म होते दिखती है न ही सामाजिक बदलाव होता दिखता है। इसका मूल कारण इन संगठनों पर भी उन्ही लोगों का कब्जा होता दिख रहा है जो कागजों पर जन कल्याण दिखाकर सरकारी फण्ड की मलाई काटते दिखते हैं। ऐसी स्थिति में अब इस सेक्टर में उन नागरिकों को भी आने की दरकार है जो सामाजिक विकास के लिए सोच तो रहे हैं लेकिन उचित मार्गदर्शन एवं फण्ड के अभाव में इस ओर कदम नहीं रख पा रहे हैं।
भारत में एनजीओ तीन तरह से कार्य करते हैं। सबसे पहला प्रकार पंजीयन का होता है जो किसी भी राज्य स्तर पर सोसायटी एक्ट के तहत होता है। दूसरा पंजीयन भारतीय एक्ट 1982 के तहत ट्रस्ट के रूप में भारतीय ट्रस्ट अधिनियम के तहत किया जा सकता है,तीसरा पंजीयन कंपनी एक्ट के तहत होता है जो वाणिज्य,विज्ञान ,कला,खेल,शोध,जैसी गतिविधियों के लिए किया जाता है।
एनजीओ रजिस्ट्रेशन आवश्यक क्यों ?
अब आप सोच रहे होंगे की भलाई के कार्य में पंजीयन की आवश्यकता क्यों तो हम आप को बात दें कि व्यक्तिगत रूप से आप अगर किसी को भला करने में सझम है तो किसी भी पंजीयन की आवश्यकता नहीं है लेकिन अपने साथ सामाजिक समूह को जोड़ने एवं विश्वास के साथ कार्य करने की प्रतिपूर्ति के लिए पंजीयन आवश्यक है। अगर हम मोटे तौर पर जानें तो एनजीओ के पंजीयन से निम्न लाभ हो सकते हैं।
1 संस्था की कानूनी वैधता
2 समाज एवं सरकार के प्रति उत्तरदायित्व का भाव
3 संस्था की संपति की सुरक्षा
4 जन सहभागिता में वृद्वि
5 खाता निर्धारण में सुविधा
6 सदस्यों की भूमिका का निर्धारण
7 आयकर में छूट
8 अनुदान प्राप्त करने की पात्रता
09 शासकीय योजना अंतर्गत फंड ले सकने की पात्रता
10 सरकारी योजनागत कार्य में भागीदारी
11 प्रोजेक्ट प्लानिंग एवं सरकार को सलाह
12 विदेशी अनुदान की पात्रता
प्राथमिक रूप से एनजीओ को प्रारंभ करने हेतु आठ व्यक्तियों की आवश्कता होती है। सभी के आधार अनुसार ई-वेरिफिकेशन के साथ राज्य-जिला-ब्लाक स्तर पर पंजीयन किया जा सकता है। संस्था के निर्माण हेतु पद निर्धारण करना आवश्यक है सभी सदस्यों को अलग-अलग कार्य का निर्वाहन करना होता है।
एनजीओ खोल लेना जितना आसान है उतना ही इसे चलाना सरल नहीं है। इसके सुचारू संचालन हेतु विशेष मार्गदर्शन ,विभिन्न विभागों से सतत संपर्क,समाज के बीच अपनी उपस्थिति रखना एवं हर वर्ष संस्था के दस्तावेजों का संधारण करते रहना बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसलिए यह भी सलाह दी जाती हे कि जब भी एनजीओ खोले ऐसे माध्यम का सहयोग मार्गदर्शन लेकर खोलें जो समय-समय पर आपको गाइड कर सके।
अगले लेख में हम एनजीओ के दस्तावेजीकरण कानूनी प्रक्रिया एवं संस्था उचित क्रियान्वय हेतु सरकारी एवं गैर सरकारी अनुदान प्राप्त करने को लेकर बात करेंगे।
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