राष्ट्रीय हथकरघा दिवस: 400 दिव्यांग बनाते हैं पैठनी साड़ी
नासिक जिले के येवला अंतर्गत बडगाव बल्हे स्थित कापसे फाउंडेशन 400 से अधिक दिव्योगों के साथ मिलकर आर्थिक प्रगति का मार्ग बना रहे हैं। कथकरघा दिवस पर हम आज आपको इस संस्था के बारें में बता रहे जो पैठनी साड़ी को जीवंत किये हुए भी है। संस्था के बालकृश्ण कापसे बताते हैं हमारी संस्था दिव्यागों के सहयोग से यह कार्य कर रही है। इतना ही नहीं यह फाउंडेशन विभिन्न सामाजिक कार्य भी कर रहा है।
मालूम हो कि पैठनी साड़ी दक्षिण भारत की प्रमुख साडियों में से एक है। कई नामी हस्तीयां इस साड़ी का उपयोग कर रहे है। महाराष्ट्र की की पैठनी साड़ी नई दिल्ली में जी.20 शिखर सम्मेलन के दौरान भी प्रदर्षन किया गया था।
देश में हथकरघा उद्योग को सशक्त बनाने और दुनियाभर में हैंडलूम की पहचान बनाने के मकसद से हर साल 7 अगस्त का दिन भारत में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में मनाया जाता है। हैंडलूम हमारे भारत की सांस्कृतिक विरासत का अहम हिस्सा है या यों कहें कि पहचान है। पहवाने से लेकर घर की सजावट तक में हैंडलूम को अब खासतौर से शामिल किया जाने लगा है, जिससे इस इंडस्ट्री में रोजगार बढ़ा है और कारीगरों की स्थिति भी सुधर रही है।
हैंडलूम उद्योग बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार देने के अलावा महिलाओं को आत्म निर्भर बनने का भी मौका देता है। हमारे देश में ऐसे कई राज्य हैं, जो खासतौर से अपने हैंडलूम के लिए जाने जाते हैं, जैसे- आंध्र प्रदेश की कलमकारी, गुजरात की बांधनी, तमिलनाडु का कांजीवरम और महाराष्ट्र की पैठनी, मध्य प्रदेश की चंदेरी, बिहार का भागलपुरी सिल्क कुछ ऐसे हैंडलूम हैं, जो भारत ही नहीं, दुनिया भर में मशहूर हैं।
क्यों मनाया जाता है हथकरघा दिवस?
हथकरघा दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य लघु और मध्यम उद्योग को बढ़ावा देना है। इसके अलावा यह दिन बुनकर समुदाय को सम्मानित करने और भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में उनके योगदान को सराहने के मकसद से भी हथकरघा दिवस मनाया जाता है। यह बहुत जरूरी है कि हथकरघा से बनी चीजें देश- विदेश के कोने-कोने तक पहुंचे। इससे भारत को अलग पहचान तो मिलेगी ही साथ ही बुनकर समुदायों को भी आगे बढ़ने का मौका मिलेगा।