इस बार लोकसभा में 40 फीसदी वर्तमान सांसदों को नहीं मिलेगा भाजपा का टिकट ?
भोपाल । लोकसभा चुनाव में भाजपा ने टिकट के लिए जो कड़े प्रावधान तय किए हैं उसका असर पार्टी के 40 फीसदी सांसदों पर पड़ेगा। पार्टी ने इस बार बेहद कम अंतर से जीत हासिल करने वाले, लगातार तीन चुनाव जीतने वाले, 70 साल से अधिक उम्र वाले और अति सुरक्षित सीटों पर अपवाद स्वरूप ही वर्तमान सांसदों को उतारने का मन बनाया है। मिशन 2024 की तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटी पार्टी ने लगातार तीसरी जीत हासिल करने के लिए टिकट वितरण में सबसे अधिक सावधानी बरतने का फैसला किया है। पार्टी की योजना न्यूनतम अंतर से जीत वाली सीटों और कठिन सीटों पर मप्र विधानसभा चुनाव की तर्ज पर दिग्गज चेहरों को उतारने की है। मध्य प्रदेश की 29 संसदीय सीटों में से पांच रिक्त हैं। पार्टी ने प्रत्याशियों की तलाश के लिए सर्वे करवाना शुरू कर दिया है। पार्टी विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव से दो महीने पहले ही कई प्रत्याशियों की घोषणा कर सकती है। पहली सूची में आकांक्षी सीट यानी हारी या फिर कमजोर लग रही सीट के प्रत्याशी घोषित किए जा सकते हैं। कई सीटों पर बदल सकते हैं चेहरे कई सांसद ऐसे हैं, जो कमजोर प्रदर्शन के कारण दोबारा टिकट पाने से वंचित रह सकते हैं। जानकारों का कहना है कि इनमें ग्वालियर से विवेक नारायण शेजवलकर, सागर से राजबहादुर सिंह, रीवा से जनार्दन मिश्रा, भोपाल से प्रज्ञा सिंह ठाकुर, विदिशा से रमाकांत भार्गव, शहडोल से हिमाद्री सिंह, मंदसौर से सुधीर गुप्ता और खरगोन से गजेंद्र सिंह पटेल का नाम हो सकता हैं। इनकी जगह पार्टी नए चेहरों को मौका दे सकती है। भाजपा लोकसभा चुनाव में युवा और नए चेहरों को अवसर देकर यहां भी पीढ़ी परिवर्तन का संदेश देना चाहती है। इससे पहले भाजपा ने राज्यसभा के लिए भी ज्यादातर नए चेहरों पर ही दांव लगाया है। जानकारों का कहना है कि नए चेहरों में खासतौर से उन युवाओं को मौका मिल सकता है, जो आरएसएस की विचारधारा से जुड़े हैं। कमजोर सीटों पर पहले उम्मीदवार पार्टी मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव की तरह ही कमजोर सीटों पर उम्मीदवारी की घोषणा फरवरी महीने के पहले सप्ताह में कर देगी। ऐसे मंत्री जो राज्यसभा के सदस्य हैं, वरिष्ठ हैं उन्हें और उनके अलावा राज्यों के दिग्गज चेहरों को इन्हीं कमजोर सीटों पर उम्मीदवार बनाया जाएगा। लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी में जुटी भाजपा तीन या उससे अधिक बार के सांसदों को पहले ही विधानसभा चुनाव लड़वा चुकी है। इनमें फग्गन सिंह कुलस्ते छह बार के सांसद हैं। हालांकि, वे चुनाव हार गए। प्रहलाद पटेल पांच बार सांसद रहे हैं। जबलपुर से राकेश सिंह और सतना से गणेश सिंह चार-चार बार सांसद रह चुके हैं। प्रहलाद पटेल और राकेश सिंह को राज्य में मंत्री बना दिया गया। गणेश सिंह विधानसभा चुनाव भी नहीं जीत पाए, इसलिए उनकी सतना लोकसभा सीट से भाजपा किसी नए चेहरे पर दांव लगा सकती है। सांसद के रूप में तीन कार्यकाल पूरा करने वालों में केंद्रीय कृषि मंत्री रहे नरेंद्र सिंह तोमर अब मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं। इसी तरह होशंगाबाद से सांसद रहे राव उदय प्रताप सिंह को भी प्रदेश में मंत्री बना दिया गया है। टीकमगढ़ सांसद और केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार और राजगढ़ से रोडमल नागर की दावेदारी पर भी विचार चल रहा है। वीरेंद्र कुमार भी छह बार सांसद रहे हैं। तीन बार के सांसदों में धार के छतर सिंह दरबार भी हैं। रोडमल नागर दूसरी बार के सांसद हैं, लेकिन क्षेत्र में उनका विरोध है। 10 सीटों पर अधिक फोकस विधानसभा चुनाव में मिली बड़ी जीत के बाद भाजपा लोकसभा चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार है। एक तरफ प्रचार तो शुरू हो चुका है, इसके साथ-साथ उम्मीदवारों को लेकर भी मंथन तेज कर दिया गया है। पार्टी इस बार प्रदेश में कांग्रेस का सूपड़ा साफ करना चाहती है। यानी प्रदेश में लोकसभा की सभी 29 सीटों को जीतने का लक्ष्य बनाया है। मिशन 29 के लिए भाजपा का फोकस उन 10 लोकसभा क्षेत्रों पर है, जहां की विधानसभा सीटों पर पार्टी का प्रदर्शन कमजोर रहा है। अब भाजपा उस समय अपनी लिस्ट लाने की तैयारी कर रही है जह इंडिया गठबंधन में तो सीट शेयरिंग को लेकर ही कोई फैसला नहीं हो पाया है। अभी तक ये भी साफ नहीं है कि कौन सी पार्टी कहां कितनी सीटें लडऩे वाली है। अंदरूनी झगड़ों की वजह से कई राज्यों में मामला फंसता भी दिख रहा है। भाजपा उसी स्थिति का फायदा उठाते हुए जनता के सामने संदेश देना चाहती है कि वो ज्यादा तैयार है और चुनावी पिच पर आक्रमक अंदाज में बैटिंग करने वाली है। इसी वजह से इस बार माना जा रहा है कि भाजपा पिछली बार से भी ज्यादा सीटों पर चुनाव लडऩे वाली है।