मप्र में कमलनाथ ने बदली अपनी चुनावी रणनीति,इन नेताओं को फ्रंट पर उतारा
भोपाल: मध्य प्रदेश में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। एमपी में पहले कांग्रेस में न केवल केंद्रीय नेतृत्व का दखल बढ़ रहा है बल्कि पकड़ भी धीरे-धीरे बढ़ रही है। विभिन्न समितियां में नए सदस्यों की एंट्री इसका एहसास भी करा रही है। राज्य में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी ने चुनाव अभियान समिति और स्क्रीनिंग कमेटी का गठन किया तो ऐसा लगा जैसे कई नेताओं को इससे बाहर रखा गया है। कुछ खास लोगों का वजन ज्यादा रहने वाला है।
इसकी वजह भी थी क्योंकि इन समितियां में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव, सुरेश पचौरी, पूर्व मंत्री जीतू पटवारी और उमंग सिंगार जैसों को स्थान नहीं मिला था। वक्त गुजारने के साथ स्थितियां बदली और समितियों में नए सदस्यों का प्रवेश बढ़ने लगा।
इसकी वजह भी थी क्योंकि इन समितियां में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव, सुरेश पचौरी, पूर्व मंत्री जीतू पटवारी और उमंग सिंगार जैसों को स्थान नहीं मिला था। वक्त गुजारने के साथ स्थितियां बदली और समितियों में नए सदस्यों का प्रवेश बढ़ने लगा।
जीतू पटवारी का कद बढ़ा
पहले स्क्रीनिंग कमेटी में तीन लोगों को स्थान दिया गया। इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी, अरुण यादव, पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का नाम आया तो वहीं अब चुनाव अभियान समिति में सह अध्यक्ष के तौर पर जीतू पटवारी की नियुक्ति हुई है।
इतना ही नहीं इससे पहले राज्य में शुरू हुई जन आक्रोश यात्रा में भी इन नेताओं का कद बढ़ा है और जिम्मेदारियां भी सौंपी गई है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है, कांग्रेस हाईकमान काम के बंटवारे को बड़ी सूझबूझ से कर रही है। एक तरफ जहां रणदीप सिंह सुरजेवाला को प्रदेश प्रभारी बनाकर भेजा गया है तो वहीं स्क्रीनिंग कमेटी का प्रमुख भंवर जितेंद्र सिंह को बनाया गया है।
तीन नेताओं को पूरा भरोसा
कुल मिलाकर संगठन चलाने का पूरा काम सुरजेवाला के सुपुर्द किया जा रहा है तो वहीं चुनाव प्रबंधन का सारा दारोमदार कमलनाथ के कंधों पर रहने वाला है। स्क्रीनिंग कमेटी का प्रमुख भंवर जितेंद्र सिंह भी टिकट बंटवारे पर अहम रोल निभाएंगे। इसके साथ ही दूसरी पंक्ति के नेताओं को भी जिम्मेदारी और जवाबदारी सौंपी जा रही है।
टकराव दूर करने की कोशिश
पार्टी को लगता है कि ऐसा करने से किसी भी तरह का टकराव नहीं होगा और संगठन व्यवस्थित तरीके से चलने के साथ चुनाव प्रचार भी तेज गति पकड़ सकेगा। इससे इस बात के तो संकेत मिल ही रहे हैं कि राज्य में केंद्रीय नेतृत्व अपना पूरा दखल रखने वाला है।