"ध्यान " से आत्मनिर्भर पंचायत के पायलट परियोजना की चुनौति एवं समाधान
क्या सरकारों को उस परियोजना को अपनाना चाहिए जिसकी डिजाइन एवं अवधारणा का क्रियान्वयन किसी सामुदायिक संगठन के द्वारा किया गया हो। यह एक चुनौति भरा कदम हो सकता है क्योंकि स्वैच्छिक संगठनों में ऐसी समझ कम एवं प्रशासन में इस तरह के कार्य में इच्छाशक्ति का अभाव देखा जाता है। हालांकि इसके सफलता के भी कई उदाहरण हैं जैसे कि 108 आपातकालीन प्रतिक्रिया सेवाए स्वयं सहायता समूह और आशा कार्यकर्ता। एल्डर लाइन सेवा इस एडॉप्शन एंड स्केल अप बाय गवर्नमेंट मॉडल शुलभ शौचालय, अमूल डेयरी प्रबंधन जो प्रयास के विस्तार में उदाहरण के तौर पर सहायक सिद्व हो सकते हैं।
इन दिनों मध्यप्रदेश सरकार पंचायतों को आत्मनिर्भर बनाने की एक परियोजना पर चिंतन कर रही है और इस चिंता के हल को लेकर योग - ध्यान का सहारा लिया जा रहा है। हालांकि ध्यान एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है, सोचने में अजीब लगता है कि ध्यान से भला कैसे पंचायतों को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है, लेकिन ध्यान की शक्ति अपार है जो मन एवं भटके जन को एकात्मकता के भाव में पिरोकर सफलता की ओर अग्रेसित कर सकती है।
किसी कार्यक्रम को बनाना एवं उसे विस्तार देने चुनौति भरा कार्य है लेकिन इस चुनौति भरे सफर में कोई प्रयोगवादी सहारा मिल जाए तो चुनौतियों का हल संभव है।
आज इस आलेख में हम बात कर रहे हैं मप्र सरकार द्वारा तेलंगाना राज्य के हैदराबाद स्थित कान्हा शांतिवनम एक ऐसी सामाजिक संस्था जो प्रायोगिक रूप से आत्मनिर्भरता का सुपर माॅडल है के मप्र सरकार से अनुबंध एवं उसके प्रदेश की ग्राम पंचायतों में कियान्वय के बारें में ।
कान्हा के बारे में
1,400 एकड़ में फैला कान्हा शांतिवनम हैदराबाद शहर के केंद्र से लगभग 40 किमी दूर स्थित है। यह कभी बंजर, पथरीला, सूखा और सूखा-प्रवण क्षेत्र था, जो अब आधा मिलियन पेड़ों वाला एक हरा-भरा स्थान बन गया है। यह पूरी तरह से आत्मनिर्भर और टिकाऊ पारिस्थितिकी तंत्र है। यह केंद्र 40,000 से अधिक लोगों की मेजबानी कर रहा है, जिनकी रसोई एक दिन में 1,00,000 लोगों के लिए भोजन बना सकती है।
कान्हा शांति वनम के स्वयंसेवकों की कड़ी मेहनत, श्रमदान और प्रतिबद्धता के परिणामस्वरूप लगभग छह एकड़ में वर्षा वन उगाने का असंभव कार्य पूरा हो चुका है। वर्षा वन न केवल कुछ दुर्लभ वृक्ष प्रजातियों का घर है, बल्कि कई प्रवासी पक्षियों का घर भी बन गया है, जो फलों, मेवों और बीजों के कारण बड़ी संख्या में शरण लेते हैं। लुप्तप्राय प्रजातियों जैसे रेड सैंडर्स, और साइजीगियम ट्रैवनोकोरियम (केरल जामुन) के टिशू कल्चर के उत्पादन के अलावा, चंदन, सागौन और अन्य प्रजातियों के ऊतकों का उत्पादन कर स्वयसेवी संस्थाओं एवं सरकार को ऐसे कार्य करने प्रेरत कर रहा है।
मप्र सरकार एवं कान्हा शांतिवनम के अनुबंध के बारे में
21 मार्च 2023 को मप्र सरकार ने कृषि उद्यम उन्नति हेतु हार्टफुलनेस इंस्टीट्यूट, हैदराबाद के साथ एक समझौता किया है, इस समझौते के तहत मुख्यमंत्री सामुदायिक नेतृत्व विकास कार्यक्रम को मजबूत करना है। साथ ही कृषि और ग्रामीण आर्थिक सशक्तिकरण से संबंधित पाठ्यक्रम को फिर से डिजाइन करके, टिकाऊ प्रथाओं को बढ़ावा देना है। पंचायतें आगामी 5 से 10 साल में किस तरह आत्मनिर्भर हो सकेंगी इस को लेकर परियोजना तैयार की जा रही है, साथ ही ध्यान के माध्यम से स्वैच्छिक संगठनों , समूहों, उद्यमियों , एवं लोक सेवकों को एकात्मकता भाव पैदा करने प्रदेश की हर पंचायत में ध्यान कार्यक्रम जारी है। सरकार मप्र जन अभियान परिषद के समन्वय में इसे पायलेट परियोजना के रूप में कुछ जिलों के ब्लाक से प्रारंभ कर रही है। रायसेन जिले के औबेदुल्लागंज ब्लाक में इसे पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
समुन्नति कार्यक्रम से आजीविका से जोड़ने की योजना
“बहुआयामी ग्रामीण विकास और आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए एमपी जन अभियान परिषद और हार्टफलनेस संस्था का सहयोग करना वास्तव में एक बड़ा कदम है। साथ ही, इस साझेदारी को सुगम बनाने के लिए हार्टफुलनेस संस्थान एक मजबूत पाइपलाइन का कार्य कर रही है। विकसित अच्छी कृषि पद्धतियों के ज्ञान एवं कृषि उत्पादों को बाजार की पहुंच तक लाना एक बड़ी चुनौति के जन अभियान परिषद के एक बड़े नेटवर्क का उपयोग किसान उत्पाद संगठनों के विकास एवं मैन्यूफैक्चरिग यूनिट, मार्केटिंग आदि में मानव पूंजी के रूप में जमीनी स्तर पर सामाजिक परिवर्तन और सामुदायिक नेताओं के लिए उत्प्रेरक का निर्माण करने में सहायक हो सकता है।
क्या आएंगी चुनौति
कार्यक्रम प्रबंधकों एवं फील्ड टीमों के साथ बेहतर संवाद से ही इस कार्यक्रम को सफल बनाया जा सकता है। वर्तमान में सिर्फ ध्यान प्रक्रिया को ही समुदाय के बीच रखा जा रहा है जिससे पहले से तय ढांचा की सोच से ग्रसित व्यक्ति तत्काल लाभ की भावना से व्यवहारिक रूप से बाधा का कारण बन सकता है। कार्यरत टीम को इस बात का भी ध्यान रखने की आवश्कता होगी कि वे टारगेट समूहों की प्राथमिकताओं को जानते हुए समझते हुए विस्तार पर भी चर्चा करते हुए आगे बढ़ें।
क्या आएगा बदलाव?
1 G-20 , C-20 के गोल अनुसार एनजीओ विकास गतिविधियों में सहभागी बन सकेगे
2- ग्रामों में नशा एवं डिफेंस की स्थिति में सुधार होगा
3 कान्हा की तर्ज पर आदर्श ग्राम एवं आत्मनिर्भर ग्राम के रास्ते निकलेगे
4 पंचायतें स्वयं रोजगार देने में सझम हो सकेगी।
5 स्थानीय उत्पादों को स्थानीय समूहों के माध्यम से ही वैश्विक बाजार के लिए तैयार किया जा सकेगा।
6 कृषि आधारित व्यवसाय से स्थानीय युवाओं को पलायन से रोका जा सकेगा।
7 सामाजिक, राजनीतिक-लैंगिक समानता पर जो दिया जा सकेगा।
8 समुदाय के समग्र स्वास्थ्य, भलाई और खुशी के इंडेक्स में सुधार हो सकेगा।