क सोशल डेटा अंकेक्षण के अनुसार मप्र के मात्र 36 प्रतिशत ग्रामों में ही कचरा प्रबंधन का कार्य हुआ है। सोचने वाला पहलू यह भी है कि ग्रामों में कचरा को डंपिंग करना या निपटाना नहीं हैं इसके बाद भी सरकारें ग्रामीण अंचल में वेस्ट टू वेल की दिशा में कोई कदम उठाते नहीं दिखती है। 
सरपंचों को समझ विकसित करनी होगी
अपशिष्ट प्रबंधन को लेकर सरपंचों का ध्यान कम है,इसकी वजह या तो पंचायत पर उनका नियंत्रण नहीं है या अज्ञानता के चलते सरपंचों के रिश्तेदार या पति ही बागडोर संभाल रहे हैं। चिंता की बात तो यह है कि कई पंचायतों में पढ़ी-लिखी सरपंच होने के बाद भी सामाजिक तानाबाना उनकी प्रतिभा की बली ले रहा है। कचरा प्रबंध जैसे विषय तो दूर की बात कई सरपंचों को तो यह भी पता नहीं होता कि आखिर पंचायत में क्या हो रहा एवं कौन सी योजनाएं हैं। 
गांव बन सकते हैं जैविक खाद बनाने के हब
सरकारें राजनीति एवं वोट बैक के चलते जनता को फ्र्री बांट-बांट कर खुद कर्जदार हो रही है। सरकारे के अंदर बैठे जनप्रतिनिधियों को ऐसे विकास से कोई मतलब नहीं जो सतत हो एवं समुदाय को हमेशा आर्थिक रूप से मजबूत करने वाला हो। 
सरपंच चाहे तो ग्राम के अपशिष्ट पदार्थ से जैविक खाद से लेकर जैविक गैस तक को लेकर पहल कर सकता है। वर्तमान में कच्चे गढडों में कचरा प्रबंधन किया जाता है। जो स्थानीय लोगों के लिए कई बीमारी का वाहक हो सकता है। 

कचरा प्रबंधन को लेकर सामुदायिक पहल नहीं
घर के सामने कचरे से या गांव के करीब बने घूड़ों के अनुचित प्रबंधन से नागरिको द्वारा लाखो रूपये दवाइयों पर खर्च कर दिये जा रहे हैं, लेकिन बीमारी कहां से फैल रही इस के मूल को न सरकारे पकड़ रही हैं न समुदाय। 
मानसिंकता में बदलाव जरूरी
राजनेता तो कमिशन खाने बने है? ऐसा हम नहीं ग्रामीण कहते हैं ऐसे में अब समुदाय को समझना होगा कि कचरे को कहीं भी फेंक देने या दफना देने से खतरा हमें हैं। अब समुदाय खुद समझे की हमें नकली दवाओं के कारोबार को रोकने एवं अस्पताल जाने से बचने अपने इको सिस्टम को मजबूत करें। 

  • ग्राम पंचायत में अपशिष्ट प्रबंधन जरूरी क्यों
  • सविधान की ग्यारवी सूची -1999 अनुसार प्रबंधन जरूरी
  • ठोस अपशिष्ठ प्रबंधन नियम 2016 की प्रतिपूर्ति के लिए
  • ओडीएफ- प्लस‍ के  ‍रूप‍  में इसे लागू किया जाए

kachra prabandhan
 

न्यूज़ सोर्स : Yogendra Patel {लेखक समाजशास्त्री हैं)