मप्र के 29 फीसदी पटवारियों की नौकरी खतरे में
भोपाल । मप्र में उन पटवारियों को नौकरी से निकाला जाएगा जिन्हें कंप्यूटर का ज्ञान नहीं है। गौरतलब है कि राज्य शासन ने 2017 में नियुक्त पटवारियों के लिए कम्प्यूटर दक्षता प्रमाण-पत्र (सीपीसीटी) अनिवार्य किया था। लेकिन तीन साल का अतिरिक्त समय मिलने के बाद भी करीब 29 फीसदी पटवारी कम्प्यूटर दक्षता का प्रमाण-पत्र हासिल नहीं कर पाए हैं। अब सरकार ने ऐसे पटवारियों की जानकारी तहसीलों से मांगी है। आयुक्त भू-अभिलेख ने अब ऐसे पटवारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
गौरतलब है कि राज्य शासन ने पटवारियों की कार्य प्रणाली और सेवा को डिजिटल कर दिया है। अब खसरे सहित अन्य रेकॉर्ड ऑललाइन हो गए हैं। ऐसे में 2017 के बाद भर्ती पटवारियों के लिए सीपीसीटी अनिवार्य कर दिया गया है। 2017 में बहुत कम उम्मीदवार ऐसे थे जिन्हें कम्प्यूटर दक्षता और हिन्दी टाइपिंग आती थी। इस कारण से पटवारी भर्ती परीक्षा 2017 में यह प्रावधान दिया गया था कि चयन होने पर दो साल के अन्दर सीपीसीटी परीक्षा उत्तीर्ण करना होगा। एसएलआर कार्यालय से ऐसे पटवारियों की जानकारी मांगी गई है। प्रभारी एसएलआर लक्ष्मी वर्मा ने बताया, हर 6 माह में सीपीसीटी परीक्षा होती है, जो पास होते हैं वे अपना प्रमाण-पत्र तहसील कार्यालय की स्थापना शाखा में दे देते हैं। उनकी सर्विस बुक भी तहसीलों में होती है। जानकारी आते ही आगे की कार्रवाई प्रस्तावित करते हुए नस्ती कलेक्टर को भेज दी जाएगी।
पटवारियों का काम ऑनलाइन
गौरतलब है कि पटवारियों का पूरा काम ऑनलाइन हो गया है। उसके बाद भी अधिकांश पटवारियों को कम्प्यूटर का ज्ञान नहीं है। ऐसे में आयुक्त भू-अभिलेख ने कम्प्यूटर दक्षता और हिन्दी टाइपिंग न जानने वालों पर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। संबंधित तहसीलों से ऐसे पटवारियों की जानकारी मांगी गई है। चूंकि हर 6 माह में सीपीसीटी परीक्षा होती है। इसमें पास होने वाले तहसील कार्यालय की स्थापना शाखा में अपना प्रमाण-पत्र जमा कराते हैं। दूसरी ओर राज्य में 11622 पटवारी हल्कों में तैनात अधिकांश पटवारियों को कम्प्यूटर पर हिन्दी टाइपिंग करना तो दूर कम्प्यूटर चलाना तक नहीं आता। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश के 11 जिले में ही तैनात 582 पटवारियों में 26.85 प्रतिशत 1225 पटवारी कम्प्यूटर नहीं जानते।
कुछ ने रख लिए निजी कर्मी
राज्य सरकार ने पटवारियों की कार्य प्रणाली व सेवा डिजिटल कर दी है। उसके बाद भी कम्प्यूटर से दूरी रखने वाले पटवारियों ने कई जिलों में समानांतर व्यवस्था बना ली। ग्वालियर, भिंड में उन्होंने कम्प्यूटर चलाने निजी कर्मी लगा रखे हैं। सरकार ऐसा करने की इजाजत नहीं देती, लेकिन पटवारियों का दावा है, इसके लिए वे अपनी सैलरी से तनख्वाह देते हैं। मामला जो भी हो, सच्चाई यह है कि बिना कम्प्यूटर ज्ञान के सरकार का जमीन और राजस्व संबंधी काम पूरी तरह डिजिटल करना फिलहाल मुश्किल है।
निजी एजेंसियों की ले रहे मदद
प्रदेश में पुराने पटवारियों को कम्प्यूटर की जानकारी नहीं है। उन्हें सीमांकन के लिए निजी एजेंसियों की मदद लेनी पड़ती है। राजधानी भोपाल में 928 पटवारियों में 237 फील्ड में तैनात हैं। इनमें 70 प्रतिशत यानी 166 नई उम्र के हैं। वे तो कम्प्यूटर से सीमांकन करना जानते हैं, लेकिन 30 फीसदी (71) को टाइपिंग नहीं आती। इंदौर में 337 पटवारी हैं। इनमें 170 पुराने हैं। इनमें 51 को ही टाइपिंग आती है। बाकी हाथ से रिपोर्ट बनाते हैं। 286 को टाइपिंग नहीं आती। नए 47 प्रतिशत टाइपिंग जानते हैं। ऐसी ही स्थिति सागर की भी है। 578 पटवारियों में 350 कम्प्यूटर जानते हैं, पर 170 को टाइपिंग नहीं आती। ग्वालियर में 296 पटवारियों में 256 कम्प्यूटर जानते हैं। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र में तैनात पटवारियों ने अलग से सहयोगी रख रखे हैं। भिंड में 473 पटवारियों में 200 कम्प्यूटर नहीं चला पाते। 50 से अधिक पटवारियों ने अलग से सहयोगी रख रखे हैं।