उद्योगों से निकलने वाले गंदे पानी का सही उपचार नहीं ,सिंचाई के पानी से कैंसर का खतरा

देशभर की नदियां सिवेज एवं उद्योगों के पानी से प्रदूषित हो रही है। उद्योगों के सीएसआर का पैसा कौन डकार रहा इसकी भनक सरकार को भी नहीं है। मप्र के मण्डीदीप में गोदर नदी एवं बेतवा नदी गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है। अब इन नदियों के पानी से खेत में उग रही फसलों के उपयोग से मानव बीमारी का खतरा मण्डरा रहा है। उद्योग धंधों को बढ़ाने के साथ आज उद्योगों से निकलने वाले पानी की गुणवक्ता चिंता का विषय बनीं हुई है,किंतु इस कार्य को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा हैं । औद्यौगिक घराने इस मामले पर गोलमोल जवाब दे रहे हैं। इधर समुदाय बीमारी की चपेट में अस्पतालों के चक्कर लगा रहा किंतु नदियों तालाबों को बचाने में सरकारी भरोषे की आस में आगे नहीं आ रहा है।
MP प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीपीसीबी) की 2023-24 की वार्षिक रिपोर्ट ने राज्य की नदियों की चिंताजनक स्थिति उजागर की है। रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश की 89 नदियों में से 60 धार्मिक स्थलों के पास का पानी इतना प्रदूषित है कि आचमन, स्नान या हाथ धोने तक के लायक नहीं है।
इधर वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट 2024’ हमारी चिंता को और बढ़ा देता है कि अब सिंचाई के लिए भी जो पानी उपलब्ध है, उसकी गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा तैयार की गई ‘वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट 2024’ जल शक्ति मंत्री सीआर पाटील ने हाल ही में जारी किया। ‘वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट 2024’ को केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) ने तैयार किया है। भूजल गुणवत्ता का आकलन 15,200 निगरानी स्थलों से प्राप्त डेटा के आधार पर किया गया है।
रिपोर्ट की मुख्य बातें -
1 - भारत के 440 जिलों के भूजल में नाइट्रेट का उच्च स्तर पाया गया है, 20 प्रतिशत नमूनों में नाइट्रेट की मात्रा 45 मिलीग्राम प्रति लीटर(विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ और भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा पेयजल के लिए निर्धारित मानक) की सीमा को पार कर गई। शरीर में नाइट्रेट का उच्च स्तर मेथेमोग्लोबिनेमिया का कारण बन सकता है, जिसे ब्लू बेबी सिंड्रोम भी कहा जाता है।
2 - केंद्रीय भूजल बोर्ड की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में भूजल के 12.5 प्रतिशत नमूने उच्च सोडियम की मौजूदगी के कारण सिंचाई के अनुकूल नहीं पाए गए हैं। इनमें सबसे अधिक संकट राजस्थान में है जहां 12 प्रतिशत से अधिक सैंपल कसौटी पर फेल हो गए हैं।
3. रिपोर्ट के अनुसार भारत के भूजल में कैल्शियम सबसे प्रमुख धनायन (Cations) है, उसके बाद सोडियम और पोटेशियम का स्थान है।
4 - भारत के भूजल में बाइकार्बोनेट सबसे अधिक मौजूद ऋण-आयन (Anions) है, उसके बाद क्लोराइड और सल्फेट का स्थान है.
5. पूर्वोत्तर राज्यों में भूजल के 100 प्रतिशत नमूने सिंचाई के लिए उत्कृष्ट श्रेणी में हैं ।
6 - देश में कुल वार्षिक भूजल पुनर्भरण (ग्राउंड वाटर रिचार्ज) 446.90 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) आंका गया है. देश में भूजल निकासी का औसत स्तर 60.47% है।
7 - पूरे देश में सोडियम का स्तर 10.43 प्रतिशत सैंपलों में यह 2.5 प्रतिशत से अधिक है। सोडियम का यह स्तर पानी को सिंचाई के लिए अनुपयुक्त बना देता है, क्योंकि इससे मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित होती है। अधिक सोडियम से मिट्टी की सतह पर सीलिंग बन जाती है और नमी जमीन के अंदर प्रवेश नहीं कर पाती।
8 - रिपोर्ट के अनुसार, 3.55 प्रतिशत नमूने में आर्सेनिक संदूषण पाया गया, विशेष रूप से गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के बाढ़ के मैदानों में। WHO के अनुसार, पीने के पानी और भोजन से आर्सेनिक के दीर्घकालिक संपर्क से कैंसर और त्वचा संबंधी घाव हो सकते हैं।
9 - राजस्थान, हरियाणा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में फ्लोराइड की सांद्रता स्वीकार्य सीमा से अधिक है। पेयजल में फ्लोराइड की अधिकता से फ्लोरोसिस, गठिया, हड्डियों की क्षति आदि होती है।
10 - आर्सेनिक, नाइट्रेट, सोडियम, यूरेनियम, फ्लोराइड आदि की अधिकता के कारण भूजल की खराब गुणवत्ता केवल साफ-स्वच्छ पेयजल की चिंताएं ही नहीं बढ़ा रही, बल्कि यह सिंचाई के लिए भी नुकसानदेह साबित हो रहा है।
सिंचाई के लिए भी भूजल की गुणवत्ता गिर रही है, क्या हैं कारण
हां, सिंचाई के लिए भी भूजल की गुणवत्ता गिर रही है। इसकी वजहें ये हैं:
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उद्योगों से निकलने वाले गंदे पानी का सही तरीके से उपचार न होना
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ज़रूरत से ज़्यादा उर्वरकों का इस्तेमाल करना
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शहरीकरण का बढ़ना
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सीवेज प्रबंधन में लापरवाही
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कचरा
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सिंचाई का खराब प्रबंधन
भूजल की गुणवत्ता में गिरावट से मिट्टी में लवण और रसायन जमा हो जाते हैं, जिसे लवणीकरण या जलभराव कहते हैं, इससे मिट्टी कम उपजाऊ हो जाती है और फसलों की पैदावार कम होती है।
और अंत में
रिपोर्ट साफ-साफ यह संकेत देती है कि पेयजल के बाद सबसे महत्वपूर्ण सिंचाई का पानी के गुणवत्ता लगातार प्रभावित हो रही है। नीति-निर्माताओं को भूजल सुरक्षा को प्राथमिकता देना होगा। क्योंकि भूजल की सुरक्षा से समाज, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण की सुरक्षा जुड़ी हुई है। भूजल उपयोग की निजी और सामाजिक लागतों को रेखांकित करने के लिए उच्च-स्तरीय राजनीतिक कार्रवाई की आवश्यकता है।