रासायनिक खेती से मिट्टी और मनुष्य की सेहत को हुए जबरदस्त नुकसान से सबक लेकर अब पूरी दुनिया में जैविक खेती की बात जोर पकड़ने लगी है. मोदी सरकार की पहल पर भारत में जैविक खेती को लेकर तमाम अभि‍नव प्रयोग भी हो रहे हैं. इस कड़ी में प्रदेश में समूह बनाकर जैविक खेती करवाई जाएगी। पांच-पांच सौ किसानों के समूह बनाए जाएंगे। इन्हें खेती करने के तौर-तरीके सिखाने के साथ उपज की ब्रांडिंग और मार्केटिंग की व्यवस्था भी बनाई जाएगी। इसके लिए सरकार आउटसोर्स एजेंसी का चयन करेगी। इसका जिम्मा किसानों को प्रशिक्षण देने के साथ उपज की ब्रिकी का प्रबंध करना होगा। 

किसानों को प्रति हेक्टेयर मिलेंगे पांच-पांच हजार रुपये

किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रति हेक्टेयर पांच-पांच हजार रुपये तीन वर्ष तक दिए जाएंगे। इन्हें कहीं से भी सामग्री लेने की छूट रहेगी। तीन वर्ष तक किसान द्वारा की जाने वाली खेती का पूरा रिकार्ड रखा जाएगा। जैविक उत्पाद का प्रमाणीकरण भी करवाया जाएगा, ताकि उपज का अच्छा मूल्य मिले।

उवर्रक और रसायनिक पदार्थों के उपयोग से खेती की लागत बढ़ती जा रही है। मिट्टी की उर्वरा क्षमता भी प्रभावित हो रही है। अत्याधिक मात्रा में खाद और कीटनाशकों के उपयोग से उपज की गुणवत्ता पर भी असर पड़ रहा है, इसलिए सरकार भी जैविक खेती को प्रोत्साहित कर रही है।

परंपरागत खेती पर जोर

भारत सरकार ने मृदा उर्वरता में सुधार एवं स्वास्थ्यप्रद कृषि उत्पाद के लिए परंपरागत कृषि विकास योजना के प्रभावी क्रियान्वयन पर जोर दिया है। राज्य सरकार ने तय किया है कि किसानों का समूह ऐसे बनाया जाएगा जिससे 20 हेक्टेयर का क्षेत्र निर्मित हो सके। 10 से 25 समूहों को मिलाकर एक क्लस्टर बनेगा, जो अधिकतम 500 हेक्टेयर का होगा।

दो हेक्टयर भूमि तक दिया जाएगा लाभ

किसान के पास उपलब्ध भूमि में से अधिकतम दो हेक्टेयर भूमि तक के लिए लाभ दिया जाएगा। सचिव कृषि एम सेलवेंद्रन का कहना है कि योजना में लघु और सीमान्त किसानों को प्राथमिकता दी जाएगी। क्षेत्र भी ऐसे चयनित किए जाएंगे, जहां परंपरागत तरीकों से खेती की जाती है और उर्वरकों व रसायनों का कम प्रयोग किया जाता है।

कब क्या करना है यह भी बताएंगे

जैविक खेती कार्यक्रम के संचालक के लिए एक क्लस्टर समन्वयक नियुक्त किया जाएगा। 100 हेक्टेयर क्षेत्र वाले पांच समूहों के लिए प्रेरक रहेगा। ये जैविक खेती, जैविक प्रमाणीकरण, बायो इनपुट निर्माण, वेल्यू एडिशन एवं मार्केटिंग संबंधित प्रशिक्षण दिलवाएंगे।

इसके लिए कृषि विभाग, अशासकीय संस्थाओं के विशषज्ञों का भी सहयोग आवश्यक रुप से लिया जाएगा। जैविक खेती का व्यवहारिक ज्ञान दिलाने के लिए अन्य राज्यों और उत्कृष्ट किसानों के खेतों का भ्रमण भी करवाया जाएगा।

लगातार रखी जाएगी नजर

जैविक खेती के लिए चयनित किसानों पर लगातार नजर रखी जाएगी। प्रत्येक फार्म हिस्ट्री संधारित की जाएगी। आंतरिक निरीक्षण होगा और उपज का मूल्यांकन होगा। साथ ही जैविक उत्पादों के ब्रांड निर्माण के लिए व्यापक विपणन कार्ययोजना तैयार की जाएगी। विशिष्ट बाजारों में स्टाल लगाने और खुदरा व्यापारी के साथ सीधे बाजार जुड़ाव की सुविधा के लिए आयोजन किए जाएंगे।

जैविक उत्पाद में मप्र की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत

देश के कुल जैविक उत्पाद में मध्य प्रदेश का हिस्सा सर्वाधिक 40 प्रतिशत है। लगभग 17 लाख हेक्टेयर में एक लाख से अधिक किसान जैविक खेती कर रहे हैं। इसमें सोयाबीन, गेहूं, चना, मसूर, तुअर, उड़द, बाजरा, रामतिल, मूंग, कपास, कोदो-कुटकी आदि फसल उपज शामिल है।

प्रदेश में यहां होती है अधिक जैविक खेती

मंडला, डिंडोरी, बालाघाट, छिंदवाड़ा, बैतूल, कटनी, उमरिया, अनूपपुर, उमरिया, दमोह, सागर, आलीराजपुर, झाबुआ, खंडवा, सीहोर, श्योपुर और भोपाल।

खेती क्यों बनी घाटे का सौदा

छतरपुर जिले के नौगांव में आवर्तनशील खेती के दार्शनिक पहलू पर काम कर रहे प्रयोगधर्मी किसान भगवान सिंह परमार ने बताया कि खेती को व्यवसाय का रूप देना ही किसानों की बर्बादी का कारण बना है. उन्होंने कहा कि इसकी वजह से खेती की लागत के मामले में किसान अब पूरी तरह से बाजार पर आश्रित हो गया है. इस कारण से खेती की लागत में तेजी से इजाफा हुआ है. जबकि पारंपरिक तौर पर खेती की लागत के मामले में किसान पहले आत्मनिर्भर था, क्योंकि खाद, बीज और पानी के लिए उसे बाजार पर निर्भर नहीं रहना पड़ता था.

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