भारत को अपनी पहली महिला स्नातक प्राप्त करने से लेकर देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देने वाले श्रम बल में लैंगिक समानता प्राप्त करने के लिए 140 साल का समय काफी होगा,लेकिन 2024 तक  यह दुखद रूप से अभी भी सच नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के आंकड़ों की माने तो भारत में रोजगार योग्यता में लैंगिक अंतर 50.9% है, जिसमें श्रम बल में केवल 19.2% महिलाएं हैं, जबकि पुरुषों का प्रतिशत 70.1% है।  

अब भारत की वर्तमान स्थिति पर नजर डाले तो अभी भी महिलाएं घुंघट से बहार नहीं निकलीं हैं अगर निकलीं भी है तो उनके कामकाज को  ज्यादातर  पुरूष ही  देख रहे हैं। जानकारों का मानना है कि अगर ऐसे ही हालात रहे तो आर्धिक राजनीतिक एवं सामाजिक मंच पर समानता लाने भारत को और कई साल लग जाएंगे। 

हालांकि इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, उद्यमिता में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी से 2025 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 0.7 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि होने की संभावना है।

अपना खुद का व्यवसाय स्थापित करके और चलाकर, महिला उद्यमी न केवल अन्य महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा कर सकती हैं, बल्कि उन्हें कार्यबल में प्रवेश करने के लिए प्रेरित भी कर सकती हैं। इससे, बदले में, महत्वपूर्ण आर्थिक विकास हो सकता है। हालाँकि, भारत में कई ऐसे कारक हैं जो महिलाओं को ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में वेतनभोगी काम करने से रोकते हैं।

इस बीच इस रिपोर्ट से भी चिंता जाहीर होती है कि  भारत की महिला श्रम भागीदारी दर पिछले दो दशकों में आश्चर्यजनक रूप से घट रही है, जो 2005 में 32% से गिरकर 2021 में 19% हो गई है।

यह गिरावट का रुझान विभिन्न सामाजिक वर्गों, धर्मों और आयु समूहों की महिलाओं पर लागू होता है, जिसमें ग्रामीण महिलाएँ भी शामिल हैं जो आय पर सबसे अधिक निर्भर हो सकती हैं।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के आंकड़ों के अनुसार, फरवरी 2022 में ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दर में तेज वृद्धि हुई और यह 9.2 प्रतिशत हो गई, जबकि शहरी क्षेत्रों में पिछली प्रवृत्ति में उलटफेर हुआ और यह 7.5 प्रतिशत पर पहुँच गई। आँकड़ों के बावजूद, 15-29 वर्ष की आयु की चार में से एक शहरी महिला रोजगार हासिल करने में असमर्थ है।

क्या हैं कारण ?

  • अवैतनिक श्रम और असुरक्षित रोजगार
  •  अवैतनिक गतिविधियों में महिलाओं के योगदान
  • निजी क्षेत्र में कम वेतन वाली और शोषणकारी नौकरियां
  • असुरक्षित रोजगार का शिकार होने की संभावना
  • अल्परोज़गार' दर का सामना करना
  • मातृत्व अवकाश के लिए वैधानिक अधिकारों की कमी
  • सामाजिक सुरक्षा के लिए कम अधिकार
  • सामाजिक मानदंड और लैंगिक भूमिकाएँ
  • भारत में लैंगिक वेतन अंतर
  • कानूनों और आर्थिक नीतियों की आवश्यकता
  • महिला आरक्षण विधेयक की आवश्यकता
  • कमज़ोर रोज़गार सृजन, दोषपूर्ण आर्थिक नीतियाँ
  • कॉर्पोरेट समर्थक नीतियों से महिलाओं का शोषण
  • महिलाओं और बच्चों के लिए अपर्याप्त बजटीय आबंटन
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  • Women are now a threat in the labour force, yet why are women unable to get employment
न्यूज़ सोर्स : Yogendra