मुफ्त की रेवड़ी का असर,महंगाई में आई सबसे तेजी ,बैंकों से लोन लेना हुआ मुश्किल
पिछले करीब एक साल के दौरान देश में कर्ज की ब्याज दरें तेजी (Interest Rate Hike) से बढ़ी हैं. बैंकों ने रेपो रेट में बढ़ोतरी (Repo Rate Hike) के साथ ब्याज दरों को लगातार बढ़ाया है. आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान कर्ज की बढ़ोतरी (Credit Growth) की दर जमा (Deposit Growth) की तुलना में ज्यादा रही. इतना ही नहीं बल्कि कर्ज के बढ़ने की रफ्तार पिछले 11 सालों में सबसे ज्यादा रही.
रिजर्व बैंक की हालिया मौद्रिक नीति समिति की बैठक (RBI MPC Meeting) की रिपोर्ट में इसकी जानकारी सामने आई है. रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 यानी अप्रैल 2022 से मार्च 2023 के दौरान बैंक लोन 14.6 फीसदी की दर से बढ़े हैं. वहीं दूसरी ओर जमा यानी डिपॉजिट में 9.6 फीसदी की दर से ही वृद्धि दर्ज की गई. कर्ज में आई यह वृद्धि वित्त वर्ष 2011-12 के बाद सबसे ज्यादा है, जब यह 17 फीसदी बढ़ा था.
पिछले साल मई से बढ़ रहा ब्याज
कर्ज के मामले में यह तेज वृद्धि ऐसे समय हुई है, जब देश में ब्याज दर रिकॉर्ड रफ्तार से बढे हैं. पिछले एक साल के दौरान लगभग सभी बैंकों ने ब्याज दरों में 250 बेसिस प्वाइंट यानी 2.50 फीसदी तक की वृद्धि की है. यह किसी एक वित्त वर्ष के दौरान ब्याज दरों में आई सबसे तेज वृद्धि है. रिजर्व बैंक ने पिछले साल मई में आपात बैठक के बाद ब्याज दरों को बढ़ाना शुरू किया था. उसके बाद लगातार ब्याज दरों में बढ़ोतरी हुई, जो इस महीने की बैठक में थमा.
इतने महंगे हो चुके हैं सारे कर्ज
रिजर्व बैंक ने जैसे-जैसे रेपो रेट को बढ़ाया, बैंकों ने इसका असर ग्राहकों पर डालना शुरू कर दिया. मई 2022 से अब तक सभी बैंक कई चरणों में ब्याज दरों को बढ़ा चुके हैं. आंकड़े बताते हैं कि मई 2022 से मार्च 2023 के दौरान लगभग सभी बैंकों के कर्ज 2.50 फीसदी तक महंगे हुए हैं. बैंकों ने रेपो रेट के हिसाब से एक्सटर्नल बेंचमार्क बेस्ड लेंडिंग रेट्स यानी ईबीएलआर (EBLR) को भी बढाया है. वहीं इस दौरान मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट यानी एमसीएलआर (MCLR) में 1.40 फीसदी तक की वृद्धि हुई है.
तेजी से बढ़े हैं ईबीएलआर बेस्ड लोन
पिछले कुछ सालों के दौरान बैंकों के लोन पोर्टफोलियो में ईबीएलआर आधारित लोन का हिस्सा बढ़ा है. फ्लोटिंग रेट वाले लोन में ईबीएलआर बेस्ड लोन की हिस्सेदारी मार्च 2022 के अंत में 44 फीसदी थी, जो दिसंबर 2022 में बढ़कर 48.3 फीसदी पर पहुंच गई. वहीं दूसरी ओर एमसीएलआर आधारित लोन की हिस्सेदारी इस दौरान 48.6 फीसदी से कम होकर 46.1 फीसदी पर आ गई.
मुफ्तखोरी के वादे से पैदा होता है संकट
राजनीतिक दलों के चुनाव जीतने की महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए मुफ्तखोरी के वादे से संकट पैदा होते रहे हैं. सरकारों के 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने और किसानों के कर्जे माफ कर देने की घोषणाओं पर अमल ने यह हालत बना दी है कि जिन घरों में पहले से ही बिजली की खपत कम है, वहां भी निश्चिंततापूर्वक 200 यूनिट बिजली खर्च करने की लापरवाही बढ़ी है. लगातार कर्ज लेने वाले किसान मान कर चलने लगे हैं कि चुनाव बाद ये कर्जे माफ कर दिए जाएंगे. इससे राज्य सरकारों के बजट पर असर पड़ा है. आज हालत यह है कि देश के 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 27 में वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान उनके ऋण अनुपात में 0.5 से 7.2 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है. पंजाब तो अपने जीडीपी का करीब 53.3 प्रतिशत तक कर्ज ले चुका है. राजस्थान का यह अनुपात 39.8, पश्चिम बंगाल का 38.8, केरल का 38.3 और आंध्र प्रदेश का 37.6 प्रतिशत है. ये सभी राज्य राजस्व घाटा पूरा करने के लिए केंद्र सरकार से अनुदान लेते हैं. मप्र, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे आर्थिक रूप से मजबूत राज्य भी कर्ज-जीएसडीपी अनुपात 23 फीसदी और 20 फीसदी से गुजर रहे हैं.