हरियाणा के गांवों में माहवारी अवकाश के लिए पंचायत
हरियाणा के गांवों में लाडो पंचायतें हो रही हैं जिनमें कामकाजी महिलाओं के लिए माहवारी के दौरान अवकाश की मांग की जा रही है. महिला स्वास्थ्य पर विशेष कानून भी इस मांग का हिस्सा है. अलीगढ़ की रहने वाली शमा परवीन एक सरकारी स्कूल में शिक्षिका हैं. एक आम शिक्षिका की तरह उन्हें भी वो सभी काम करने होते हैं जो उनकी नौकरी का हिस्सा हैं. लेकिन हर महीने कुछ दिनों वह बहुत असहज रहती हैं. कारण है मासिक धर्म या पीरियड. ऐसे में मूड स्विंग, दर्द इत्यादि सहना पड़ता है. वो बताती हैं कि शारीरिक दिक्कत तो सहन हो सकती है लेकिन माहवारी से जुड़ीं भ्रांतियों के कारण निकलना और चलना मुश्किल हो जाता है और हर समय ये दिमाग में रहता है कि कहीं कुछ ऐसा न हो जाए जिससे शर्मिंदा होना पड़ जाए.
शमा परवीन बताती हैं, "कभी-कभी रक्तस्राव इतना अधिक होता है कि हमेशा डर रहता है कि कहीं कपड़ों पर धब्बा न पड़ जाए और अजीब स्थिति न हो जाए. दर्द और उलझन इतनी कि बस कमरा बंद करके लेट जाओ."
शमा परवीन जैसी महिलाओं की संख्या कम ही है जो बिना झिझक इस बारे में बात करती हैं. वह कहती हैं कि इस कारण महिलाओं की कार्य क्षमता पर भी असर पड़ता है. बहुत सी कामकाजी महिलाएं ऐसा मानती हैं लेकिन उनकी मुश्किल भी यही है कि इस मुद्दे पर बात करना आज भी समाज में अच्छा नहीं समझा जाता है. ऐसे में इन कामकाजी महिलाओं के लिए काम और दिक्कतों में सामंजस्य बिठाना मुश्किल रहता है. इसलिए लगातार महिलाओं की मदद के लिए पीरियड लीव की मांग उठ रही है. हरियाणा राज्य में एक नयी पहल हुई है. गांव-गांव में लड़कियों खुद पंचायत कर ये मांग कर रही हैं. उनकी पंचायत का मुद्दा होता है सरकार से पीरियड लीव देने की मांग करना. पंचायत में जो मुद्दे उठाए जा रहे हैं उनमें महिला स्वास्थ्य के लिए सरकार से जरूरी कदम उठाने की मांग भी शामिल है. पंचायतों में शामिल हो रहीं निर्मला कहती है कि सरकारों को मासिक धर्म के समय अवकाश जरूर देना चाहिए और इसके लिए नया स्वास्थ्य बिल लाकर पारित करना चाहिए. निर्मला बताती हैं कि जरूरतमंद महिलाओं को सेनेटरी पैड भी नहीं मिल पाता.
हरियाणा में जींद जिले के पूर्व सरपंच सुनील जगलान इस मुहीम को एक अभियान के रूप में आगे बढ़ा रहे हैं. इसके लिए वह गांवों में ëलाडो पंचायतí का आयोजन करते हैं. बीते दिनों एक ऐसी ही पंचायत हिसार जिले के कंवारी गांव में आयोजित हुई. लाडो 'पंचायत फॉर हेल्थ' के नारे के साथ आयोजित इस कार्यक्रम में बहुत सी महिलाओं ने अपने विचार रखे और सरकारी, अर्ध-सरकारी दफ्तरों और गैरसरकारी कंपनियों में महिला को एक दिन का पीरियड का अवकाश देने की मांग की.
सुनील जगलान बताते हैं कि पहले उन्होंने एक पीरियड चार्ट अभियान शुरू किया था जिसमें उन्होंने घर में एक चार्ट बनाने का प्रयोग किया. उसके उपरांत उन्होंने महिलाओं को आराम दिलाने के लिए पीरियड लीव हेतु लड़कियों से बात शुरू की. वे बताते हैं कि कई कामकाजी लड़कियां तो पीरियड होने से रोकने के लिए दवा ले लेती हैं जो काफी हानिकारक होती हैं. यही बात सुनने के बाद उन्होंने पीरियड लीव दिलाने के लिए अभियान की शुरुआत की.
पीरियड लीव बहुत से देशों में प्रचलित हैं. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान से सवेतन पीरियड लीव चलन में आया था. जापान, दक्षिण कोरिया और इंडोनेशिया जैसे कुछ देशों में इसका प्रावधान है. भारत में केरल में एक स्कूल ने साल 1912 में इसको अपनाया भी था.