पाकिस्तान के लाहौर में 28 फरवरी 1923 को जन्मे जगतार सिंह जब विभाजन का दर्द बयां करते है कि उनकी आंखों में आंसू आ जाते है। जगतार बताते है कि जब देश आजाद हुआ तो समझों अनेकों भाईयों के रिश्ते आपस में टूट गए थे और पूरा नरसंहार उनकी आंखों के सामने हुआ था। आजादी के दृश्य को याद कर उनकी रूह आज भी कांप उठती है, क्योंकि जो दर्द उस समय लोगों को मिला था, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।

उन्होंने कहा कि बेशक देश अंग्रेजों की गुलामी की बेड़ियों से मुक्त हुआ हो, लेकिन जो यादें वह पाकिस्तान की गलियों में छोड़कर आए हैं, उन यादों में फिर से गुम होना चाहते हैं। जगतार सिंह बताते हैं कि अखंड भारत में हिंदू, सिख और मुसलमानों में काफी प्यार था। एक ही गली-मोहल्ले और बड़ी हवेलियों में सभी आपसी प्यार से रहते थे और बिना किसी धर्म के भेद के सभी बच्चे आपस में खेलते थे। बच्चों की शादियों में सभी आते-जाते थे और सुख-दु:ख के साथी थे।

उन्होंने बताया कि 13 अगस्त की रात जैसे ही रेडियों पर विभाजन का समाचार आया तो समझो सभी की आत्मा कांप उठी। भगदड़ मचने लगी और नरसंहार हुआ। हर आदमी अपना सामान समेटने में जुटा था। पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं व सिखों में भारत आने की होड़ लगी।

ट्रेनों की छतों तक पर लोग बैठकर जाने लगे, समझो एक किस्म से भूचाल ही आया लगता था। किसी को अपने गंत्तव्य का नहीं पता था। कई रिश्ते बिछुड़ गए और कईयों की संपत्ति पाक में रह गई।

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