लेखक प्रो. डॉ. सुनीता सिंह मरकाम {शहडोल}  -  प्रो. डॉ गंगाधर ढोके ,{शहडोल}

हिंदी भारत की सांस्कृतिक धरोहर और पहचान का प्रतीक है। यह न केवल एक भाषा है, बल्कि भावनाओं, विचारों और संस्कारों की अभिव्यक्ति का महत्वपूर्ण माध्यम भी है। हिंदी की जड़ें प्राचीन संस्कृत से जुड़ी हैं, और इसे भारतीय भाषाओं के बीच एक केंद्रीय स्थान प्राप्त है। देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिंदी ने साहित्य, शिक्षा, कला, और संचार के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया है। हिंदी साहित्य में कालजयी रचनाएं देखने को मिलती हैं, जो भक्ति काल से लेकर आधुनिक काल तक फैली हुई हैं। सूरदास, तुलसीदास, कबीर, और मीरा बाई जैसे कवियों ने भक्ति साहित्य को समृद्ध किया, जबकि प्रेमचंद, महादेवी वर्मा और मुंशी प्रेमचंद ने आधुनिक हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी। समाज में हिंदी की महत्वपूर्ण भूमिका है, क्योंकि यह जनमानस की भाषा है। स्वतंत्रता संग्राम के समय हिंदी ने लोगों को एकजुट किया और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बनी। आज के युग में, हिंदी ने तकनीक, विज्ञान, और व्यापार में भी अपनी पहचान बनाई है। इंटरनेट और सोशल मीडिया के प्रसार से हिंदी का वैश्विक प्रभाव बढ़ा है। इस प्रकार, हिंदी भाषा न केवल भारत की आत्मा है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी इसकी महत्ता बढ़ती जा रही है।

पंडित शंभूनाथ शुक्ल विश्वविद्यालय शहडोल में पदस्थ हिंदी विषय के प्रो. डॉ गंगाधर ढोके का कहना है कि मैं हिंदी भाषा बोलता हूं और हिंदी भाषा में सोचता भी हूं। जब हम विश्व की अनेक भाषाओं का अध्ययन करते हैं तो हम पाते हैं की हिंदी भाषा का जो स्वरूप है हिंदी भाषा की जो बुनावट एवं बनावट है वह निश्चित रूप से वैज्ञानिक है। वैज्ञानिक इस अर्थ में की जब हम विश्व की दूसरी भाषाओं का अध्ययन करते हैं तो हिंदी के साथ यह स्थिति नहीं है कि हिंदी के वर्ण में जो मात्राएं लगाई जाती हैं उसे ही उच्चारित किया जाता है। हिंदी के लिए सभी तरह की मात्राएं उपलब्ध हैं सभी तरह की व्याकरण त्रुटियां कहां पर हैं वह अच्छी तरह से देखने को मिलती हैं हिंदी भाषा के लिए हर वह शब्द है हमारे पास विलोम शब्द है हमारे पास अनेकार्थी शब्द है समानार्थी शब्द है संधि है समास है और यह सब मिलकर हिंदी को एक व्यापक स्वरूप प्रदान करते हैं। हिंदी भाषा में एक ही शब्द के लिए विभिन्न पर्यायवाची शब्द होते है लेकिन उसका अर्थ यह नहीं होता कि इसका एक ही अर्थ है जब हम पर्यायवाची शब्द को एक-एक करके देखेंगे तो उनमें कई कई अन्य प्रकार की अर्थ भी निकलते हैं।

शासकीय इंदिरा गांधी गृह विज्ञान कन्या स्नात्कोत्तर महाविद्यालय शहडोल में पदस्थ हिंदी विषय की प्रो. डॉ. सुनीता सिंह मरकाम का कहना है कि प्रत्येक वर्ष हम 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाते हैं और संविधान सभा में 14 सितंबर 1949 को यह निर्णय लिया गया था कि प्रत्येक वर्ष हिंदी दिवस मनाया जाएगा हिंदी दिवस के बारे में हम बात करें कि हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है हिंदी दिवस मनाने का क्या कारण है प्रत्येक वर्ष हम हिंदी दिवस मनाते हैं तो जो हमारी हिंदी भाषा है जो उसका महत्व है वह आपको और भाषाओं में नहीं मिलेगी। हिंदी जनमानस की भाषा है लोगों के हृदय तक जाती है और हिंदी भाषा में मिठास है इसके अलावा हम इंग्लिश में बात करते हैं तो किसी को अंकल या आंटी बोलते हैं तो वह हम कई रिश्तों को एक साथ बोल सकते हैं लेकिन वही हिंदी भाषा में जो मिठास हम किसी को मामा, चाचा, फूफा दीदी भैया आदि बुलाते हैं इनमें अलग से लगाव समझ आता है। डॉ. सुनीता सिंह मरकाम का कहना है कि हिंदी दिवस मनाने उदेष्य है कि लोगों तक हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार हो लोगों तक हिंदी भाषा पहुंचे और हिंदी का वैश्विक स्तर पर विकास हो कई देशों में भारत के साथ-साथ हिंदी अन्य देशों में भी बहुतायत रूप से बोली जाती है।

नये-नये तरीके अपनाकर सविता चतुर्वेदी 24 वर्षाें से पढा रही हिंदी - Shahdol

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