जाति अलग हो सकती है लेकिन माटी एक ही है ऐसी सोच पर आदर्श बनेंगे गांव - दादा गुरू
रामगोपाल साहू वरिष्ठ पत्रकार {IPM}
औबेदुल्लागंज। नर्मदा तट के महायोगी व अवधूत संत दादा गुरू का आज भोजपुर की पवित्र धरा पर ओबेदुल्लागंज में आगमन हुआ। प्रदेश स्तरीय भजन मण्डल कार्यक्रम में उन्होने समाज के कल्याण के लिए माटी से जुड़े रहने की शिक्षा दी । साथ ही कहा कि नर्मदा, सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है। यह एक ऐसी माँ है जिसने सदियों से इस धरती को जीवनदान दिया है। विंध्य की पहाड़ियों से निकलकरए खंभात की खाड़ी में विलीन होने तक, यह नदी जीवन का एक अनंत प्रवाह लेकर चलती है। नर्मदा का जल सिर्फ पानी नहीं, बल्कि एक पवित्र अमृत है। इसके तट पर बसे गांवों और शहरों में, लोग इस जल को पूजते हैं, इसे पीते हैं, और इससे स्नान करते हैं। नर्मदा का जलए हर घर में सुख - शांति लाता है। गांवों के विकास एवं आदर्शता के लिए भाइचारा जरूरी हैं ,हमारी जाति अलग हो सकती है लेकिन माटी एक है। एक ही धर्म है जो हमें एकता का संदेश देता है।
गौरतलब है कि दादागुरु ने 1450 दिन से अधिक समय से निराहार महाव्रत साधना करए केवल नर्मदा जल ग्रहण करके यह साबित किया है कि मानव शरीर प्रकृति के साथ एकात्मक है। दादागुरु ने 17 अक्टूबर 2020 से यह महाव्रत शुरू किया था। तब से लेकर अब तक उन्होंने अन्न का एक दाना भी नहीं खाया है। वे सिर्फ और सिर्फ नर्मदा जल पर ही जीवित हैं। इस अकल्पनीय साधना का उद्देश्य मां नर्मदा और प्रकृति के संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाना है।
क्यों है यह महाव्रत खास?
* विज्ञान को चुनौती: यह साधना विज्ञान के ज्ञात नियमों को चुनौती देती है। वैज्ञानिकों के लिए यह एक रहस्य है कि कैसे कोई व्यक्ति बिना अन्न-जल के इतने लंबे समय तक जीवित रह सकता है।
* प्रकृति प्रेम: दादागुरु का यह महाव्रत प्रकृति के प्रति उनके अगाध प्रेम का प्रतीक है। वे चाहते हैं कि लोग प्रकृति को बचाने के लिए आगे आएं।
* जागरूकता फैलाना: दादागुरु की इस साधना ने लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा की है। लोग अब प्रकृति के संरक्षण के लिए अधिक जागरूक हो रहे हैं।
दादागुरु का संदेश
दादागुरु का संदेश स्पष्ट है - हमें प्रकृति को बचाना है। हमें अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना होगा और प्रकृति के साथ सद्भाव स्थापित करना होगा। दादागुरु की यह साधना हमें प्रकृति के प्रति हमारे कर्तव्यों को याद दिलाती है।