समग्र ग्रामविकास में जनता की सहभागिता से ही विकसित होगा भारत

बारीपाड़ा की यह कहानी दिखाती है कि आत्मनिर्भर और समृद्ध गाँव की परिकल्पना केवल सपने नहीं, बल्कि सच्चाई बन सकती है। श्री चेतराम पवार के नेतृत्व और गाँव के सम्मिलित प्रयासों ने यह सिद्ध कर दिया है कि सही दिशा और समर्पण से कोई भी बदलाव संभव है।
"महाराष्ट्र के बारीपाड़ा गाँव, जो कभी एक सामान्य वन गाँव था, ने पिछले तीन दशकों में विकास की अनोखी मिसाल पेश की है। इस परिवर्तन के पीछे प्रमुख भूमिका निभाने वाले अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यकर्ता श्री चेतराम पवार को भारत सरकार ने इस वर्ष प्रतिष्ठित पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया है।"
तीस साल पहले बारीपाड़ा गाँव साकरी तालुका का एक सामान्य वन ग्राम था, जहाँ न तो शिक्षा का स्तर था, न ही जल और जंगल का प्रबंधन। महिलाएँ चार-पाँच मील पैदल चलकर पानी लाती थीं। गांव में कुओं का जलस्तर दिसंबर आते ही सूख जाता था, और पलायन की समस्या आम थी।
लेकिन चेतराम पवार के अथक प्रयासों और वनवासी कल्याण आश्रम के सहयोग से गाँव ने विकास के पथ पर बड़ी छलाँग लगाई। सबसे पहले ग्रामीणों को संगठित कर जंगल, पानी और जमीन के संरक्षण पर जोर दिया गया। गाँव के लोगों ने वन प्रबंधन का अभिनव प्रयोग शुरू किया, जिसमें जंगल की सुरक्षा के लिए सामूहिक निर्णय लिए गए। जंगल में लकड़ी तोड़ने पर जुर्माना और पौधों की रक्षा के लिए चौकीदार रखने जैसे नियम लागू किए गए।
गाँव में 350 छोटे-बड़े चेकडैम और 13 तालाब बनाए गए, जिससे जलस्तर बढ़ा और कुओं की संख्या चार से बढ़कर 40 हो गई। अब गाँव न केवल अपनी जरूरतें पूरी कर रहा है, बल्कि आसपास के पाँच गाँवों को भी पानी उपलब्ध करा रहा है।
बारीपाड़ा के किसानों ने आधुनिक कृषि तकनीकों का उपयोग कर फसल उत्पादन बढ़ाया। यहाँ बासमती चावल, गन्ना, प्याज, सोयाबीन और स्ट्रॉबेरी जैसी फसलें बड़े पैमाने पर उगाई जा रही हैं। रासायनिक रहित खेती, मधुमक्खी पालन, पापड़ निर्माण और अन्य लघु उद्योगों ने ग्रामीणों की आय में अभूतपूर्व वृद्धि की है।
शिक्षा के क्षेत्र में भी गाँव ने नई मिसाल कायम की। स्कूलों में अनुपस्थित रहने वाले छात्रों और उनके माता-पिता पर जुर्माने का नियम लागू किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि प्राथमिक शिक्षा का स्तर शत-प्रतिशत तक पहुँच गया।
गाँव के 445 हेक्टेयर जंगल को संरक्षित किया गया, जिसमें दुर्लभ वनस्पतियों की बहाली हुई। फूलों की नीलामी से गाँव को आर्थिक रूप से समृद्ध हुआ। महिलाओं के लिए वन भाजी महोत्सव का आयोजन कर आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया गया।
बारीपाड़ा ने आत्मनिर्भर और समृद्ध गाँव का उदाहरण प्रस्तुत किया है। गाँव के सभी परिवार अब गरीबी रेखा से ऊपर आ गए हैं और कर्ज मुक्त हो गए हैं। यह गाँव न केवल महाराष्ट्र बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुका है।
श्री चेतराम पवार, जो कल्याण आश्रम से जुड़े और गाँव के विकास का स्वप्न लेकर आगे बढ़े, ने व्यक्तिगत करियर और भौतिक सुखों को त्यागकर जनसेवा को प्राथमिकता दी। उनकी मेहनत और समर्पण ने बारीपाड़ा को एक सशक्त और समर्थ गाँव बना दिया।
पद्मश्री सम्मान उनके कार्यों की केवल एक पहचान है। यह पुरस्कार न केवल उनके बल्कि बारीपाड़ा के हर नागरिक के सामूहिक प्रयासों का सम्मान है।