एक परजीवी होता है, जो अक्सर भेड़ियों को संक्रमित करता है. एक ताजा शोध कहता है कि जिन भेड़ियों को यह संक्रमण हो जाता है, उनके दल का नेता बनने की संभावना ज्यादा हो जाती है क्योंकि यह परजीवी उनके मस्तिष्क में रहता है.

टोक्सोप्लाज्मा गोंडाई नाम का यह परजीवी सिर्फ बिल्लियों के शरीर में रहकर प्रजनन करता है लेकिन गर्म खून वाले सभी प्राणियों को संक्रमित कर सकता है. एक अनुमान के मुताबिक दुनिया के 30 से 50 फीसदी लोग इस परजीवी से संक्रमित हैं. एक बार शरीर में घुस जाने के बाद यह एक गांठ के रूप में पूरी उम्र शरीर में मौजूद रहता है. हालांकि स्वस्थ प्रतिरोध क्षमता वाले लोगों को इसके कारण किसी तरह की दिक्कत नहीं होती.

वैसे कुछ शोध ऐसा कह चुके हैं कि जिन इंसानों में यह संक्रमण हो जाता है, उनकी भी खतरा मोल लेने की संभावना बढ़ जाती है लेकिन कई शोध इन नतीजों को गलत बताते रहे हैं. गुरुवार को ‘कम्यूनिकेशन बायोलॉजी' नामक पत्रिका में छपे शोध में 26 साल के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है. यह आंकड़े अमेरिका के येलोस्टोन नेशनल पार्क में रहने वाले भेड़ियों के हैं.

कैसे हुआ शोध?

येलोस्टोन वुल्फ प्रोजेक्ट के शोधकर्ताओं ने 230 भेड़ियों और 62 तेंदुओं के खून के नमूनों की जांच की. तेंदुए ही इस परजीवी को फैलाने वाले होते हैं. शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन भेड़ियों में संक्रमण हुआ था, उनके तेंदुए के इलाके में जाने की संभावना दूसरे भेड़ियों के मुकाबले ज्यादा थी.

संक्रमित भेड़ियों के अपना दल छोड़ने की संभावना भी सामान्य भेड़ियों के मुकाबले 11 गुना ज्यादा थी. दल को छोड़ना भी खतरा उठाने का ही एक प्रतीक है. इसके साथ ही, इन संक्रमित भेड़ियों के दल का नेता बनने की संभावना दूसरों से 46 गुना ज्यादा पाई गई. भेड़ियों के दल का नेतृत्व अक्सर ज्यादा आक्रामक भेड़ियों को मिलता है.

ग्रीस के आखिरी खानाबदोश गड़ेरिये

भेड़-बकरियों के साथ स्थायी खेती का चलन सदियों से चला आ रहा है. मिलिए कुछ ऐसे लोगों से जिन्होंने औद्योगिक कृषि, पर्यटन और जलवायु परिवर्तन के दबाव के बावजूद इस परंपरा को जीवित रखा हुआ है.

तस्वीर: Dimitris Tosidis

इलेनी त्जिमा और उनके पति नासोस त्जिमा करीब 53 सालों से अपने पशुधन को गर्मियों में चरने लायक घास तक उत्तर पश्चिम ग्रीस के पहाड़ी इलाकों में ले जाते हैं और फिर सर्दियों में तराई में स्थित अपने घर वापस ले आते हैं.

त्जिमा परिवार हजारों साल पुरानी परंपरा का हिस्सा है. मौसम के मुताबिक वे अपने जानवरों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं. लेकिन ग्रीस में इस तरह की परंपरा खत्म हो रही है और वे देश में इस प्रकार की खेती करने वाले कुछ ही लोगों में से हैं.

बुढ़ापे में भी जीवित रखी है परंपरा

गर्मियों के महीनों के दौरान ये दंपति जो कि 80 साल के करीब हैं, एक रेडियो, मोबाइल फोन और रोशनी के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग करते हुए, एक अस्थायी झोपड़ी में रहते हैं. वे अल्बानिया के साथ लगने वाली ग्रीस की सीमा के पास पहाड़ी पिंडस नेशनल पार्क में "डियावा" के रूप में जाने जाने वाले एक वार्षिक ट्रेक में भाग लेने वाले सबसे पुराने चरवाहों में से हैं.

संघर्ष करते हुए

इलेनी त्जिमा कहती हैं, "हम हर दिन सुबह से शाम तक संघर्ष करते हैं. मैंने कभी भी एक दिन की छुट्टी नहीं ली क्योंकि जानवर भी कभी छुट्टी नहीं लेते." वे बताती हैं कि उन्हें पहाड़ों में गर्मी का मौसम पसंद है और उन्हें वहां शांति मिलती है. वे कहती हैं, "मैंने इस जीवन को नहीं चुना, लेकिन अगर मेरे पास कोई विकल्प होता, तो वह यही होता."

गायब होती सांस्कृतिक विरासत

मौसम के मुताबिक जानवरों को चराने ले जाने का दस्तूर मुख्य तौर पर ग्रीस के स्वदेशी समूहों जैसे व्लाच्स और साराकात्सानी द्वारा किया जाता है, साथ ही अल्बानिया और रोमानिया के प्रवासियों द्वारा भी किया जाता है. 1960 और 70 के दशक में मशीनीकृत कृषि और नई खेती प्रौद्योगिकी जब लोकप्रिय हुई तो इस तरह की परंपरा खत्म होती चली गई.

यूनेस्को से मिली पहचान

यूनेस्को ने 2019 में पशु चराने के इस अभ्यास को एक "अमूर्त सांस्कृतिक विरासत" नाम दिया और इसे कृषि पशुधन के लिए सबसे टिकाऊ और कुशल तरीकों में से एक के रूप में करार दिया.

खत्म होते रास्ते

आज कम ही चरवाहे पहले से बने हुए रास्तों पर जाते हैं. एक समय में गड़ेरियों ने मार्गों का एक व्यापक नेटवर्क स्थापित किया था और अब वह नेटवर्क धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. साथ ही जंगल भी सिमटते जा रहे हैं.

जानवरों को अलग रखने के लिए रंग

थोमस जियाग्कस अपने भेड़ों को लाल मिट्टी की मदद से रंग दे रहे हैं ताकि वे अन्य जानवरों के झुंड से मिल ना जाए. आजकल वह शायद ही रास्ते पर अन्य चरवाहों से मिलते हैं.

दूध का कारोबार

यहां के चरवाहे आमतौर पर दूध का इस्तेमाल पनीर बनाने के लिए करते हैं. इस तरह के दूरदराज के स्थानों से दूध को प्रोसेसिंग प्लांट तक ले जाना मुश्किल है. कभी-कभी वे उन स्थानीय लोगों या व्यापारियों को पनीर बेचते हैं जो उनसे यहां मिलने आते हैं.

पहाड़ी घास के फायदे

गड़ेरिये निकोस सैटाइटिस बताते हैं कि पहाड़ी घास से भेड़ों को उच्च गुणवत्ता वाला चारा मिलता है. जिससे स्वस्थ पनीर, दूध और दही का उत्पादन होता है जो खेतों से मेल नहीं खाता. हालांकि चरवाहों को अपने उत्पाद को कम कीमतों पर बेचने के लिए मजबूर किया जाता है. उनके मुताबिक डेयरी फार्म में बनने वाले उत्पादों से उनके उत्पादों की तुलना सही नहीं है क्योंकि उसके लिए वे कड़ी मेहनत करते हैं.

शोध की सह-लेखक कीरा कैसिडी बताती हैं कि "ज्यादा साहसी होना कोई बुरी बात नहीं है” लेकिन ऐसे जानवरों की उम्र कम हो सकती है क्योंकि वे अक्सर ऐसे फैसले करते हैं जो उनकी जान खतरे में डाल सकते हैं. कैसिडी कहती हैं, "भेड़ियों के पास इतनी गुंजाइश नहीं होती कि जितने खतरे उन्हें आमतौर पर उठाने पड़ते हैं, उससे ज्यादा खतरे मोल ले सकें.”

कैसिडी बताती हैं कि टी. गोंडाई परजीवी के जंगली जानवरों पर असर का अध्ययन करने वाला यह सिर्फ दूसरा शोध है. पिछले साल भी एक शोध हुआ था जिसमें हाइना के बच्चों पर केन्या में अध्ययन किया गया और पाया गया कि संक्रमित हाइना के शेरों के करीब जाने और मारे जाने की संभावना ज्यादा थी.

दूसरे प्राणियों पर असर

प्रयोगशालाओं में इस परजीवी को लेकर चूहों पर हुए अध्ययन का नतीजा था कि संक्रमित चूहे बिल्लियों से कुदरती डर खो बैठते हैं और बिल्लियों के पंजों में फंस जाते हैं. इंडियाना यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में टोक्सिकोलॉजी के प्रोफेसर विलियम सलिवन 25 साल से टी. गोंडाई पर अध्ययन कर रहे हैं. उन्होंने भेड़ियों को लेकर हुए शोध को को ‘दुर्लभ' कहा है. हालांकि उन्होंने चेताया भी है कि ऐसे पर्यवेक्षण आधारित शोध की सीमाएं होती हैं.

प्रोफेसर सलिवन ने कहा, "वो भेड़िये जो जन्मे ही खतरा उठाने की प्रवृत्ति के साथ हों, उनके तेंदुओं के इलाके में जाने और टी. गोंडाई से संक्रमित हो जाने की संभावना ज्यादा होती है. लेकिन, यदि ये नतीजे सही हैं तो संभवतया हम टोक्सोप्लाज्मा के असर को कम करके आंक रहे हैं.”

चालाक भेड़िये के किस्से और सच्चाई

भेड़ियों की चालाकी के किस्से बहुत पुराने हैं. इंसान इन्हें नापसंद करता है और डरता भी है. खून के प्यासे माने जाने वाले भेड़ियों के बारे में यहां जानिए कुछ दिलचस्प बातें.

माना जाता है कि भेड़िए पूरे जीवन एक ही साथी के साथ जोड़ी बनाते हैं. हालांकि कुछ लोगों को इस दावे पर शक भी है. फिर भी वे ज्यादातर अपने साथी के प्रति वफादार रहते हैं इसमें कोई शक नहीं.

खून के प्यासे?

किस्से कहानियों में भेड़ियों को इंसानों और खासकर बच्चों को अपना शिकार बनाने का जिक्र होता रहा है. जीव संरक्षणकर्मी बताते हैं कि इंसान और भेड़ियों का एक साथ शांतिपूर्ण रहना संभव है.

चांद पर गुर्राना?

आपने भी सुना होगा कि भेड़िया चांद को देखकर गुर्राता है लेकिन वैज्ञानिक इस दावे को झूठा बताते हैं. उनका कहना है कि वे अपना सिर ऊपर उठा कर इसलिए गुर्राते हैं क्योंकि इससे उनकी आवाज साफ निकलती है.

कई बार झुण्ड से बिछड़ गए भेड़िए को अकेले रहना पड़ता है, इन्हें लोन वुल्फ कहते हैं. ये कम गुर्राते हैं और शांति से छुपे रहना पसंद करते हैं क्योंकि इन्हें बचाने के लिए कोई झुण्ड मौजूद नहीं होता.

सफर में जिंदगी

भेड़िए यात्रा खूब करते हैं. कई बार खाने की तलाश में ये हर दिन 30 से 50 किलोमीटर तक चले जाते हैं. आमतौर पर इनका इलाका 150 से लेकर 300 वर्ग किलोमीटर के बीच होता है.

क्यूट पिल्ले?

औसतन मादा भेड़िए एक बार में 6 या 8 बच्चों को जन्म देती हैं. मादा 63 दिनों तक गर्भवती होती है और नवजातों को कम से कम आठ हफ्तों तक उसके साथ रहना होता है. फिर वे ठोस भोजन करने लगते हैं.

एकजुट रहने मे फायदा

ये छह से दस के झुण्ड में रहते हैं. झुण्ड में पदों की बहुत अहमियत होती है. एक ताकतवर नर और उसकी जोड़ीदार मादा ही बच्चे पैदा कर सकते हैं. बाकी वयस्क उनके पैदा किए बच्चों को पालने में मदद करते हैं. तामसिन वॉकर/आरपी

लोग अधपका मांस खाने से या अपनी पालतू बिल्लियों से टी. गोंडाई संक्रमित हो सकते हैं. कम सेहतमंद लोगों को यह परजीवी टोक्सोप्लाजमोसिस नामक रोग से बीमार कर सकता है और उनके मस्तिष्क और आंखों को नुकसान पहुंचा सकता है.

 

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