योगेन्द्र पटेल

{सामाजिक राजनीतिक,प्रशासनिक विश्लेषक}

      दुनिया के किसी भी मानवीय विकास का केन्द्र बिन्दु कृषि रहा है,सामाजिक कल्याण के प्रवर्तक हो या रोजगार पैदा करने की उम्मीद , खेती के बगैर सब अधूरा है। विकसित देशों के अनुभव भी यहीं कहते हैं। विकास सेक्टर में कृषि को केन्द्र बिन्दु में लाया जाना चाहिए।

इसके विपरित भारत में प्रकृति समृद्ध भूमि के कुप्रबंधन के चलते इस सेक्टर में विकास कम होता दिख रहा हैं। देश के छोटे किसानों की स्थिति बेहद खराब है। सरकारों के इन्वेस्टर  समिट में कृषि क्षेत्र को पिछड़ा मानते हुए निवेश संसाधनों को कम शामिल किया जा रहा है।

खेती का व्यवसायिकरण क्यों नहीं ?

देश का किसान अब तक मण्डी के भरोषे बैठा है। छोटे भू धारक किसान बड़ी संख्या में होने के बाद भी खेती को व्यवसाय के रूप में करने के कौशल से दूर है। यह स्थिति किसानों के लिए तो संकट पैदा कर ही रही है, सरकारों के लिए भी चुनौति बनी हुई है। इस दिशा में सरकार को सतत कृषि आयामों को ध्यान में रख किसान उत्पाद संगठनों एवं सहकारिता से अधिक से अधिक किसानों को प्रायोगिक रूप से कृषि व्यापार के लिए तैयार किया जाना चाहिए।

किसान की बाजार तक पहुंच नहीं

देश के आधे से भी अधिक किसान अभी भी अपने उत्पाद को सीधे बाजार तक पहुंच से दूर हैं। जबकि 1995 में उचित एवं प्रतिस्पर्धी बाजार बनाने के विश्व व्यापार समझोते अनुसार अब तक किसानों के उत्पादों को लोकल टू ग्लोबल बना दिया जाना था, लेकिन भारत जैसे विकासशील देश में इसे मजबूती से नहीं किया गया या राजनीति महत्वकांक्षाओं के चलते नहीं करने दिया गया। आज भारत की स्थिति यह है कि ब्रिक्स देशों के उस समझौते पर भी बहुत कम कार्य हो सका है जिसमें भारत ने कृषि सेक्टर में प्रोद्योगिकी एवं नवाचार की बात कही थी। इस हेतु सरकार ने क्या मसौदा तैयार किया जनता इससे अनजान है। सरकार ने खुली विपणन पर कितना कार्य किया एवं किसानों को ग्रामीण विपणन प्रणाली से कितना जोड़ा इसके शुभ संकेत कम नजर आ रहे हैं। अनाज सब्सिडी के बोझ को कम करने एवं अनाज बाजारों की आर्थिक सुधारों के लिए लोकल स्तर पर कितने बाजार केन्द्र खोले गए सरकार स्पष्ट बताने की स्थिति में नहीं है। इसी का परिणाम है कि किसान थक -हारकर सरकार के भरोषे में आंदोलन करने पर मजबूर है।

निजी कंपनियां कर रहीं किसानों से लूट

राष्टीय अनाज विपणन प्रणाली पर राज्यों के नियंत्रण की दिशा में ठोस प्रयास का अभाव नजर आता है। ऐसी स्थिति में किसानों को कुछ कंपनियां से लूट का शिकार होना पड़ रहा है। सरकार की तरफ से किसानों के लिए कोई  व्यापार स्टेशन सुलभ नजर नहीं आ रहा है। देश में  कृषि समुदाय के विकास को लेकर किसान दृष्टिकोण में सुधार एवं कृषि आधुनिकीकरण की दिशा में कार्य किया जाना चाहिए। किसानों को उनके उत्पादों के प्रदर्शन पर भी स्थानीय इनपुट सेंटर की स्थापना पर विचार किया जाना चाहिए।

मप्र ने कृषि निवेश पर किया फोकस

मप्र के मुख्यमंत्री डा ॅमोहन यादव के नेतृत्व में कृषि क्षेत्र में निवेश उम्मीद जागी है। विगत दिनों व्यापार समिट में कृषि क्षेत्र में बड़े निवेश की उम्मीद की अपेक्षा की है। सरकार को मानना है कि कृषि और विकास को नई उंचाई तक पहुंचाने बड़ी धनराशियां स्वीकृत की जा रही है। इस निवेश से कृषि उपकरणों ,मण्डी के विकास एवं बाजार तक किसानों की पहुंच बढ़ाने के प्रयास किये जाएंगे।

न्यूज़ सोर्स : ipm