जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव-जंतुओं के जीवन अस्तित्व पर संकट समय के साथ बढ़ रहा है। इंसानों में हाशिये के समुदाय के लोग इसमें सबसे ज्यादा हैं, जिनमें महिलाएं और लड़कियां शामिल हैं। एक तरह महिलाएं जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा पृथ्वी के बिगड़ती स्थिति से प्रभावित है वहीं दूसरी और वे अपने स्तर पर इसे बचाने में भी सबसे आगे है। यह बात अलग है कि आधिकारिक और सार्वजनिक रूप से उनके सहयोग और प्रतिक्रियाओं को दर्ज करने का काम कम किया जाता है। दुनिया भर के हर समाज में, महिलाएं और लड़कियां पर्यावरण संकट के समय अधिक प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया दे रही हैं और सभी के लिए एक न्यायपूर्ण और स्थायी भविष्य बनाने की दिशा में प्रभावी तरीके से काम करती आ रही हैं। 

जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापित होने वाले लोगों में 80 फीसदी महिलाएं और लड़कियां होती हैं। हीट वेव्स के कारण उनके स्वास्थ्य पर अलग तरह का प्रभाव पड़ रहा है, गर्भाव्यवस्था से लेकर मेंस्ट्रुएल स्वास्थ्य सब पर असर पड़ रहा है, लेकिन उन्हें वार्षिक कॉन्फ़्रेंस ऑफ़ द पार्टीज़ (कॉप) जैसे महत्वपूर्ण मंचों से लगातार बाहर रखा जाता आ रहा है। हर साल महिलाओं के बहिष्कार का एक नया रिकॉर्ड देखने को मिलता है। बात अगर बीते वर्ष नवंबर में हुए 29वें कॉप-29 सम्मेलन की करे तो वहां भी महिलाएं मंचों और विमर्श से बड़े स्तर पर गायब रहीं। वूमेन फोरम ऑफ इकॉनमी एंड सोसाइटी ने फ़ेसबुक पर विश्व नेताओं की एक तस्वीर साझा की और बड़ा सवाल उठाया कि महिलाएं कहां हैं? कॉप-29 में भाग लेने वाले 78 विश्व नेताओं में से केवल आठ महिलाएं थीं, जो पिछले वर्ष की तुलना में आधी संख्या है। इस तरह के मंचों पर दुनिया की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व केवल 10 प्रतिशत या उससे कम लोग कर रहे हैं। 

दुनिया भर में महिलाएं कुल बिना वेतन वाले देखभाल कार्य का 75 प्रतिशत से अधिक कार्य करती हैं, जो पुरुषों की तुलना में 3.2 गुना अधिक है। जलवायु परिवतर्न से उत्पन्न हुई आपदाएं तब आती हैं तो यह आंकड़ा और बढ़ जाता है क्योंकि महिलाएं अपने परिवार और समुदाय को पुनर्निर्माण में मदद करने के लिए अतिरिक्त जिम्मेदारियां उठाती हैं।

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु शासन संरचनाओं में लैंगिक समानता अब भी एक दूर का सपना बनी हुई है। संयुक्त राष्ट्र महिला संगठन के अनुसार, इन संरचनाओं में इंटरसेक्शनैलिटी की कमी भी देखी गई है, जो हाशिये पर खड़े समुदायों की पहुंच को और अधिक सीमित करती है। हाशिये के समुदाय की महिलाएं जलवायु संकट का सबसे अधिक खामियाजा भुगतती हैं। वे प्रभावों से सबसे अधिक प्रभावित होती हैं, लेकिन निर्णय प्रक्रिया तक उनकी पहुंच और आवाज़ गायब है। महिलाओं के लिए जलवायु परिवर्तन के समाधान की दिशा में उनके प्रतिनिधित्व को बढ़ाना होगा तभी वास्तविक तौर पर हम इस समस्या से लड़ पाएंगे।

महिलाओं और लड़कियों का नेतृत्व क्यों अनिवार्य

जलवायु परिर्वतन के कारण महिलाएं और लड़कियां सबसे अधिक प्रभावित होती हैं। जलवायु संवेदनशील क्षेत्रों में यह समस्या और भी अधिक है। इन समुदायों को जलवायु अनुकूलन कार्रवाई के केंद्र में होना चाहिए। जलवायु परिवर्तन न केवल लड़कियों की शिक्षा के लिए गंभीर चुनौतियां पैदा करता है, बल्कि यह महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर डालता है और उनके ऊपर अतिरिक्त जिम्मेदारियां डालता है। महिलाएं अक्सर प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और अपने परिवारों की प्राथमिक देखभालकर्ता करने वाली के रूप में समुदायों में अनुकूलन प्रथाओं को बढ़ावा देने का काम करती है। उनके नेतृत्व और निर्णय लेने में भागीदारी को जलवायु अनुकूलन कार्रवाई के लिए आवश्यक माना गया है।

न्यूज़ सोर्स :